कबीर साहेब दोहे जानिये सरल अर्थ
माली आवत देख के, कलियान करी पुकार ।
फूल-फूल चुन लिए, काल हमारी बार ॥
मैं रोऊँ सब जगत् को, मोको रोवे न कोय ।
मोको रोवे सोचना, जो शब्द बोय की होय ॥
ये तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं ।
सीस उतारे भुँई धरे, तब बैठें घर माहिं ॥
या दुनियाँ में आ कर, छाँड़ि देय तू ऐंठ ।
लेना हो सो लेइले, उठी जात है पैंठ ॥
राम नाम चीन्हा नहीं, कीना पिंजर बास ।
नैन न आवे नीदरौं, अलग न आवे भास ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अनमोल था, कौंड़ी बदले जाए ॥
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय ।
जो सुख साधु सगं में, सो बैकुंठ न होय ॥
संगति सों सुख्या ऊपजे, कुसंगति सो दुख होय ।
कह कबीर तहँ जाइये, साधु संग जहँ होय ॥
साहिब तेरी साहिबी, सब घट रही समाय ।
ज्यों मेहँदी के पात में, लाली रखी न जाय ॥
साँझ पड़े दिन बीतबै, चकवी दीन्ही रोय ।
चल चकवा वा देश को, जहाँ रैन नहिं होय ॥
संह ही मे सत बाँटे, रोटी में ते टूक ।
कहे कबीर ता दास को, कबहुँ न आवे चूक ॥
साईं आगे साँच है, साईं साँच सुहाय ।
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट मुण्डाय ॥
माली आवत देख के, कलियाँ करी पुकार।
फूल-फूल चुन लिए, काल हमारी बार॥
अर्थ: कलियाँ माली को आते देख पुकार उठती हैं कि उसने सभी खिले हुए फूल चुन लिए, अब अगली बारी हमारी है। यह दोहा समय की अनिवार्यता और जीवन की नश्वरता को दर्शाता है।
मैं रोऊँ सब जगत को, मोको रोवे न कोय।
मोको रोवे सोचना, जो शब्द बोय की होय॥
अर्थ: कबीर कहते हैं कि मैं तो पूरे संसार के दुखों पर रोता हूँ, लेकिन मुझे कोई नहीं रोता। जो मुझे रोता है, वह वास्तव में अपने कर्मों के परिणाम पर सोचता है। यह दोहा आत्मचिंतन और कर्मों के फल की ओर संकेत करता है।
ये तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं।
सीस उतारे भुईं धरे, तब बैठें घर माहिं॥
अर्थ: प्रेम का मार्ग आसान नहीं है; यह कोई मौसी का घर नहीं है जहाँ बिना प्रयास के प्रवेश मिल जाए। यहाँ प्रवेश के लिए अपने अहंकार (सिर) को त्यागकर धरती पर रखना पड़ता है, तभी इस घर में बैठने का अधिकार मिलता है। यह दोहा प्रेम मार्ग की कठिनाइयों और समर्पण की आवश्यकता को दर्शाता है।
या दुनिया में आ कर, छाँड़ि देय तू ऐंठ।
लेना हो सो लेइले, उठी जात है पैंठ॥
अर्थ: इस संसार में आकर अपने अहंकार को छोड़ दो। जो कुछ लेना है, ले लो, क्योंकि यह मेला (जीवन) जल्द ही समाप्त होने वाला है। यह दोहा जीवन की क्षणभंगुरता और विनम्रता की महत्ता पर प्रकाश डालता है।
इन दोहों में कबीर दास जी ने जीवन की नश्वरता, आत्मचिंतन, प्रेम मार्ग की कठिनाइयों, और विनम्रता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। वे समझाते हैं कि संसार अस्थायी है, इसलिए हमें अपने अहंकार को त्यागकर सच्चे प्रेम और समर्पण के मार्ग पर चलना चाहिए।
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