कबीर के राम कौन हैं कबीर के निर्गुण राम कबीर के दोहे

कबीर के राम कौन हैं कबीर के निर्गुण राम Kabir Ke Nirgun Ram

कबीर के राम निरंकारी और निर्गुण है
 

कबीर के राम कौन हैं कबीर के निर्गुण राम Kabir Ke Nirgun Ram
 

कबीर और तुलसी दोनों ही भक्तिकाल के प्रमुख संत-कवि हैं। दोनों ने अपने समय में समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों का विरोध किया और लोगों को एकता, प्रेम और भाईचारे का संदेश दिया। दोनों के राम भी उनके आदर्श और प्रेरणा के स्रोत थे। वे किसी भी रूप या नाम से नहीं पूजे जाते हैं। वे सभी में समान रूप से विद्यमान हैं। वे प्रेम, करुणा और सत्य के प्रतीक हैं। कबीर एक निर्गुण भक्त थे। वे ईश्वर को निराकार मानते थे। उनके अनुसार, ईश्वर एक है और वह सभी में समान रूप से विद्यमान है। कबीर के राम भी निर्गुण हैं। वे एक शक्ति हैं जो सभी में समान रूप से विद्यमान हैं।

कबीर के निर्गुण राम की अवधारणा भारतीय धर्म और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने लोगों को यह समझने में मदद की कि ईश्वर किसी भी रूप या नाम से नहीं पूजे जाने चाहिए। वे सभी में समान रूप से विद्यमान हैं।
कबीर के निर्गुण राम की अवधारणा को निम्नलिखित दोहों से समझा जा सकता है:
"राम नाम ही सत्य है, झूठे सब ठाट।" - राम नाम ही सत्य है, बाकी सब झूठ है।
"राम साईं एक है, सबमें समाया।" - राम और साईं एक ही हैं, वे सभी में समाए हुए हैं।
"राम नाम की महिमा, ना जाने कोई।" - राम नाम की महिमा अपरंपार है, इसे कोई नहीं जान सकता।
इन दोहों में, कबीर कहते हैं कि राम नाम ही सत्य है। बाकी सब झूठ है। राम और साईं एक ही हैं, और वे सभी में समाए हुए हैं। राम नाम की महिमा अपरंपार है, इसे कोई नहीं जान सकता।
कबीर के निर्गुण राम की अवधारणा आज भी प्रासंगिक है। यह हमें यह समझने में मदद करती है कि ईश्वर एक व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि एक शक्ति हैं जो सभी में समान रूप से विद्यमान हैं।

कबीर के राम

कबीर एक निर्गुण भक्त थे। वे ईश्वर को निराकार मानते थे। उनके अनुसार ईश्वर को किसी भी रूप या नाम में नहीं देखा जा सकता। कबीर के राम भी निराकार हैं। वे ईश्वर के रूप हैं। कबीर ने राम को निम्नलिखित रूपों में व्यक्त किया है:

अनंत, अजन्मा, निर्विकार: कबीर कहते हैं कि राम अनादि, अनंत और निर्विकार हैं। वे काल के भी परे हैं।
सर्वव्यापी: कबीर कहते हैं कि राम सर्वव्यापी हैं। वे हर जगह मौजूद हैं।
सर्वशक्तिमान: कबीर कहते हैं कि राम सर्वशक्तिमान हैं। वे सब कुछ कर सकते हैं।
कल्याणकारी: कबीर कहते हैं कि राम कल्याणकारी हैं। वे सभी का भला करते हैं।

तुलसी के राम

तुलसी एक सगुण भक्त थे। वे ईश्वर को साकार मानते थे। उनके अनुसार ईश्वर को राम, कृष्ण, शिव आदि रूपों में देखा जा सकता है। तुलसी के राम भी सगुण हैं। वे रामायण के नायक हैं। वे एक आदर्श राजा, पति और पिता हैं। तुलसी ने राम को निम्नलिखित रूपों में व्यक्त किया है:

राजा: राम एक आदर्श राजा हैं। वे न्यायप्रिय, दयालु और करुणामय हैं।
पति: राम एक आदर्श पति हैं। वे सीता के प्रति वफादार और प्रेमपूर्ण हैं।
पिता: राम एक आदर्श पिता हैं। वे लक्ष्मण और भरत के प्रति स्नेही और दयालु हैं।

कबीर और तुलसी के रामों की तुलना

कबीर के राम निराकार हैं, जबकि तुलसी के राम सगुण हैं।
कबीर के राम काल के भी परे हैं, जबकि तुलसी के राम काल के भीतर हैं।
कबीर के राम कुंडलिनी योग से भी जुड़े हुए हैं, जबकि तुलसी के राम नहीं हैं।

कबीर और तुलसी के रामों की तुलना करने से हम दोनों संत-कवियों की भक्ति की भिन्नता को समझ सकते हैं। कबीर एक निर्गुण भक्त थे, जबकि तुलसी एक सगुण भक्त थे। इनकी भक्ति की भिन्नता उनके रामों के स्वरूप में भी परिलक्षित होती है।

कबीर का शाब्दिक अर्थ होता है महान। कबीर नाम के अनुसार महान थे अपने विचारों से। अंतराष्ट्रीय स्तर पर कबीर को संत का उच्तम दर्जा प्राप्त है। कबीर की विलक्षण प्रतिभा है उनकी सहज बाणी और व्यक्तित्व। कबीर साहेब जो "सहा" वो लिखा। समझने का प्रयत्न कीजिये की जिस व्यक्ति को मारने के प्रयत्न हुए उसकी वाणी में प्रतिशोध की एक बून्द भी नहीं दिखती है।

 

यही उदाहरण है उनकी प्रतिभा का। कबीर के साहित्य में आत्म प्रशंशा का भाव कही नहीं दिखाई देता है, उनका उद्देश्य कभी प्रकांड पंडित बनकर प्रशंशा प्राप्त कर स्वंय की बड़ाई घोषित करना नहीं रहा है। जन कल्याण की भावना कबीर का उद्देश्य है। साहस के साथ समाज की हर त्रुटि को उन्होंने इंगित किया। कबीर का दृष्टिकोण भी वैज्ञानिक रहा है। अंधविश्वास, चमत्कार और कर्मकांड का कबीर ने प्रखर विरोध किया और समाज को सद्मार्ग की और अग्रसर किया। कथनी और करनी के भेद को लोगों को समझया। अपने अंतिम समय में भी संत कबीर साहेब ने काशी के स्थान पर मगहर को चुना ताकि लोगों के इस अन्धविश्वास को समाप्त किया जा सके की काशी में प्राण त्यागने पर स्वर्ग और मगहर में नर्क प्राप्त होता है।


कबीर साहेब ने जीवन के सार को लोगों तक सहजता और सरल भाषा में प्रस्तुत किया। लोभ मोह का त्याग, कथनी और करनी का भेद समाप्त करना, सादा जीवन और ऊचे विचार रखें, जीव मात्र के प्रति करुणा और दया का भाव, मालिक का सुमिरन करना है। कबीर ने संयम को जीवन का आधार माना है। उनके विचारों में मूलतः भक्ति भाव अधिक दिखाई देता है लेकिन फिर भी दार्शनिकता और रहस्य की भावना भी दिखाई देती है।

संत कबीर ने अपनी वाणी में निर्गुण राम की परिकल्पना पर जोर दिया है। उनके राम निर्गुण राम हैं और वह परम ईश्वर है। निर्गुण राम निरंजन है, माया से रहित है। वह स्वाश्वत है, ना उसका जन्म होता है और ना उसकी मृत्यु होती है। उसे किसी जाती या संप्रदाय में नहीं बांटा जा सकता है। संत कबीर के निर्गुण राम जगत के स्वामी हैं, श्रष्टि के रचियता हैं और सभी प्राणियों के स्वामी हैं। वह समस्त श्रष्टि में समाया हुआ है और पुरे ब्रह्माण्ड का स्वामी है। चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम वो सभी का स्वामी है।

मारी कहौत बहु डरौं हलका कहौं तो झूठ
मैं का जाणों रा कूं, आंखिन कबहुन दीख 
 
कबीर के अनुसार उसके बारे में कुछ भी कहना झूठ जैसा ही होगा क्यों की उसको किसी ने देखा नहीं है। कबीर राम को किसी आकृति में ढालना भी नहीं चाहते हैं क्योंकि ऐसा करने पर फिर वही परंपरा शुरू हो जाती जिसका कबीर ने विरोध किया। हिन्दू मूर्ति की पूजा करते थे और मुस्लिम मूर्ति भंजक थे। दोनों में सर्वोच्च शक्ति को लेकर विवाद था जिसे कबीर ने निर्गुण राम के सहारे समाप्त करने का प्रयत्न किया।

व्यापक ब्रह्म सबनिमैं एकै, को पंडित को जोगी।
रावण-राव कवनसूं कवन वेद को रोगी।

कबीर ऐसे राम के बारे में बताते हैं जिसका कोई आकर नहीं है लेकिन सगुन की तरहा समस्त गुणों से युक्त है लेकिन गुणातीत हैं। निर्गुण राम से अभिप्राय है की ईश्वर को किसी गुण , काल, आकृति, समय में बांधा नहीं जा सकता है। वह सर्वत्र है।

राम पियारा छांड़ि करि, करै आन का जाप ।
बेस्यां केरा पूत ज्यूँ, कहै कौन सू बाप ॥

कबीर ने राम को सब शक्तियों से ऊपर माना है और कहा की राम को छोड़ कर अन्य की पूजा, आराधना करना वेश्या के पुत्र के समान है जो अपना पिता किसे कहे। समस्त शक्तियों में राम ही सबसे बड़ी शक्ति है इसलिए उसी आराधना की जानी चाहिए।

निर्गुण राम निरंजन राया,
जिन वह सकल श्रृष्टि उपजाया ।

निगुण सगुन दोउ से न्यारा, कहैं कबीर सो राम हमारा ॥ निर्गुण राम सभी से पृथक है और समस्त श्रष्टि उसी के द्वारा पैदा हुयी है। वह निर्गुण और सगुन दोनों से ही पृथक है और वह सर्वोच्च शक्ति हमारे राम हैं।

राम सबको जोड़ने वाले हैं वे किसी भेद में नहीं है। वो जन मानस और आम जन जीवन में बसे हुए हैं। वे आम लोगों से पृथक नहीं हैं। तुलसीदास जी के सन्दर्भ में कबीर दास जी के विचार हैं की जिनके जैसे राम हैं उन्हें वैसा ही लाभ होता है। कबीर ने एक नए राम को गढ़ा जिसमे मुल्ला मौलवियों, साधु संतों, काजी फकीरों, योगियों के ज्ञान, सूफी संतों की वाणी का मिश्रण है जो सबका है और सर्वत्र है। वो किसी पैमाने में हरगिज नहीं है। उसकी कोई व्याख्या नहीं है, वह हर स्थान पर विराजमान है, सगुन और निर्गुण के भेद से परे है। जहाँ ये संसार कागज की पुड़िया है, नश्वर है वही राम सदा कायम रहता है। वो ना तो जन्म लेता है और ना ही मरता है। उसका कोई स्वरुप नहीं है।

जाके मुँह माथा ही नहीं रूपक रूप ।
पुहुपवास से पतला ऐसा तत अनूप॥


जिसके मुंह माथा नहीं है और कोई रूप भी नहीं है, वो तो पुष्प की वाश है जिसे महसूस किया जा सकता है। ना तो उसे देखा जा सकता है और ना ही उसे किसी रूप में ढाला जा सकता है। राम को पुष्प की सुगंध की तरह से महसूस किया जा सकता है। महसूस भी तभी किया जा सकता है जब काम, क्रोध और विषय विकार से व्यक्ति अपने को दूर कर ले। कबीर कहते हैं वो निर्गुण राम किस मंदिर विशेष, तीर्थ, मस्जिद में नहीं बल्कि लोगों के हृदय में रहता है। 
 
कबीर के राम एक आध्यात्मिक अवधारणा हैं। वे एक व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि एक शक्ति हैं जो सभी में समान रूप से विद्यमान हैं। कबीर के राम प्रेम, करुणा और सत्य के प्रतीक हैं।

कबीर के निर्गुण राम की कुछ विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

वे किसी भी रूप या नाम से नहीं पूजे जाते हैं।
कबीर के अनुसार, ईश्वर को किसी भी रूप या नाम से नहीं पूजना चाहिए। वे एक निर्गुण शक्ति हैं, और उन्हें किसी भी रूप या नाम से बांधना उनके स्वरूप को समझने से रोक देता है।

वे सभी में समान रूप से विद्यमान हैं।
कबीर के अनुसार, ईश्वर सभी में समान रूप से विद्यमान हैं। वे किसी विशेष समुदाय या धर्म के नहीं हैं। वे सभी के लिए समान हैं।

वे प्रेम, करुणा और सत्य के प्रतीक हैं।
कबीर के राम प्रेम, करुणा और सत्य के प्रतीक हैं। वे हमें इन गुणों को अपने जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं।

कबीर के राम की अवधारणा भारतीय धर्म और संस्कृति में एक महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने लोगों को यह समझने में मदद की कि ईश्वर किसी भी रूप या नाम से नहीं पूजे जाने चाहिए। वे सभी में समान रूप से विद्यमान हैं।

कबीर के निर्गुण राम की अवधारणा को निम्नलिखित दोहों से समझा जा सकता है:

"राम नाम ही सत्य है, झूठे सब ठाट।" - राम नाम ही सत्य है, बाकी सब झूठ है।
"राम साईं एक है, सबमें समाया।" - राम और साईं एक ही हैं, वे सभी में समाए हुए हैं।
"राम नाम की महिमा, ना जाने कोई।" - राम नाम की महिमा अपरंपार है, इसे कोई नहीं जान सकता।
इन दोहों में, कबीर कहते हैं कि राम नाम ही सत्य है। बाकी सब झूठ है। राम और साईं एक ही हैं, और वे सभी में समाए हुए हैं। राम नाम की महिमा अपरंपार है, इसे कोई नहीं जान सकता।

कबीर के निर्गुण राम की अवधारणा आज भी प्रासंगिक है। यह हमें यह समझने में मदद करती है कि ईश्वर एक व्यक्ति नहीं हैं, बल्कि एक शक्ति हैं जो सभी में समान रूप से विद्यमान हैं। हमें इन गुणों को अपने जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित करती है।

मोको कहाँ ढूंढें बन्दे, मैं तो तेरे पास में ।
ना तीरथ में ना मूरत में, ना एकांत निवास में ।
ना मंदिर में, ना मस्जिद में, ना काबे कैलाश में ॥
ना मैं जप में, ना मैं तप में, ना मैं व्रत उपास में ।
ना मैं क्रिया क्रम में रहता, ना ही योग संन्यास में ॥
नहीं प्राण में नहीं पिंड में, ना ब्रह्माण्ड आकाश में ।
ना मैं त्रिकुटी भवर में, सब स्वांसो के स्वास में ॥
खोजी होए तुरत मिल जाऊं एक पल की ही तलाश में ।
कहे कबीर सुनो भाई साधो, मैं तो हूँ विशवास में ॥
जहाँ प्रेम है, सत्य है, मानवता है वही राम है वो ही कबीर का राम है।

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