राणा जी म्हाँने या बदनामी लागे मीठी लिरिक्स Rana Ji Mhane Ya Badnami Lage Mithi Lyrics

राणा जी म्हाँने या बदनामी लागे मीठी लिरिक्स Rana Ji Mhane Ya Badnami Lage Mithi Lyrics Meera Bhajan Hindi

राणा जी म्हाँने या बदनामी लागे मीठी
राणा जी म्हाँने या बदनामी लागे मीठी।।टेक।।
कोई निन्दो कोई बिन्दो, मैं चलूँगी चाल अपूठी।
साँकड़ली सेर्यां जन मिलिया कर्यूं कर फिरूँ अपूठी।
सत सँगति सा ग्यान सुणैछी तुरजन लोगाँ ने दीठी।
मीराँ रो प्रभु गिरधरनागर, दुरजन जलो जा अंगीठी।।
Aana Jee Mhaanne Ya Badanaamee Laage Meethee
Raana Jee Mhaanne Ya Badanaamee Laage Meethee..tek..
Koee Nindo Koee Bindo, Main Chaloongee Chaal Apoothee.
Saankadalee Seryaan Jan Miliya Karyoon Kar Phiroon Apoothee.
Sat Sangati Sa Gyaan Sunaichhee Turajan Logaan Ne Deethee.
Meeraan Ro Prabhu Giradharanaagar, Durajan Jalo Ja Angeethee..
(म्हांने=मुझको, या=कृष्ण प्रेम के सम्बन्धित, बिन्दो= विनती करना, प्रशंसा करना, अपूठी=उल्टी, सांकलड़ी= संकरी, सेर्यां=गली, जन=गुरू, अपूठी=वापिस, दीठी=देखी)

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  • रूढ़ियों का विरोध : मीरा बाई के पदों में सती प्रथा का विरोध भी रूढ़ियों का ही विरोध है जो दर्शाता है की उनका मानवतावादी दृष्टिकोण रहा है। मीरा बाई के पति के देहांत हो जाने पर कहा की हम भजन करेंग सती नहीं होउंगी। परिवार के लोगों को मीरा बायीं का यह कदम अच्छा नहीं लगा और उन्होंने मीरा बाई को समझाया की वे मंदिरों में नाचना छोड़ दे। उन्हें जहर का प्याला देकर मारने की कोशिश भी की गयी। मीरा बाई ने इन यातनाओं के कारन से ही हर छोड़ दिया और वृन्दावन में जाकर कृष्ण की भक्ति करने में अपना समय व्यतीत किया। मीरा बाई ने पर्दा भी छोड़ दिया और घोषित किया की वे ईश्वर के प्रति जवाबदेह हैं समाज के प्रति नहीं। उन्होंने पर्दा और काले वस्त्रों का त्याग करके साधु संतों के साथ रहकर भक्ति को चरम पर ले गयीं। 
  • नारी के शोषण का विरोध : मीरा बाई ने स्त्रियों के शोषण का भी विरोध किया और कहा की वे किसी परदे प्रथा को नहीं मानती हैं और उनका सुहाग अमर है। मध्यकाल में एक और जहाँ नारी का शोषण किया जा रहा था वाही मीरा बाई ने स्त्री की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए अपने काव्य और भक्ति को आधार मानकर प्रचलित समस्त नारी विरोधी मान्यताओं का एक तरह से विरोध किया उन्होंने लिखा की राणा जी मुझे बदनामी का कोई डर नहीं हैं में तो कृष्ण को अपना सबकुछ मानती हूँ। उन्होंने लिखा की उन्हें अब कोई लाज का डर नहीं है। तेरो को नहिं रोकणहार मगन हो मीरां चली।।
    लाज सरम कुलकी मरजादा सिरसें दूर करी।
    मान अपमान दो धर पटके निकसी ग्यान गली।।
    ऊंची अटरिया लाल किंवडिया निरगुण सेज बिछी।
    पंचरंगी झालर सुभ सोहै फूलन बूल कली।।
    बाजूबंद कडूला सोहे सिंदूर मांग भरी।
    सुमिरण थाल हाथ में लीन्हों सोभा अधिक खरी।।
    सेज सुखमणा मीरा सेहै सुभ है आज घरी।
    तुम जा राणा घर आपणे मेरी थांरी नाहिं सरी।
    मीरा बाई ने लिखा की यदि उनकी भक्ति में कोई बाधक बनता है वे समस्त मान्यताओं का विरोध करती हुयी कृष्ण भक्ति ही करेंग।
मीरा के काव्य की विशेषताएं :-

  • मीरा का काव्य लयात्मक और गेय है अर्थात इसे गाया जा सकता है।
  • कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति अनन्य और पूर्ण समर्पण को दर्शाती है।
  • मीरा बाई भगवान् कृष्ण की उपासक हैं और उनके पदों में सगुन इश्वर का परिचय प्राप्त होता है।
  • मीरा के काव्य में राजस्थानी, ब्रज, पंजाबी और गुजराती भाषा के शब्दों का उपयोग किया गया है।
  • मीरा के काव्य में कहीं भी पांडित्य प्रदर्शन नहीं दिखाई देता है।
  • अनावश्यक छंद, अलंकारों का उपयोग नहीं किया गया है।
  • मीरा के काव्य में प्रधान रूप से माधुर्य भाव दिखाई देता है।
  • मीरा बाई की भक्ति में पूर्ण समर्पण, सगुन इश्वर, नवधा भक्ति के गुन दिखाई देती है।
  • मीरा बाई के काव्य में श्रींगार रस के संयोग और वियोग दोनों पक्षों का चित्रण प्राप्त होता है।
  • मीरा का काव्य गीति काव्य का उत्कर्ष उदाहरण है।
  • मीरा के काव्य में उच्च आध्यात्मिक अनुभूति प्रदर्शित होती है।
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