शिशु का डायपर बदलना, शिशु के रैशेस (diaper dermatitis) How many hours once diaper should be changed
शिशु पूर्णतया अपनी माँ के ऊपर ही आश्रित रहता है। बड़ा होने से पहले शिशु बोलकर तो कुछ बता नहीं पाता है तो उसके पास एक ही तरीका होता है, वह रोकर अपनी माँ का ध्यान अपनी और आकर्षित करता है। शिशु के रोने के कई मतलब होते हैं (पढ़ें : शिशु क्यों रोता है ) जिन्हे माताएं जानती हैं। शिशु के अंदर यह प्रवृति जन्मजात होती है।
शिशु के रोने का एक कारण होता है उसके द्वारा किये गए मूत्र विसर्जन और पोट्टी। कई बार माताएं व्यस्त रहती हैं और वो शिशु पर उतना ध्यान नहीं देती हैं जितना उन्हें देना चाहिए। शिशु नींद में भी मूत्र कर देता / पोट्टी कर देता है और सँभालने के अभाव में उसके पीछे के हिस्से पर लाल चकते / रेशेस हो सकते हैं। आईये जानते हैं की इस विषय पर माताएं अपनी और से क्या सावधानियां अमल में ला सकती हैं।
शिशु के रोने से पहले ही संभाले
शिशु के रोने पर ही उसे सँभालने की बजाय कुछ कुछ देर में शिशु के डायपर को सँभालते रहे। कई बार शिशु नींद में ही मूत्र विसर्जन / पोट्टी कर देता है। डायपर नहीं बदलने की अवस्था में वह पोट्टी में मौजूद जीवाणुओं में मिलकर संक्रमण कर सकता है। इससे शिशु के पीछे के हिस्से पर लाल चकते हो सकते हैं। इससे खुजली भी चलती है जिससे शिशु चिड़चिड़ा होकर रोने लग जाता है। कुछ डायपर शिशु के दो से तीन बार शुशु करने को सोख लेता है लकिन यदि आपको लगे की डायपर गीला महसूस हो रहा है तो उसे तुरंत बदल दें।
रात को डायपर बदलना
शिशु को रात में भी संभालना चाहिए। कई बार शिशु रात को नींद के दौरान भी शुशु कर देता है। शिशु के रोने के अभाव में माँ को पता नहीं चल पाता है। इसलिए जब भी रात को आपकी नींद खुले शिशु के डायपर संभालें। शिशु के रोने का इंतजार नहीं करना चाहिए।
शिशु के बिस्तर को बदलना
कई बार नमी शिशु के बिस्तर में पहुंच जाती है। इसलिए उसके बिस्तर को दो से तीन दिनों में धुप में रखा जाना चाहिए और गीले बिस्तर को बदल देना चाहिए।
शिशु को डायपर पहनाएं या लंगोट
सूती कपड़ों से लंगोट बनाया जाता है जो की शिशु के काफी आरामदायक होता है। परम्परागत रूप से शिशु का लंगोट घर में ही बना लिया जाता था। वर्तमान में डायपर का चलन हो गया है। लंगोट और डायपर दोनों ही शिशु के लिए ठीक हैं। लंगोट बनाते समय विशेष रूप से ध्यान रखें की कपड़ा सूती हो और मुलायम हो। मुलायम सूती कपडा गेलेपन को सोख लेता है। यही काम डायपर करता है।
आप दोनों में से किसी का भी उपयोग कर सकती हैं। आप चाहे घर पर लंगोट का इस्तेमाल कर सकती हैं। ये सस्ते होते हैं, इन्हे धो कर पुनः इस्तेमाल किया जा सकता है। कई महिलाएं तो इन लंगोट को संभाल कर रखती हैं और आगामी शिशु के लिए भी इस्तेमाल में लेती हैं। यदि डायपर से लंगोट की तुलना की जाय तो लंगोट में पानी सोखने की क्षमता कम होती है और धोने और सुखाने का वक़्त निकलना पड़ता है। डायपर का लम्बे समय तक इस्तेमाल करना खर्चीला होता है। आप अपनी सुविधा के अनुसार इनमे से किसी एक का चयन कर सकती हैं। सर्दियों के मौसम में डायपर का उपयोग श्रेष्ठ होता है।
शिशु का लंगोट / डायपर बदलना : शिशु का लंगोट और डायपर बदलने के लिए आप पहले से डायपर, वाइप्स साथ लेकर बैठे। शिशु का डायपर बदलने से पहले अच्छे से वाइप्स के द्वारा शिशु की सफाई करें और यदि आपको महसूस होता है की बिस्तर गीला है तो आप उसे भी बदल दें।
शिशु को बीच में अकेला छोड़ कर ना जाय क्योंकि डायपर बदलने के दौरान शिशु तेज हरकते करता है। यदि आप शिशु के लिए विशेष रूप से बनाये गए पाउडर का इस्तेमाल करना चाहती है तो उसे जाँघों तक ही लगाए। शिशु के पिछवाड़े में पाउडर लगाना कोई समाधान नहीं होता है। इस पाउडर के इस्तेमाल से त्वचा का संक्रमण भी दूर होता है और नमी भी नहीं रहती है।
आप दोनों में से किसी का भी उपयोग कर सकती हैं। आप चाहे घर पर लंगोट का इस्तेमाल कर सकती हैं। ये सस्ते होते हैं, इन्हे धो कर पुनः इस्तेमाल किया जा सकता है। कई महिलाएं तो इन लंगोट को संभाल कर रखती हैं और आगामी शिशु के लिए भी इस्तेमाल में लेती हैं। यदि डायपर से लंगोट की तुलना की जाय तो लंगोट में पानी सोखने की क्षमता कम होती है और धोने और सुखाने का वक़्त निकलना पड़ता है। डायपर का लम्बे समय तक इस्तेमाल करना खर्चीला होता है। आप अपनी सुविधा के अनुसार इनमे से किसी एक का चयन कर सकती हैं। सर्दियों के मौसम में डायपर का उपयोग श्रेष्ठ होता है।
शिशु का लंगोट / डायपर बदलना : शिशु का लंगोट और डायपर बदलने के लिए आप पहले से डायपर, वाइप्स साथ लेकर बैठे। शिशु का डायपर बदलने से पहले अच्छे से वाइप्स के द्वारा शिशु की सफाई करें और यदि आपको महसूस होता है की बिस्तर गीला है तो आप उसे भी बदल दें।
शिशु को बीच में अकेला छोड़ कर ना जाय क्योंकि डायपर बदलने के दौरान शिशु तेज हरकते करता है। यदि आप शिशु के लिए विशेष रूप से बनाये गए पाउडर का इस्तेमाल करना चाहती है तो उसे जाँघों तक ही लगाए। शिशु के पिछवाड़े में पाउडर लगाना कोई समाधान नहीं होता है। इस पाउडर के इस्तेमाल से त्वचा का संक्रमण भी दूर होता है और नमी भी नहीं रहती है।
शिशु का डायपर कितनी देर में बदलना चाहिए How many hours once diaper should be changed?
वैसे तो इसका कोई तय नियम नहीं होता है लेकिन फिर भी लगभग पंद्रह से बीस मिनट के दौरान शिशु मूत्र विसर्जन कर देता है। आप अपने हाथ से गीलेपन को महसूस करके डायपर या लंगोट को बदल दें। शिशु के जागने का इन्तजार नहीं करना चाहिए।
क्या रात को शिशु का डायपर बदलना चाहिए Should I change baby's diaper at night?
शिशु रात में अक्सर मल और मूत्र विसर्जन नहीं करता है, इसलिए अनावश्यक रूप से रात को आपको जागने की जरुरत नहीं होती है। शिशु मुश्किल से रात को एक बार शुशु कर सकता है जिसे आप जागने पर बदल सकते हैं।
पॉटी करने पर डायपर कैसे बदलें How do you change a poop diaper?
यदि शिशु ने पोट्टी कर दी हो तो पहले आप अपने हाथ साबुन से अच्छे से धो लें और इसके बाद डायपर हटाएँ और वाइप्स की मदद से साफ़ करें। कुछ देर शिशु के पिछवाड़े को हवा लगने दें और इसके उपरांत नया डायपर लगाएं।
शिशु के डायपर बदलने की आदर्श स्थिति When should I change my baby's diaper?
विशेषज्ञों की राय के अनुसार आप एक से दो घंटे के भीतर शिशु का डायपर बदल दें, ऐसा करना शिशु के लिए लाभदायी होता है।
डायपर बदलने के लिए क्या शिशु को जगाना जरुरी है Should you wake a baby to change diaper?
वैसे तो शिशु सामान्य अवस्था में स्वंय ही जग जाता है लेकिन यदि शिशु सो रहा है और उसने डायपर गीला कर दिया है तो आप डायपर बदल दें, इसमें शिशु को जगाने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
सामान्य तौर पर, रैशेस वाले बच्चे के लिए सबसे अच्छे डायपर निम्नलिखित हैं:
बच्चे के हिसाब से डायपर चुनें
रैशेस वाले बच्चे के लिए कौन सा डायपर सबसे अच्छा है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चे की त्वचा कितनी संवेदनशील है। कुछ बच्चे ऐसे होते हैं जिनकी त्वचा किसी भी तरह के डायपर से रैशेज हो जाती है, जबकि अन्य बच्चे कुछ विशेष प्रकार के डायपर से रैशेज से मुक्त रहते हैं।सामान्य तौर पर, रैशेस वाले बच्चे के लिए सबसे अच्छे डायपर निम्नलिखित हैं:
- डिस्पोजेबल डायपर: डिस्पोजेबल डायपर आमतौर पर कपड़े के डायपर की तुलना में अधिक सूखा और आरामदायक होते हैं। वे रैशेज को रोकने में भी मदद कर सकते हैं क्योंकि वे मल और मूत्र को जल्दी से सोख लेते हैं।
- अति-शोषक डायपर: अति-शोषक डायपर मल और मूत्र को अधिक कुशलता से सोख लेते हैं, जिससे त्वचा सूखी रहती है। यह रैशेज को रोकने में मदद कर सकता है।
- डायपर रैश क्रीम से उपचारित डायपर: कुछ डायपर में डायपर रैश क्रीम पहले से ही लगाई जाती है। यह रैशेज को रोकने या कम करने में मदद कर सकता है।
- बच्चे की त्वचा की संवेदनशीलता: अगर बच्चे की त्वचा बहुत संवेदनशील है, तो ऐसे डायपर चुनें जो त्वचा को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। ऐसे डायपर आमतौर पर प्राकृतिक सामग्री से बने होते हैं और उनमें कोई रंग या सुगंध नहीं होती है।
- डायपर का आकार: डायपर का आकार सही होना चाहिए। अगर डायपर बहुत छोटा है, तो यह त्वचा को रगड़ सकता है और रैशेज का कारण बन सकता है। अगर डायपर बहुत बड़ा है, तो यह मल और मूत्र को रिसाव कर सकता है।
- डायपर का फिटिंग: डायपर को बच्चे के शरीर पर अच्छी तरह से फिट होना चाहिए। अगर डायपर ढीला है, तो यह त्वचा को रगड़ सकता है और रैशेज का कारण बन सकता है। अगर डायपर बहुत तंग है, तो यह त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है।
टाइम पर बदलें डायपर
डायपर रैश को रोकने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि डायपर को समय पर बदला जाए। डायपर को हर बार बदलें जब बच्चा पेशाब या मल त्याग करे। अगर डायपर गीले रहने दें, तो मूत्र और मल से त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है और रैशेज हो सकते हैं। डायपर को बदलते समय, बच्चे के जननांग क्षेत्र को साफ और सूखा करना भी महत्वपूर्ण है। साबुन और पानी का उपयोग करें, लेकिन बहुत अधिक रगड़ें नहीं। बच्चे के जननांग क्षेत्र को सूखने दें, फिर एक डायपर रैश क्रीम लगाएं।डायपर रैश क्रीम रैशेज को रोकने में मदद कर सकती है और उन्हें ठीक करने में भी मदद कर सकती है। डायपर रैश क्रीम के कई अलग-अलग प्रकार उपलब्ध हैं, इसलिए अपने बच्चे के लिए सबसे अच्छा काम करने वाला प्रकार चुनें।
थोड़ा ढीला रखें डायपर
डायपर को थोड़ा ढीला रखना चाहिए। डायपर को बहुत कसकर बांधने से त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है और रैशेज हो सकते हैं। डायपर को इतना ढीला रखें कि यह बच्चे के शरीर को पूरी तरह से ढक ले, लेकिन इतना भी ढीला न हो कि यह खिसक जाए।डायपर रैश को रोकने के लिए Himalaya Diaper Rash Cream भी एक अच्छा विकल्प है। यह क्रीम प्राकृतिक सामग्री से बनी है और इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं। यह क्रीम रैशेज को ठीक करने और संक्रमण को रोकने में मदद कर सकती है।
अच्छी बेबी क्रीम लगाएं
डायपर को बदलने के बाद बच्चे की त्वचा पर क्रीम लगाना महत्वपूर्ण है। क्रीम त्वचा को मॉइस्चराइज़ करने और उसे संक्रमण से बचाने में मदद करती है।बच्चों के रैशेज होने पर लगाएं ये घरेलू चीजें, तुरंत मिलेगा आराम
बच्चों की त्वचा बहुत नाजुक होती है, इसलिए उनमें रैशेज होना आम बात है। रैशेज कई कारणों से हो सकते हैं, जैसे कि एलर्जी, संक्रमण, या मौसम में बदलाव। बच्चों के रैशेज से उन्हें खुजली, जलन, और दर्द हो सकता है।बच्चों के रैशेज से राहत पाने के लिए कई घरेलू उपाय हैं। ये उपाय सुरक्षित और प्रभावी होते हैं, और इन्हें घर पर ही आसानी से किया जा सकता है।
यहां बच्चों के रैशेज के लिए कुछ घरेलू उपाय दिए गए हैं:
नारियल तेल
नारियल तेल बच्चों के रैशेज के लिए एक प्रभावी घरेलू उपाय है। नारियल तेल में एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-बैक्टीरियल, और एंटी-फंगल गुण होते हैं, जो रैशेज से राहत दिलाने में मदद करते हैं।नारियल तेल को बच्चों के रैशेज पर लगाने से त्वचा को नमी मिलती है, जिससे खुजली और जलन कम होती है। इसके अलावा, नारियल तेल रैशेज के संक्रमण को रोकने में भी मदद करता है।
दही
दही बच्चों के रैशेज के लिए एक और प्रभावी घरेलू उपाय है। दही में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो रैशेज से राहत दिलाने में मदद करते हैं।दही को बच्चों के रैशेज पर लगाने से त्वचा को नमी मिलती है, जिससे खुजली और जलन कम होती है। इसके अलावा, दही रैशेज के संक्रमण को रोकने में भी मदद करता है। हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दही का उपयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब आप शिशु को कोई ठोस आहार दे रहे हों।
एलोवेरा जेल
एलोवेरा जेल बच्चों के रैशेज के लिए एक बहुत ही प्रभावी घरेलू उपाय है। एलोवेरा जेल में एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीसेप्टिक, और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो रैशेज से राहत दिलाने में मदद करते हैं।एलोवेरा जेल को बच्चों के रैशेज पर लगाने से त्वचा को नमी मिलती है, जिससे खुजली और जलन कम होती है। इसके अलावा, एलोवेरा जेल रैशेज के संक्रमण को रोकने में भी मदद करता है। ध्यान रखें कि एलोवेरा जेल को बच्चे के मुंह या आंखों में न जाने दें। अगर ऐसा हो जाए, तो तुरंत पानी से साफ कर दें।
पाउडर
पाउडर-रैशेज एक आम समस्या है जो शिशुओं को होती है। यह डायपर के कारण त्वचा में जलन और रैशेज का कारण बनता है। पाउडर-रैशेज को रोकने या ठीक करने के लिए कई घरेलू उपचार हैं।शिशु के उस हिस्से को अच्छी तरह से पानी से धोएं। डायपर को बदलने के बाद, शिशु के उस हिस्से को अच्छी तरह से पानी से धोएं। इससे त्वचा में मौजूद किसी भी गंदगी या पसीने को हटाने में मदद मिलेगी।
शिशु की त्वचा को हवा में सूखने दें। डायपर को बदलने के बाद, शिशु की त्वचा को हवा में सूखने दें। इससे त्वचा में नमी को दूर करने में मदद मिलेगी।
बेबी पाउडर लगाएं। शिशु की त्वचा सूख जाने के बाद, एक बेबी पाउडर लगाएं। यह त्वचा को सूखा रखने और घर्षण को कम करने में मदद करेगा।
बच्चे को थोड़ी देर बिना डायपर के रखें। यदि संभव हो, तो बच्चे को थोड़ी देर बिना डायपर के रखें। इससे त्वचा को सांस लेने में मदद मिलेगी।
ओटमील
ओटमील एक प्राकृतिक रैश-रिलीवर है जो शिशुओं की नाजुक त्वचा को शांत और राहत देने में मदद कर सकता है। ओटमील में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं जो त्वचा की सूजन और जलन को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा, ओटमील में सैपोनिन नामक एक यौगिक होता है जो त्वचा से धूल, गंदगी और तेल को हटाने में मदद करता है।डायपर रैशेज से बचने के टिप्स
डायपर रैशेज शिशुओं में होने वाली एक आम समस्या है। यह मल और पेशाब के संपर्क में आने से त्वचा में जलन और खुजली के कारण होता है। डायपर रैशेज से बचने के लिए कुछ टिप्स इस प्रकार हैं:- डायरपर गीला होते ही बदल दें। डायपर गीले रहने से त्वचा में नमी और गंदगी जमा हो जाती है, जिससे रैशेज होने का खतरा बढ़ जाता है।
- जब डायपर बदलें तो शिशु को पहले अच्छी तरह से क्लीन कर लें। मल और पेशाब को पूरी तरह से साफ करने के लिए पानी या हल्के साबुन का उपयोग करें।
- ज्यादा टाइट डायपर न पहनाएं। ज्यादा टाइट डायपर त्वचा को रगड़ सकता है और जलन पैदा कर सकता है।
- बच्चे को कपड़ों को माइल्ड वॉशिंग पाउडर से धोएं। कुछ वॉशिंग पाउडर में मौजूद रसायन त्वचा को परेशान कर सकते हैं।
- बच्चे की स्किन को तेजी से न रगड़ें। बच्चे की स्किन को नहलाते समय या डायपर बदलते समय उसे तेजी से न रगड़ें। इससे त्वचा में जलन हो सकती है।
- बच्चे की त्वचा को ज्यादा सूखा रखने की कोशिश करें। गीली त्वचा पर रैशेज होने का खतरा अधिक होता है।
- शिशु को हर वक्त डायपर में न रखें। शिशु को कुछ समय के लिए डायपर से मुक्त रखें, इससे त्वचा को सांस लेने का मौका मिलेगा और रैशेज से बचाव होगा।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं इस ब्लॉग पर रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियों और टिप्स यथा आयुर्वेद, हेल्थ, स्वास्थ्य टिप्स, पतंजलि आयुर्वेद, झंडू, डाबर, बैद्यनाथ, स्किन केयर आदि ओषधियों पर लेख लिखती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |