राणा जी म्हाँने या बदनामी लागे मीठी
राणा जी म्हाँने या बदनामी लागे मीठी
राणा जी म्हाँने या बदनामी लागे मीठीराणा जी म्हाँने या बदनामी लागे मीठी।।टेक।।
कोई निन्दो कोई बिन्दो, मैं चलूँगी चाल अपूठी।
साँकड़ली सेर्यां जन मिलिया कर्यूं कर फिरूँ अपूठी।
सत सँगति सा ग्यान सुणैछी तुरजन लोगाँ ने दीठी।
मीराँ रो प्रभु गिरधरनागर, दुरजन जलो जा अंगीठी।।
मेवाड़ी राणा या बदनामी लागे मीठी ।। अभयदास जी महाराज | Abhaydas Ji maharaj |मीरा बाई भजन
मीरा की भक्ति का यह स्वरूप सांसारिक मान्यताओं से परे प्रेम और समर्पण की गहराई को दर्शाता है। जब भक्त अपने प्रभु के प्रति अटूट श्रद्धा में रम जाता है, तब उसे लोक-लाज, निंदा और सामाजिक मान्यताओं का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यहाँ प्रेम केवल भावनाओं तक सीमित नहीं, बल्कि यह आत्मा की उस अवस्था तक पहुँचने का मार्ग है, जहाँ केवल कृष्ण ही शेष रहते हैं।
मीरा की यह भावना बताती है कि ईश्वर की खोज में बाधाएँ और समाज के विरोध होते हैं, परंतु जब मन प्रभु में समर्पित हो जाता है, तब यह सब केवल सांसारिक भ्रम बनकर रह जाते हैं। उनके चरणों की ओर बढ़ने का मार्ग संकीर्ण हो सकता है, परंतु जो आत्मा सच्चे प्रेम में लीन हो जाती है, वह उन बाधाओं से अछूती रहती है।
सत्संगति और ज्ञान का यह आह्वान बताता है कि सत्य की खोज सांसारिक विचारों से परे होती है। जब व्यक्ति ईश्वर की भक्ति में रम जाता है, तब संसार की कठिनाइयाँ केवल परीक्षाएँ बन जाती हैं, जिनका पार होना ही आत्मा को शुद्ध करता है। यही भक्ति का सत्य स्वरूप है—जहाँ प्रेम, श्रद्धा और निर्भयता से प्रभु के चरणों की ओर बढ़ने की साधना की जाती है, और यही साधना अंततः आत्मा को प्रभु के आनंद में विलीन कर देती है।
राणाजी की बदनामी मीठी लगती है, क्योंकि यह कृष्ण-प्रेम की राह का हिस्सा है। कोई निंदा करे, कोई प्रशंसा, मन बस प्रभु की ओर चलता है, दुनिया की उल्टी चाल से बेपरवाह। संकरी गलियों में गुरुजनों का साथ मिला, जिसने सत्संग और ज्ञान का मार्ग दिखाया। सच्चाई की राह पर चलते हुए तुच्छ लोग जलें, पर मीराबाई का मन गिरधर में रमा है। यह प्रेम और भक्ति ऐसी है, जो हर अपवाद को आग में जलाकर, मन को शुद्ध और प्रभु के करीब ले जाती है।
- रूढ़ियों का विरोध : मीरा बाई के पदों में सती प्रथा का विरोध भी रूढ़ियों का ही विरोध है जो दर्शाता है की उनका मानवतावादी दृष्टिकोण रहा है। मीरा बाई के पति के देहांत हो जाने पर कहा की हम भजन करेंग सती नहीं होउंगी। परिवार के लोगों को मीरा बायीं का यह कदम अच्छा नहीं लगा और उन्होंने मीरा बाई को समझाया की वे मंदिरों में नाचना छोड़ दे। उन्हें जहर का प्याला देकर मारने की कोशिश भी की गयी। मीरा बाई ने इन यातनाओं के कारन से ही हर छोड़ दिया और वृन्दावन में जाकर कृष्ण की भक्ति करने में अपना समय व्यतीत किया। मीरा बाई ने पर्दा भी छोड़ दिया और घोषित किया की वे ईश्वर के प्रति जवाबदेह हैं समाज के प्रति नहीं। उन्होंने पर्दा और काले वस्त्रों का त्याग करके साधु संतों के साथ रहकर भक्ति को चरम पर ले गयीं।
- नारी के शोषण का विरोध : मीरा बाई ने स्त्रियों के शोषण का भी विरोध किया और कहा की वे किसी परदे प्रथा को नहीं मानती हैं और उनका सुहाग अमर है। मध्यकाल में एक और जहाँ नारी का शोषण किया जा रहा था वाही मीरा बाई ने स्त्री की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अपने काव्य और भक्ति को आधार मानकर प्रचलित समस्त नारी विरोधी मान्यताओं का एक तरह से विरोध किया उन्होंने लिखा की राणा जी मुझे बदनामी का कोई डर नहीं हैं में तो कृष्ण को अपना सबकुछ मानती हूँ। उन्होंने लिखा की उन्हें अब कोई लाज का डर नहीं है। तेरो को नहिं रोकणहार मगन हो मीरां चली।।
लाज सरम कुलकी मरजादा सिरसें दूर करी।
मान अपमान दो धर पटके निकसी ग्यान गली।।
ऊंची अटरिया लाल किंवडिया निरगुण सेज बिछी।
पंचरंगी झालर सुभ सोहै फूलन बूल कली।।
बाजूबंद कडूला सोहे सिंदूर मांग भरी।
सुमिरण थाल हाथ में लीन्हों सोभा अधिक खरी।।
सेज सुखमणा मीरा सेहै सुभ है आज घरी।
तुम जा राणा घर आपणे मेरी थांरी नाहिं सरी।
मीरा बाई ने लिखा की यदि उनकी भक्ति में कोई बाधक बनता है वे समस्त मान्यताओं का विरोध करती हुयी कृष्ण भक्ति ही करेंग।
- मीरा का काव्य लयात्मक और गेय है अर्थात इसे गाया जा सकता है।
- कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति अनन्य और पूर्ण समर्पण को दर्शाती है।
- मीरा बाई भगवान् कृष्ण की उपासक हैं और उनके पदों में सगुन इश्वर का परिचय प्राप्त होता है।
- मीरा के काव्य में राजस्थानी, ब्रज, पंजाबी और गुजराती भाषा के शब्दों का उपयोग किया गया है।
- मीरा के काव्य में कहीं भी पांडित्य प्रदर्शन नहीं दिखाई देता है।
- अनावश्यक छंद, अलंकारों का उपयोग नहीं किया गया है।
- मीरा के काव्य में प्रधान रूप से माधुर्य भाव दिखाई देता है।
- मीरा बाई की भक्ति में पूर्ण समर्पण, सगुन इश्वर, नवधा भक्ति के गुन दिखाई देती है।
- मीरा बाई के काव्य में श्रींगार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का चित्रण प्राप्त होता है।
- मीरा का काव्य गीति काव्य का उत्कर्ष उदाहरण है।
- मीरा के काव्य में उच्च आध्यात्मिक अनुभूति प्रदर्शित होती है।