कबीर के दोहे सरल हिंदी अर्थों सहित
कबीर के दोहे सरल हिंदी अर्थों सहित Kabir Dohe With Meaning
सुमिरन में मन लाइए, जैसे नाद कुरंग ।
कहैं कबीर बिसरे नहीं, प्रान तजे तेहि संग ॥
सुमरित सुरत जगाय कर, मुख के कछु न बोल ।
बाहर का पट बन्द कर, अन्दर का पट खोल ॥
छीर रूप सतनाम है, नीर रूप व्यवहार ।
हंस रूप कोई साधु है, सत का छाननहार ॥
ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग ।
तेरा सांई तुझमें, बस जाग सके तो जाग ॥
जा करण जग ढ़ूँढ़िया, सो तो घट ही मांहि ।
परदा दिया भरम का, ताते सूझे नाहिं ॥
सुमिरन में मन लाइए, जैसे नाद कुरंग। कहैं कबीर बिसरे नहीं, प्रान तजे तेहि संग॥
कबीर कहते हैं कि जैसे हिरण मधुर संगीत सुनकर मोहित हो जाता है, वैसे ही मन को भगवान के सुमिरन (स्मरण) में लगाना चाहिए। ऐसा करने से भगवान कभी नहीं भूलते, वे जीवन के अंत तक साथ रहते हैं।
सुमरित सुरत जगाय कर, मुख के कछु न बोल। बाहर का पट बन्द कर, अन्दर का पट खोल॥
ध्यान और स्मरण के माध्यम से अपनी चेतना को जागृत करें, बिना कुछ बोले। बाहरी इंद्रियों को बंद करके, अपने भीतर के ज्ञान के द्वार खोलें।
छीर रूप सतनाम है, नीर रूप व्यवहार। हंस रूप कोई साधु है, सत का छाननहार॥
सच्चा नाम दूध के समान शुद्ध है, जबकि संसारिक व्यवहार पानी के समान है। सच्चे साधु हंस के समान होते हैं, जो दूध और पानी को अलग कर सत्य को पहचानते हैं।
ज्यों तिल मांही तेल है, ज्यों चकमक में आग। तेरा सांई तुझमें, बस जाग सके तो जाग॥
जैसे तिल में तेल और चकमक पत्थर में आग छिपी होती है, वैसे ही भगवान तुम्हारे भीतर हैं। यदि तुम जागरूक हो सको, तो जागो और उन्हें पहचानो।
जा करण जग ढूँढ़िया, सो तो घट ही मांहि। परदा दिया भरम का, ताते सूझे नाहिं॥
जिसे संसार खोज रहा है, वह तुम्हारे हृदय में ही है। लेकिन भ्रम का पर्दा होने के कारण वह दिखाई नहीं देता।
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