पुरुष सूक्तम्‌ जानिये सरल हिंदी अर्थ सहित

पुरुष सूक्तम्‌ जानिये सरल हिंदी अर्थ सहित

सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात ।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठदशाङुलम् ॥

पुरुष के हजारों सिर, हजारों आँखें और हजारों पैर हैं। यहाँ "हजारों" का मतलब असंख्य या अनंत है, जो उनकी सर्वव्यापकता और सार्वभौमिकता का प्रतीक है। वह पूरी पृथ्वी को चारों दिशाओं में ढकता है और दस उंगलियों से भी आगे विस्तृत है।

पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥

पुरुष ही इस समस्त सृष्टि का सार हैं। जो भी अतीत में था और जो भी भविष्य में होगा, वह सब उन्हीं से है। वह अमरता के अधिपति हैं और भोजन के माध्यम से इस भौतिक संसार का पोषण करते हुए अपनी अमरता बनाए रखते हैं।

पुरुष सूक्तम्‌ जानिये सरल हिंदी अर्थ सहित


एतावानस्य महिमातो ज्यायश्च पुरुषः ।
पदोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥

पुरुष की महानता अवर्णनीय है। उनके केवल एक अंश से यह दृश्य संसार उत्पन्न हुआ है, जबकि उनके तीन-चौथाई भाग अमर और दिव्य लोकों में स्थित हैं।

त्रिपादोर्ध्व उदैत्पुरुषः पदोऽस्येहाभवत्पुनः ।
ततो विश्वङ् व्यक्रमत्साशान्ने अभि ॥

पुरुष के तीन भाग ऊपर स्वर्ग में रहते हैं, और उनका एक हिस्सा बार-बार सृष्टि बनता है। वह सृष्टि के प्रत्येक जीवित और निर्जीव तत्व में व्याप्त हैं।

तस्मादविराळजयत् विराजो अधिपुरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चादभूमिमथो पुरः ॥

पुरुष से विराट पुरुष (सृष्टि का पहला स्वरूप) का जन्म हुआ। विराट ने पृथ्वी को प्रकट किया और इस भौतिक जगत का आधार रखा।

यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतनवत् ।
वसंतो अस्यसीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्विः ॥

पुरुष को यज्ञ के माध्यम से देवताओं ने सृष्टि की रचना की। वसंत ऋतु यज्ञ का घी बनी, ग्रीष्म ऋतु ने यज्ञ का ईंधन प्रदान किया, और शरद ऋतु ने आहुति प्रदान की।

तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्पुरुषं जातमग्रतः ।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ॥

प्रारंभ में पुरुष का यज्ञ किया गया। देवताओं, साध्यों और ऋषियों ने इस यज्ञ में भाग लिया, और इसी यज्ञ के माध्यम से सृष्टि का विस्तार हुआ।

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृषदाज्यम् ।
पशून्तांश्चक्रे वायव्यानारण्यं ग्राम्यश्च ये ॥

इस यज्ञ से दूध और घी का सृजन हुआ। इससे वायु में उड़ने वाले पक्षी, वन्य जीव, और पालतू पशु उत्पन्न हुए।

तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे ।
छंदांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥

इस महान यज्ञ से ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और छंदों का जन्म हुआ। यह सृष्टि का संगीत और ज्ञान है।

तस्मादश्व अजायन्त ये के चोभ्यादतः ।
गावोः ह जज्ञिरे तस्मात् तस्माज्जाता अजवायः ॥

यज्ञ से घोड़े और अन्य दंतधारी प्राणी उत्पन्न हुए। गायों और बकरियों का भी निर्माण इसी यज्ञ से हुआ।।

पुरुषसूक्त ऋग्वेद संहिता के दसवें मण्डल का एक प्रमुख सूक्त है, जिसमें पुरुष की चर्चा हुई है और उसके अंगों का वर्णन है। इसको वैदिक ईश्वर का स्वरूप मानते हैं। विभिन्न अंगों में चारों वर्णों, मन, प्राण, नेत्र इत्यादि की बातें कहीं गई हैं। यही श्लोक यजुर्वेद (31वें अध्याय) और अथर्ववेद में भी आया है। पुरुषसूक्त के अनुसार, एक विराट पुरुष ने स्वयं को यज्ञ में विभाजित कर दिया। उसके शरीर के अंगों से चारों वर्ण, मन, प्राण, नेत्र इत्यादि उत्पन्न हुए। यह यज्ञ ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति का कारण है।

पुरुषसूक्त का महत्व इस बात में है कि यह वैदिक धर्म के मूल सिद्धांतों को प्रतिपादित करता है। यह बताता है कि ईश्वर एक है, वह सर्वव्यापी है और उससे ही संसार की उत्पत्ति हुई है। पुरुषसूक्त का अध्ययन करने से हमें वैदिक धर्म की समझ में मदद मिलती है।

॥ पुरुष-सूक्तम् ॥
ॐ सस्त्रशीर्षा पुरुषः सहस्त्राक्षः सहस्त्रपात् ।
स भूमि सँवर्त स्पृत्वात्त्यतिष्ठद्दशांगुलम् ।। 1 ।।
पुरुष एवेद सँर्व यसद्भूतं यच्च भाब्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिंरोहति ।।2।।
एतावानस्य महिमातो ज्यायांश्च पुरुषः ।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ।।3।।
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः ।
ततो विष्वङ् व्यक्रामत्साशनानशने अभि ।।4।।
ततो विराडजायत विराजो अधि पुरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ।।5।।
तस्मादूयज्ञात्सर्वहुतः सम्भृतं पृपदाज्यम् ।
पशून्ताँश्चक्रेवा यव्यानारागयान्ग्राम्याश्च ये ।।6।।
तस्माद् यज्ञात्सर्वहुत ऋचः सामानि जज्ञिरे ।
छन्दाँसि जज्ञिरे तस्माद् यजुस्तस्मादजायत ।।7।।
तस्मादश्वा अजायन्त ये के चोभयादतः ।
गावो ह जज्ञिरे तस्मात्तस्माञ्जाता अजावयः ।।8।।
तं य्यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्पुरुषं जातमग्रतः ।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ।।9।।
यत्पुरुषं व्यदधुः कतिधा व्यकल्पयन् ।
मुखं किमस्यासीत् किम्बाहु किमरु पादाउच्येते ।।10।।
ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः ।
ऊरुतदस्य यद् वैश्य पद्भ्यां शूद्रोअजायत ।।11।।
चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत ।
श्रोत्राद् वायुश्च प्राणश्च मुखादग्निरजायत ।।12।।
नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्णों द्यौः समवर्त्तत ।
पद्भ्यांभूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथालोकाँऽअकल्पयन् ।।13।।
यत् पुरुषेणा हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तो अस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इघ्म शरद्वविः ।।14।।
सप्तास्यासन्परिधयस्त्रिः सप्त समिधः कृताः ।
देवा यद् यज्ञ तन्वानाऽवघ्न् पुरुषम्पशुम् ।।15।।
यज्ञेन यज्ञ मयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।
तेह नाके महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवा।।16।।
अद्भ्यः सम्भृतं पृथिव्यै रसाच्च विश्वकर्मणमं समवर्त्तताग्रे ।
त्स्य त्वष्टा विदधद् रुपमेति तन्मर्त्यस्य देवत्त्वमाजानमग्रे ।।17।।
वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णन्तमसः परस्तात् ।
तमेव विदित्वातिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ।।18।।
प्रजाषतिश्चरति गर्भे अन्तरजायमानो बहुधा विजायते ।
तस्य योनिं परिपश्यन्ति घीरास्तस्मिन् हतस्थुर्भु वनानि विश्वा ।।19।।
यो देवेभ्य आतपति यो देवानां पुराहितः ।
पूर्वो यो देवेभ्यो जातो नमो रुचाय ब्राह्मये ।।20।।
रुचं ब्राह्मं जनयन्तो देवा अग्रे तदब्रुबन् ।
यस्त्वैवं ब्राह्मणों विद्यातस्य देवा असन्वशे ।।21।।
श्रीश्चते लक्ष्मीश्च पत्न्यावहोरात्रे पाश्वें
नक्षत्राणि रुपमश्विनौ व्यात्तम् ।
इष्णन्निषाणामुं म इषाण।
सर्वलोकं म इषाण ।। 22।।



पुरुष सूक्तम, देवी सूक्तम और श्री सूक्तम का एक साथ पाठ करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में जल्दी फल मिलते हैं। यह पाठ घर में सकारात्मक ऊर्जा लाने और शांति बनाए रखने में मदद करता है। घर के वास्तु दोषों को कम करने के लिए वास्तु मंडल चक्र यंत्र की पूजा करनी चाहिए। शरीर से जुड़े गुप्त या अन्य रोगों को समझने और सही इलाज पाने के लिए गुप्त रोग चिकित्सा पुस्तक पढ़ना फायदेमंद होता है। इन उपायों से मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं।

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