परमार्थ के बारे में कबीर दास जी के विचार : परमारथ को कबीर दास जी ने बहुत ही ज्यादा महत्व दिया है कहते हैं मांगू नहीं दिल में मर जाऊं स्वार्थ के लिए मैं किसी से मांग लूंगा नहीं लेकिन यदि मुझे किसी दूसरे के हित के लिए मांगना पड़े तो मुझे इसमें कोई लज्जा नहीं " परमारथ के कारने मोहि ना आवे लाज"
मरूँ पर माँगू नहीं,
अपने तन के काज |
परमारथ के कारने,
मोहिं न आवै लाज
लोग सिर्फ सुख में ही साथी होते हैं आने पर वह दूर चले जाते हैं लेकिन जो लोग साठी नहीं होते हैं पर मारती होते हैं वह सुख और दुख दोनों में हम रहते हुए सदैव साथ निभाते हैं स्वार्थी लोग सिर्फ सुख के संगी होते हैं
स्वारथ सुखा लाकड़ा,
छाँह बिहूना सूल |
पीपल परमारथ भजो,
सुखसागर को मूल
कबीर दास जी कहते हैं कि स्वार्थी लोग तो सूखी लकड़ी के समान होते हैं जो गर्मी में छाया भी नहीं देते हैं और उनके कांटे ही कांटे होते हैं लिखित प्रमाण थी लोग पीपल के पेड़ की तरह होते हैं जिसकी गहरी लंबी जड़े होती हैं जिससे हमें सुख की प्राप्ति होती है
परमारथ पाको रतन,
कबहुँ न दीजै पीठ |
स्वारथ सेमल फूल है,
कली अपूठी पीठ
परमार्थ सबसे उत्तम रत्न है उसकी और हमें कभी पीठ नहीं करनी चाहिए अर्थात हमें सदैव परमार्थ के साथ चलना चाहिए जबकि स्वार्थ को कबीर दास जी ने सेमल का फूल बताया है और कहा है कि वह उससे मनफूल के समान है जिसकी कली अपनी और ही खिलती है अर्थात उससे किसी दूसरे को फायदा नहीं पहुंचता है वह उल्टी खिलती है
प्रीति रीति सब अर्थ की,
परमारथ की नहिं |
कहैं कबीर परमारथी,
बिरला कोई कलि माहिं
संसार की प्रीत सिर्फ धर्म से है परमार्थ नहीं संसार में प्रमाण थी मनुष्य बिरला ही कोई होता है जिस के कार्य में खुद का स्वार्थ निहित नहीं होता है संसार मतलबी है इसमें परमार्थी व्यक्ति कोई बिरला ही होता है
चेतावनी भजन : चेतावनी भजन का का मूल विषय व्यक्ति को उसके अवगुणों के बारे में सचेत करना और सत्य की राह पर अग्रसर करना होता है। राजस्थानी चेतावनी भजनो का मूल विषय यही है। गुरु की शरण में जाकर जीवन के उद्देश्य के प्रति व्यक्ति को सचेत करना ही इनका भाव है। चेतावनी भजनों में कबीर के भजनो को क्षेत्रीय भाषा में गया जाता है या इनका कुछ अंश काम में लिया जाता है।
देसी भजन : देसी भजनों में देसज भाषा का प्रयोग किया जाता है। इसमें छंद, गीत शैली आदि का कोई विशेष ध्यान नहीं रखा जाता है और उद्देश्य होता है की सहज भाषा में लोगों तक सन्देश पहुंच जाय। राग का भी कोई विशेष नियम नहीं होता है। क्षेत्रीय स्तर पर प्रचलित वाद्य यंत्रों का प्रयोग इनमे किया जाता है। जैसे राजस्थान में रावण हत्था एक वाद्य यन्त्र है इस पर सुन्दर तरीके से भजनो को गाय जाता है। इसके साथ में अन्य वाद्य यंत्रों की अनिवार्यता नहीं होती है। विशेष बात है लोगों तक सन्देश को पहुंचना। लोक गीत पुरे समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनके इनके माध्यम से पुरे समाज के बारे में जानकारी प्राप्त होती हैं। देसी भजनों के तो देवताओं की स्तुति होती है और एक चेतावनी भजन जिनमे गुरु भजन और व्यक्ति को सद्मार्ग के अनुसरण सबंधी भजन होते हैं। राजस्थानी चेतावनी भजनों में कबीर भजनों का प्रमुख योगदान हैं जिन्हे क्षेत्रीय भाषा में अनुवादित करके या फिर उनके कुछ अंश को कार्य में लिया जाता है। चेतावनी भजन अलग अलग अंचल के भिन्न हैं। हेली भजन चेतावनी भजनों का ही एक प्रकार है। कर्मा भाई के भजन अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं।
नाथ पंत भजन और मीरा भजन भी देसी भजनों की श्रृंखला में ही गिने जाते हैं। मीरा के भजन जहाँ कृष्ण भक्ति से सरोबार हैं वही नाथ जी की भजनों में विभिन्न देवताओं की स्तुति के आलावा गुरु गोरखनाथ के भजन प्रमुख हैं। मीरा बाई के पदों के अलावा कबीर, दादू, रैदास, चंद्रस्वामी तथा बख्तावरजी के पद भजनों के द्वारा गाये जाते हैं। देवताओं के भजनों में विनायक, महादेव, विष्णु, राम, कृष्ण, बालाजी (हनुमान), भैंरू, जुंझार, पाबू, तेजा, गोगा, रामदेव, देवजी, रणक दे, सती माता, दियाड़ी माता, सीतला माता, भोमियाजी आदि के भजन प्रमुखता से गाये जाते हैं। इन भजनों को अंचल विशेष में कुछ जातियों के द्वारा इन्हे गाना ही उनका काम होता है।