निरबैरी निहकामता साईं सेती नेह मीनिंग Nirberi Nihkamata Meaning : kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit
निरबैरी निहकामता, साईं सेती नेह।विषिया सूं न्यारा रहै, संतनि का अंग एह॥
Nirberi Nihkamata Sai Seti Neh,
Vishiya Su Nyara Rahe, Santani Ko Ang Ek.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर साहेब संतजन की विशेषता बताते हुए सन्देश देते हैं की कसंत किसी से भी बैर नहीं रखते हैं। वे किसी भी चीज़ की कामना नहीं करते हैं। उनका प्रेम केवल एक प्रभु में होता है। और वे विषय-वासनाओं से दूर रहते हैं। पहली पंक्ति में, कबीर कहते हैं कि संत किसी से भी बैर नहीं रखते हैं, वे बैरभाव और अहम् से मुक्त होते हैं। संत सभी के साथ प्रेम करते हैं। वे किसी से भी बैर नहीं रखते हैं। संत किसी भी चीज़ की कामना नहीं करते हैं और वे सांसारिक चीज़ों की कामना नहीं करते हैं। वे केवल ईश्वर की प्राप्ति की कामना करते हैं। संत का प्रेम केवल एक प्रभु में होता है और संत का प्रेम केवल ईश्वर में होता है। वे किसी भी अन्य चीज़ से प्रेम नहीं करते हैं। संत विषय-वासनाओं से दूर रहते हैं। कबीर कहते हैं कि संत विषय-वासनाओं में फँसते नहीं हैं। वे इन्द्रियों को वश में रखते हैं।
इस दोहे में कबीर साहेब संतों के बारे में बताकर हमें शिक्षा देते हैं की एक सच्चा संत कैसा होता है. साधक को सच्चे संत/ग्यानी की शरण में जाना चाहिए और अपने जीवन को उनके द्वारा बताई गई शिक्षाओं के माध्यम से सार्थक करना चाहिए.
इस दोहे में कबीर साहेब संतों के बारे में बताकर हमें शिक्षा देते हैं की एक सच्चा संत कैसा होता है. साधक को सच्चे संत/ग्यानी की शरण में जाना चाहिए और अपने जीवन को उनके द्वारा बताई गई शिक्षाओं के माध्यम से सार्थक करना चाहिए.
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