मन तू पार उतर कहँ जैहौ Man Tu Paar Utar Kah Jaiho Meaning

मन तू पार उतर कहँ जैहौ Man Tu Paar Utar Kah Jaiho Meaning : Kabir Ke Pad Hindi Arth/Bhavarth Sahit

 
मन तू पार उतर कहँ जैहौ Man Tu Paar Utar Kah Jaiho Meaning : Kabir Ke Pad Hindi Arth/Bhavarth Sahit

मन, तू पार उतर कहँ जैहौ।
आगे पंथी पंथ न कोई, कूच-मुकाम न पैहौ।
नहिं तहँ नीर, नाव नहि खेवट, ना गुन खैंचन हारा।
धरनी-गगन-कल्प कछु नाहीं, ना कछु वार न पारा।
नहिं तन, नहिं मन, नहीं अपनपौ सुन्न में सुद्ध न पैहौ।
बलीवान होय पैठो घट में, वाहीं ठौरें होइहौ।
बार हि बार विचार देख मन, अंत कहूँ मत जैहौ।
कहैं कबीर सब छाड़ि कलपना, ज्यों के त्यों ठहरैहौ॥
 
कबीर साहेब स्वंय के मन को सम्बोधित करते हुए कहते हैं की हे मन, तू पार उतरकर कहाँ जाएगा ? तेरा कौन ठौर ठिकाना है ? तुम्हारे सामने ना तो कोई राह है और नाहीं कोई राही है। आशय है की तुम्हारे पास कोई राह नहीं है, ना तो कोई कुच है नाहीं कोई पड़ाव है। ऐसे स्थान पर ना तो कोई नाव है नाही कोई खेवनहार ही है। नांव में बाँधने के लिए कोई रस्सी नहीं है और नाही किनारे उसे कोई खींचने ही वाला है। उसके आर और पार कुछ भी नहीं है। ऐसे स्थान पर ना तो कोई आकाश है और नाही कोई धरती है। ना तो तन है और नाहीं कोई मन है। ऐसी जगह पर कोई अपनी आत्मा की प्यास कैसे बुझाये। वहां निर्जन और शून्य का।  तुम आशा और हिम्मत रखो, अपने घट में ही तुमको प्रकाश मिलेगा। तुम अच्छी तरह से सोच विचार कर लो। तुम कल्पना को छोड़ दो अपने अस्तित्व में लीन हो जाओ। कबीर के इस पद में, वे मन को सांसारिक मोह-माया से मुक्त होने और अपने अस्तित्व में लीन होने का संदेश देते हैं। वे कहते हैं कि मन हमेशा कुछ न कुछ पाने के लिए प्यासा रहता है। वह हमेशा किसी न किसी लक्ष्य की ओर बढ़ता रहता है। लेकिन यह लक्ष्य कभी भी पूरा नहीं होता है। क्योंकि मन की इच्छाएं अनंत हैं।

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