
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
सूरदास की रचनाओं में श्रीकृष्ण की लीलाओं का अत्यंत मार्मिक और भावपूर्ण वर्णन मिलता है। उन्होंने श्रीकृष्ण के बाल्यकाल, किशोरावस्था और युवावस्था की लीलाओं का बहुत ही सुंदर और सजीव चित्रण किया है। उनके पदों में श्रीकृष्ण की लीलाओं की छटा देखते ही बनती है।
प्रभु की लीला ऐसी है, जो शब्दों में नहीं समाती। जैसे कोई गूंगा मधुर फल का स्वाद चखकर उसे बयान नहीं कर पाता, वही स्वाद केवल उसके भीतर ही रस घोलता है। यह प्रभु का परम रस है, जो हर किसी को अनंत तृप्ति देता है, मन को आनंद से भर देता है। पर यह रस मन और वाणी की पहुंच से परे है, केवल वही इसे जानता है, जो इसे अनुभव करता है।
प्रभु का स्वरूप बिना रूप, बिना गुण, बिना जाति या युक्ति के है। मन उनकी ओर दौड़ता है, पर बिना आधार के भटकता रहता है। वह हर तरह से अगम्य है, विचारों से परे है। इसलिए सूरदास उनकी सगुण लीला का गान करते हैं, क्योंकि उसमें प्रभु का प्रेम, उनकी नटखट मुस्कान, और उनकी करुणा साकार हो उठती है।
यह लीला प्रेम का सेतु है, जो आत्मा को प्रभु से जोड़ता है। जैसे गूंगे का स्वाद केवल अनुभव में ही जीवंत है, वैसे ही प्रभु की महिमा भक्ति के रंग में ही उजागर होती है। यह भक्ति मन को ठहराव देती है, उसे उस अनंत सुख की ओर ले जाती है, जहां शब्द समाप्त हो जाते हैं, और केवल प्रेम रह जाता है।
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं