अबिगत गति कछु कहति न आवै मीनिंग सूरदास Abigat Gati Kachu Kahati Na Aave Meaning

अबिगत गति कछु कहति न आवै मीनिंग सूरदास Abigat Gati Kachu Kahati Na Aave Meaning


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अबिगत गति कछु कहति न आवै।
ज्यों गूंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै॥
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।
मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै॥
रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चकृत धावै।
सब बिधि अगम बिचारहिं तातों सूर सगुन लीला पद गावै॥२॥

अबिगत अव्यक्त अज्ञेय जो जाना न जा सके। गति बात। अन्तर्गत हृदय अन्तरात्मा।  भावै रुचिकर प्रतीत होता है। अमित अपार। तोष सन्तोष आनन्द। अगोचर इन्द्रियजन्य ज्ञान से परे। गुन गुण सत्व रज और तमो गुण से आशय है। निरालंब बिना अवलंब या सहारे के। सगुन सगुण दिव्यगुण संयुक्त साकार ब्रह्म श्रीकृष्ण। 
 
 
इस पद में सूरदास जी अव्यक्त ब्रह्म की महिमा का वर्णन कर रहे हैं। वे कहते हैं कि अव्यक्त ब्रह्म की गति का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। वह परम स्वादिष्ट है और उसे पाने वाला व्यक्ति ही जान सकता है। मन और वाणी से परे, अगोचर, जिसे जाना न जा सके, उसे भी वही जान सकता है। अव्यक्त ब्रह्म रूप, रेख, गुण, जाति, जाति, जुगति आदि से रहित है और बिना किसी अवलंब के है। वह इतना अगोचर है कि उसके विचार से ही मन चकित हो जाता है।

सूरदास की रचनाओं में श्रीकृष्ण की लीलाओं का अत्यंत मार्मिक और भावपूर्ण वर्णन मिलता है। उन्होंने श्रीकृष्ण के बाल्यकाल, किशोरावस्था और युवावस्था की लीलाओं का बहुत ही सुंदर और सजीव चित्रण किया है। उनके पदों में श्रीकृष्ण की लीलाओं की छटा देखते ही बनती है।

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