नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार

 
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार लिरिक्स Naiya Padi Majhdhar Lyrics

नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार,
साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाय,
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं,
अंतर्यामी एक तुम आतम के आधार,
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभु कौन उतारे पार,
गुरु बिन कैसे लागे पार।

मैं अपराधी जन्म का नख सिर भरा विकार,
तुम दाता दुख भंजना मेरी करो सम्हार,
अवगुन मेरे बापुरो बक सहु गरीब निवाज,
जो मैं पूत कपूत हूँ तउ पिता को लाज
गुरु बिन कैसे लागे पार।
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार,

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कबीर एक निर्गुण भक्त थे, अर्थात् वे ईश्वर को किसी भी रूप या मूर्ति में नहीं मानते थे। वे ईश्वर को एक सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान सत्ता के रूप में मानते थे। कबीर के अनुसार, ईश्वर को केवल भक्ति और प्रेम के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।  भक्ति का अर्थ: कबीर के अनुसार, भक्ति का अर्थ है ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रेम। भक्ति में कोई कर्मकांड या पूजा-पाठ की आवश्यकता नहीं होती है। भक्ति का मार्ग: कबीर के अनुसार, भक्ति का मार्ग सरल और सहज है। भक्ति के लिए किसी विशेष स्थान, समय या वस्तु की आवश्यकता नहीं होती है।
भक्ति का फल: कबीर के अनुसार, भक्ति का फल मोक्ष है। मोक्ष एक ऐसी अवस्था है जिसमें मनुष्य सांसारिक मोह-माया से मुक्त हो जाता है।
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