कबीर हरि का भावता, झीणां पंजर तास हिंदी मीनिंग Kabir Hari Ka Bhavata Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
कबीर' हरि का भावता, झीणां पंजर तास ।रैणि न आवै नींदड़ी, अंगि न चढ़ई मांस ॥
Kabir Hari Ka Bhavata, Jheena Panjar Taas,
Raini Na Aave Nindadi, Angi Na Chadhai Maas.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
भक्ति मार्ग में रत साधक का चित्रण इस दोहे में साहेब ने किया है. इस दोहे में कबीरदास जी ने भक्त के बारे में वर्णन किया है की कैसे वह भक्ति में सांसारिक क्रियाओं के साथ शारीरिक क्रियाओं/ शरीर के प्रति भी अनासक्त हो गया है। वह ईश्वर की भक्ति/ प्रेम में इतना डूबा हुआ है कि उसका शरीर काया मात्र रह गया है, क्षीण हो गया है। उसके शरीर पर मांस नहीं चढ़ रहा है, क्योंकि वह भगवान के ध्यान में इतना लीन रहता है कि उसे भूख-प्यास नहीं लगती है। वह रात भर भगवान का ध्यान करता रहता है, इसलिए उसे नींद नहीं आती है। अतः आशय है की ईश्वर की भक्ति में व्यक्ति अपने शरीर की परवाह भी नहीं करता है और भक्त पूर्ण रूप से भक्ति में लीन हो जाता है।
इस कबीर के दोहे की व्याख्या
कबीर कहते हैं -हरि का भावता, झीणां पंजर तासभगवान के प्रेम में डूबा हुआ व्यक्ति/साधक का शरीर काया मात्र रह जाता है, वह सूखने लगता है। उसका शरीर सूख जाता है, क्योंकि वह भगवान के ध्यान में इतना लीन रहता है कि उसे भूख-प्यास नहीं लगती है, वह अपने शरीर की सुध बुध खो देता है।
रैणि न आवै नींदड़ी, अंगि न चढ़ई मांस
इस पंक्ति में कबीरदास जी कह रहे हैं कि भगवान के प्रेम में डूबा हुआ व्यक्ति रात भर भगवान का ध्यान करता रहता है, इसलिए उसे नींद नहीं आती है। उसके शरीर पर मांस नहीं चढ़ रहा है, क्योंकि वह भगवान के ध्यान में इतना लीन रहता है कि उसे भूख-प्यास नहीं लगती है।
आशय है की सच्चा भक्त सांसारिक क्रियाओं और संबंधों से विमुख हो जाता है उसे अपने शरीर की सुध बुध भी नहीं रहती है और वह निरंतर इश्वर की प्राप्ति में ही लगा रहता है.
भावार्थ
कबीर दास जी कहते हैं कि हरि का भक्त अपने शरीर का ध्यान नहीं रख पाता है, क्योंकि वह भक्ति में ही डूबा रहता है। इसका कारण यह है कि उसका मन हरि की भक्ति में लगा रहता है। उसे रात को भी नींद नहीं आती है, क्योंकि वह हरि के मिलन की प्रतीक्षा में रहता है। उसके शरीर पर मांस नहीं चढ़ता है, क्योंकि वह अपने शरीर की सुध नहीं रखता है। उसका ध्यान तो केवल हरि में ही लगा रहता है।आपको कबीर साहेब के ये दोहे अर्थ सहित अधिक पसंद आयेंगे -
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