भवः शर्वो रुद्रः पशुपतिरथोग्रः सहमहान्। तथा भीमेशानाविति यदभिधानाष्टकमिदम्।। अमुष्मिन् प्रत्येकं प्रविचरति देव श्रुतिरपि। प्रियायास्मैधाम्ने प्रणिहित-नमस्योऽस्मि भवते।। २८।।
नमो नेदिष्ठाय प्रियदव दविष्ठाय च नमः। नमः क्षोदिष्ठाय स्मरहर महिष्ठाय च नमः।। नमो वर्षिष्ठाय त्रिनयन यविष्ठाय च नमः। नमः सर्वस्मै ते तदिदमतिसर्वाय च नमः।। २९।।
शिवमहिम्न स्तोत्र की रचना पर आधारित कथा बहुत ही रोचक है। इस कथा से यह पता चलता है कि भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति से बहुत प्रसन्न होते हैं। पुष्पदंत ने अपनी भूल के लिए भगवान शिव से क्षमा मांगी और उनकी पूजा की। भगवान शिव ने उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें क्षमा कर दिया और उन्हें शिवमहिम्न स्तोत्र की रचना का आशीर्वाद दिया।
इस स्तोत्र में भगवान शिव की महिमा का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र शिवभक्तों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है।
शिवमहिम्न स्तोत्र की रचना के बाद से यह स्तोत्र शिवभक्तों के बीच बहुत ही लोकप्रिय हो गया है। यह स्तोत्र शिवभक्तों द्वारा नियमित रूप से पढ़ा जाता है। शिवमहिम्न स्तोत्र की रचना के बाद से पुष्पदंत भी भगवान शिव के प्रिय भक्तों में शामिल हो गए। कथा के अनुसार, एक समय में चित्ररथ नाम का एक राजा था जो भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। वह अपने राज्य में एक बहुत ही सुंदर उद्यान बनवाया था, जिसमें तरह-तरह के फूल उगाए जाते थे। वह इन फूलों को भगवान शिव को अर्पित करता था।
एक दिन, गंधर्वराज पुष्पदंत नामक एक महान शिवभक्त देवराज इंद्र की सभा के मुख्य गायक थे। एक दिन उनकी नजर उस उद्यान पर पड़ी और वह मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने उस उद्यान से कुछ फूल तोड़ लिए और उन्हें भगवान शिव को अर्पित करने के लिए अपने साथ ले गए।
राजा को जब इस बात का पता चला तो वह बहुत क्रोधित हो गए। उन्होंने पुष्पदंत को पकड़ने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन वे सफल नहीं हो सके।
अंत में, राजा ने एक चाल चली। उन्होंने शिव पर अर्पित किए गए फूलों को उद्यान के रास्ते पर बिछा दिया। अगले दिन जब पुष्पदंत उद्यान में गए तो उन्हें उन फूलों का पता नहीं चला और उनके पैर उन पर पड़ गए।
पुष्पदंत को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने भगवान शिव से क्षमा मांगी और एक शिवलिंग का निर्माण करके उसकी पूजा की। उन्होंने भगवान शिव की स्तुति में कुछ छंद भी गाए।
भगवान शिव पुष्पदंत की भक्ति से प्रसन्न हुए। उन्होंने उनकी गलती को माफ कर दिया और उन्हें अपनी शक्तियां लौटा दीं। उन्होंने पुष्पदंत को आशीर्वाद दिया कि उनके द्वारा गाए गए छंद भविष्य में शिवमहिम्न स्तोत्र के नाम से प्रसिद्ध होंगे।
पुष्पदंत द्वारा बनाया गया शिवलिंग पुष्पदंतेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह शिवलिंग आज भी उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में स्थित है।
शिवमहिम्न स्तोत्र का महत्व
शिवमहिम्न स्तोत्र एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का वर्णन करता है। इस स्तोत्र में भगवान शिव को एक ही समय में सभी देवताओं का स्वामी, सभी प्राणियों का पालनहार और सभी मनुष्यों के लिए आराध्य बताया गया है।
शिवमहिम्न स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यह स्तोत्र भक्तों को मोक्ष प्राप्ति के लिए भी मार्गदर्शन करता है। शिवमहिम्न स्तोत्र एक भजन है जो भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है। ऐसा कहा जाता है कि इसकी रचना गंधर्व राजा पुष्पदंत ने की थी, जिन्होंने एक गलती करने के बाद शिव द्वारा शिवमहिम्न स्तोत्र का पाठ करने के बाद क्षमा कर दिया था।
स्तोत्र में शिव की महानता और दिव्यता की प्रशंसा की गई है, और उन्हें ब्रह्मांड के निर्माता, संरक्षक और विनाशक के रूप में वर्णित किया गया है। इसमें उनके कई गुणों का भी उल्लेख किया गया है, जैसे उनकी करुणा, क्षमा और शक्ति।
शिवमहिम्न स्तोत्र हिंदुओं के बीच एक लोकप्रिय भक्ति गीत है, और अक्सर धार्मिक समारोहों और त्योहारों के दौरान इसका पाठ किया जाता है। यह भी माना जाता है कि इसमें आध्यात्मिक और उपचार शक्तियां हैं।
यहाँ शिवमहिम्न स्तोत्र के पहले कुछ छंदों का हिंदी अनुवाद है: हे सर्वोच्च ज्ञानी, तुम्हारी महानता की महिमा ब्रह्मा और अन्य देवताओं की समझ से परे है। जैसा कि मैं तुम्हारी स्तुति करने का प्रयास करता हूँ, मेरा भाषण व्यर्थ न हो।
तुम्हारी महानता का मार्ग मन और इंद्रियों की पहुंच से परे है। वेद भी तुम्हारी महानता से चकित हो जाते हैं। हे अनंत, अपनी अनगिनत गुणों के साथ आपकी प्रशंसा कौन कर सकता है? आपके निवास का वर्णन कौन कर सकता है?
हे ब्रह्मांड के निर्माता, तुम्हारी शक्ति सर्वोच्च है। तुम सभी धन-संपदा के स्रोत हो। तुम सभी वर देने वाले हो। हे दुष्टों के नाशक, मेरी वाणी तुम्हारी स्तुति के अमृत से शुद्ध हो।
शिवमहिम्न स्तोत्र एक सुंदर और शक्तिशाली भजन है जो भगवान शिव की महानता का जश्न मनाता है। यह दुनिया भर के हिंदुओं के लिए प्रेरणा और भक्ति का स्रोत है।
पुष्पदन्त उवाच - महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी। स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः।। अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन्। ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः।। १।। हे प्रभु! आपकी महिमा अपार है, जिसे ब्रह्मा और अन्य देवता भी नहीं जान पाए। मैं तो एक साधारण बालक हूं, मेरी तो क्या गिनती? लेकिन क्या आपके महिमा को पूर्णतया जाने बिना आपकी स्तुति नहीं हो सकती? मैं ये नहीं मानता क्योंकि अगर ये सच है तो फिर ब्रह्मा की स्तुति भी व्यर्थ कहलाएगी। मैं तो ये मानता हूं कि सबको अपनी मति अनुसार स्तुति करने का अधिकार है। इसलिए हे भोलेनाथ! आप कृपया मेरे हृदय के भाव को देखें और मेरी स्तुति का स्वीकार करें।
इस श्लोक में पुष्पदंत कहते हैं कि भगवान शिव की महिमा इतनी अपार है कि उसे ब्रह्मा और अन्य देवता भी पूरी तरह से नहीं जान पाए हैं। वह खुद को एक साधारण बालक मानते हैं और सोचते हैं कि उनकी स्तुति भगवान शिव को स्वीकार नहीं होगी। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि अगर भगवान शिव की महिमा को पूर्णतया जाने बिना उनकी स्तुति नहीं हो सकती तो फिर ब्रह्मा की स्तुति भी व्यर्थ कहलाएगी।
पुष्पदंत का मानना है कि सभी को अपनी मति अनुसार भगवान शिव की स्तुति करने का अधिकार है। वह भगवान शिव से प्रार्थना करते हैं कि वह उनके हृदय के भाव को देखें और उनकी स्तुति को स्वीकार करें।
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी क्षमता के अनुसार भगवान शिव की स्तुति करनी चाहिए। भगवान शिव हमारे हृदय के भाव को देखते हैं और हमारी स्तुति को स्वीकार करते हैं, भले ही वह पूर्णतया सही न हो।