सिहों के लेहँड़ नहीं हंसों की नहीं पाँत हिंदी मीनिंग Sinho Ki Lehad Nahi Meaning

सिहों के लेहँड़ नहीं हंसों की नहीं पाँत हिंदी मीनिंग Sinho Ki Lehad Nahi Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi arth/Bhavarth Sahit

सिहों के लेहँड़ नहीं, हंसों की नहीं पाँत ।
लालों की नहि बोरियाँ, साध न चलैं जमात ॥

Siho Ke Lehand Nahi, Hanso Ki Nahi Paant,
Lalo Ki Nahi Boriya, Sadh Na Chale Jamat.

सिहों के लेहँड़ नहीं हंसों की नहीं पाँत हिंदी मीनिंग Sinho Ki Lehad Nahi Meaning

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi

कबीर साहेब ने इस दोहे में संतों के बारे में महत्पूर्ण सन्देश दिया है और साधुओं की विशेषताओं का वर्णन किया है। कबीर साहेब कहते हैं कि साधुओं की कोई जमात नहीं होती है, वे किसी संगठन में नहीं रहते हैं। वे अकेले ही अपने मार्ग पर चलते हैं, वे पक्ष विपक्ष से और गठजोड़ से भी दूर ही रहते हैं। वे किसी भी प्रकार के सांसारिक मोह-माया से बंधे नहीं होते हैं, वे सवंत्र हैं। सिंहों के झुण्ड नहीं होते हैं और न हंसों की कतारें होती हैं। इसी प्रकार, साधुओं की भी कोई जमात नहीं होती है। वे अकेले ही अपने मार्ग पर चलते हैं।  लाल-रत्नों को बोरियों में नहीं भरा जाता है, वे ज्यादा मात्र में नहीं होते हैं। इसी प्रकार, साधुओं को भी किसी भी प्रकार के सांसारिक मोह-माया से नहीं भरा जाता है, साथ ही वे अल्प होते हैं, हजारों में एक ही मिलते हैं। वे सभी सांसारिक मोह-माया से मुक्त होते हैं। साध न चलैं जमात: साधु जमात को साथ लेकर नहीं चलते हैं। वे अपने मार्ग पर अकेले ही चलते हैं।
 

कबीर के संदेश

कबीर एक महान संत कवि थे, जिन्होंने 15वीं शताब्दी में उत्तर भारत में जन्म लिया था। उन्होंने अपने दोहों और रचनाओं के माध्यम से अपने विचारों को व्यक्त किया। कबीर के संदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि उनके समय में थे।

ईश्वर

कबीर एक निर्गुण भक्त थे। वे मानते थे कि ईश्वर एक है और वह किसी भी रूप या आकार में नहीं है। उन्होंने ईश्वर को एक प्रेमपूर्ण पिता के रूप में देखा, जो सभी प्राणियों पर समान दया रखता है। कबीर एक निर्गुणवादी संत थे। उनका मानना था कि ईश्वर एक है, और वह सभी में मौजूद है। वे मूर्तिपूजा और कर्मकांड के विरोधी थे।

कबीर के विचार इश्वर पर निम्नलिखित हैं:
ईश्वर एक है, और वह सभी में मौजूद है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर किसी विशेष जाति, धर्म या समुदाय का नहीं है। वह सभी में मौजूद है, चाहे वह कोई भी हो।
ईश्वर को किसी भी रूप में नहीं देखा जा सकता है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर को किसी भी रूप में नहीं देखा जा सकता है। वह निराकार है।
ईश्वर को केवल प्रेम और भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर को केवल प्रेम और भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है।

कबीर के विचार इश्वर पर उनके समय में बहुत ही क्रांतिकारी थे। उन्होंने लोगों को यह समझाया कि ईश्वर को किसी भी विशेष रूप में नहीं देखा जा सकता है। उसे केवल प्रेम और भक्ति से प्राप्त किया जा सकता है।

कबीर के विचार इश्वर पर आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने कि उनके समय में थे। वे हमें एक बेहतर इंसान बनने और एक बेहतर समाज बनाने में मदद कर सकते हैं। इन दोहों में, कबीर कहते हैं कि ईश्वर एक है, और वह सभी में मौजूद है। उसे किसी भी मंदिर या मूर्ति में नहीं देखा जा सकता है। उसे केवल अपने मन में खोजा जा सकता है।
कबीर के ईश्वर के बारे में कुछ विचार इस प्रकार हैं:
ईश्वर एक है, नाम अनेक: कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर एक है, लेकिन उसका नाम अनेक है। वे कहते हैं कि ईश्वर को किसी भी रूप या आकार में नहीं देखा जा सकता है। वह केवल हमारे दिल में है।
ईश्वर सबमें है, बस उसे पहचानने की जरूरत है: कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर सभी प्राणियों में मौजूद है। हमें बस उसे पहचानने की जरूरत है। वे कहते हैं कि ईश्वर को केवल अपने दिल में खोजा जा सकता है।
ईश्वर सर्वव्यापी है: कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर सर्वव्यापी है। वह हर जगह मौजूद है।
ईश्वर सर्वशक्तिमान है: कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर सर्वशक्तिमान है। वह सब कुछ कर सकता है।
ईश्वर दयालु है: कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर दयालु है। वह सभी प्राणियों पर समान दया रखता है।
कबीर के ईश्वर के विचारों का आधुनिक समय में भी बहुत महत्व है। वे हमें यह सिखाते हैं कि ईश्वर किसी विशेष रूप या आकार में नहीं है। वह सभी प्राणियों में मौजूद है। हमें सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और करुणा का भाव रखना चाहिए। 

कर्म पर कबीर के विचार

कबीर मानते थे कि कर्म ही जीवन का सार है। उन्होंने कहा कि अच्छे कर्मों से ही मोक्ष मिल सकता है। उन्होंने कर्म के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अच्छे कर्मों से ही व्यक्ति अपने जीवन को सफल बना सकता है। कर्म ही पूजा है, फल की चिंता नहीं: कबीरदास जी कहते हैं कि कर्म ही पूजा है, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। वे कहते हैं कि हमें अच्छे कर्म करने चाहिए, चाहे उसका कोई फल भी न मिले। कर्म के बिना मोक्ष नहीं मिल सकता है: कबीरदास जी कहते हैं कि अच्छे कर्मों से ही मोक्ष मिल सकता है। वे कहते हैं कि बिना अच्छे कर्मों के मोक्ष प्राप्त करना असंभव है। कर्मों का फल भोगना पड़ता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा: कबीरदास जी कहते हैं कि कर्मों का फल भोगना पड़ता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। वे कहते हैं कि हमें अपने कर्मों के फल को सहना होगा, चाहे वह अच्छा हो या बुरा।
कर्म ही पूजा है, फल की चिंता नहीं:

कबीर के इस विचार से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अच्छे कर्म करने चाहिए, चाहे उसका कोई फल भी न मिले। हमें केवल अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए, न कि उनके फल पर। कबीर के इस विचार से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने जीवन में अच्छे कर्म करने चाहिए। अच्छे कर्मों से ही हम अपने जीवन में सफलता और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।

कर्मों का फल भोगना पड़ता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा:
कबीर के इस विचार से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार होना चाहिए। हमें अपने कर्मों के फल को सहन करना चाहिए, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। कबीर के कर्म के विचारों का आधुनिक समय में भी बहुत महत्व है। वे हमें यह सिखाते हैं कि हमें अच्छे कर्म करने चाहिए, चाहे उसका कोई फल भी न मिले। हमें अपने कर्मों के लिए जिम्मेदार होना चाहिए और उनके फल को सहन करना चाहिए।

कबीर साहेब के अनुसार धर्म क्या है ?

कबीर साहेब के अनुसार धर्म एक आंतरिक मार्ग है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है। वह बाहरी अनुष्ठानों और कर्मकांडों को धर्म का आधार नहीं मानते थे। उनके अनुसार, धर्म का मूल उद्देश्य मनुष्य को ईश्वर से जोड़ना है और उसे मोक्ष की प्राप्ति कराना है।

कबीर साहेब ने धर्म के बारे में कई दोहे लिखे हैं, जिनमें उन्होंने धर्म की सही परिभाषा और उसके उद्देश्य को स्पष्ट किया है।

कबीर साहेब के अनुसार, धर्म का मूल उद्देश्य मनुष्य को ईश्वर से जोड़ना है। वह कहते हैं कि ईश्वर एक है और सभी धर्मों के लोग उसी ईश्वर की पूजा करते हैं। इसलिए, सभी धर्मों के लोग एक-दूसरे के प्रति प्रेम और भाईचारे का भाव रखें।

कबीर साहेब ने धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव और अंधविश्वासों की भी निंदा की। उन्होंने कहा कि धर्म का उद्देश्य मनुष्य को शांति और प्रेम का पाठ पढ़ाना है, न कि उसे भय और अंधविश्वास में डुबोना।

कबीर साहेब के विचार आज भी प्रासंगिक हैं। उनका धर्म की व्याख्या एक ऐसी मार्गदर्शिका है, जो मनुष्य को ईश्वर के मार्ग पर चलने और मोक्ष की प्राप्ति करने में मदद करती है। 

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