कबीर के दोहे जानिये सरल अर्थ
लकड़ी कहै लुहार की, तू मति जारे मोहिं ।
एक दिन ऐसा होयगा, मैं जारौंगी तोहि ॥
हरिया जाने रुखड़ा, जो पानी का गेह ।
सूखा काठ न जान ही, केतुउ बूड़ा मेह ॥
ज्ञान रतन का जतनकर माटी का संसार ।
आय कबीर फिर गया, फीका है संसार ॥
ॠद्धि सिद्धि माँगो नहीं, माँगो तुम पै येह ।
निसि दिन दरशन शाधु को, प्रभु कबीर कहुँ देह ॥
क्षमा बड़े न को उचित है, छोटे को उत्पात ।
कहा विष्णु का घटि गया, जो भुगु मारीलात ॥
राम-नाम कै पटं तरै, देबे कौं कुछ नाहिं ।
क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन माहिं ॥
बलिहारी गुर आपणौ, घौंहाड़ी कै बार ।
जिनि भानिष तैं देवता, करत न लागी बार ॥
ना गुरु मिल्या न सिष भया, लालच खेल्या डाव ।
दुन्यू बूड़े धार में, चढ़ि पाथर की नाव ॥
सतगुर हम सूं रीझि करि, एक कह्मा कर संग ।
बरस्या बादल प्रेम का, भींजि गया अब अंग ॥
कबीर सतगुर ना मिल्या, रही अधूरी सीष ।
स्वाँग जती का पहरि करि, धरि-धरि माँगे भीष ॥
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान ॥
तू तू करता तू भया, मुझ में रही न हूँ ।
वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तू ॥
लकड़ी कहै लुहार से, तू मत जारे मोहि।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं जारूंगी तोहि॥
अर्थ: लकड़ी लुहार से कहती है कि मुझे मत जलाओ। एक दिन ऐसा आएगा जब मैं तुम्हें जलाऊंगी। यह दोहा कर्मों के फल की ओर संकेत करता है कि आज जो हम दूसरों के साथ करते हैं, भविष्य में वही हमारे साथ हो सकता है।
हरिया जाने रुखड़ा, जो पानी का गेह।
सूखा काठ न जान ही, केतऊ बूड़ा मेह॥
अर्थ: हरा-भरा वृक्ष, जो पानी के महत्व को जानता है, वह वर्षा के आने पर आनंदित होता है। लेकिन सूखी लकड़ी, जो पहले ही जीवनरहित है, उसे बारिश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह दोहा बताता है कि संवेदनशील व्यक्ति ही परिस्थितियों का सही मूल्य समझते हैं।
ज्ञान रतन का जतन कर, माटी का संसार।
आय कबीर फिर गया, फीका है संसार॥
अर्थ: कबीर कहते हैं कि ज्ञान रूपी रत्न का संग्रह करो, क्योंकि यह संसार मिट्टी के समान नश्वर है। हम इस दुनिया में आते हैं और फिर चले जाते हैं; यह संसार अस्थायी और फीका है।
ऋद्धि सिद्धि माँगो नहीं, माँगो तुम पै येह।
निसि दिन दर्शन साधु का, प्रभु कबीर कहुँ देह॥
अर्थ: कबीर कहते हैं कि ऋद्धि-सिद्धि (धन-वैभव) की कामना मत करो। यदि कुछ माँगना है तो यह माँगो कि दिन-रात साधु-संतों के दर्शन होते रहें, और प्रभु कबीर को अपने समीप रखें।
इन दोहों में कबीर दास जी ने जीवन की नश्वरता, कर्मों के फल, ज्ञान के महत्व, और साधु-संगति की महत्ता पर प्रकाश डाला है। वे समझाते हैं कि संसार अस्थायी है, इसलिए हमें सच्चे ज्ञान की ओर अग्रसर होना चाहिए और सत्संगति में रहकर ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए।
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Author - Saroj Jangir
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