अधमों को नाथ उबारना तुम्हें याद हो की ना याद हो

अधमों को नाथ उबारना तुम्हें याद हो की ना याद हो


अधमों को नाथ उबारना
अधमों को नाथ उबारना,
तुम्हें याद हो कि ना याद हो,
मेरे मुरलीधर, मेरे बंसीधर,
मदखल जनों का उतारना,
तुम्हें याद हो कि ना याद हो,
मेरे मुरलीधर, मेरे बंसीधर।

प्रहलाद जब मरने लगा,
खंजर पे सिर धरने लगा,
उस दिन का खंभ बिदारना,
तुम्हें याद हो कि ना याद हो,
मेरे मुरलीधर, मेरे बंसीधर।

धृतराष्ट्र के दरबार में,
दुखी द्रौपदी की पुकार में,
साड़ी के थान संवारना,
तुम्हें याद हो कि ना याद हो,
मेरे मुरलीधर, मेरे बंसीधर।

सुरराज ने जो किया प्रलय,
ब्रजधाम बसने के समय,
गिरवर नखों पर धारना,
तुम्हें याद हो कि ना याद हो,
मेरे मुरलीधर, मेरे बंसीधर।

इस जग से बिन्दु निराश है,
केवल तुम्हारी आस है,
बिगड़ी दशाएँ सुधारना,
तुम्हें याद हो कि ना याद हो,
मेरे मुरलीधर, मेरे बंसीधर।

अधमों को नाथ उबारना,
तुम्हें याद हो कि ना याद हो,
मेरे मुरलीधर, मेरे बंसीधर,
मदखल जनों का उतारना,
तुम्हें याद हो कि ना याद हो,
मेरे मुरलीधर, मेरे बंसीधर।


अधमों को नाथ उबारना, तुम्हे याद हो की न याद हो ,, Dhanvantri das ji bhajan

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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