शिशु बार बार क्यों रोता है शिशु के रोने का कारण रोने का समाधान How do I stop my baby from crying
प्रथम तो इस विषय पर तुरंत डॉक्टर की राय प्राप्त करें। बतायी गयी टिप्स सामान्य अवस्था के लिए हैं यदि आपको लगे की परिस्थिति जटिल है तो डॉक्टर से संपर्क करें। वर्तमान समय के हर माँ की दिनचर्या भी काफी व्यस्त रहती है, वो शिशु को उतना ध्यान नहीं दे पाती हैं जितना की शिशु को चाहिए। शिशु के सोने के समय के अलावा शिशु का प्राकृतिक स्वभाव ही ऐसा होता है की उसकी माँ हर समय उसके ही पास रहे। आप भी कोशिश करें की शिशु को ज्यादा से ज्यादा वक़्त दे सकें। शिशु के रोने पर आप अपना धैर्य ना खोएं और शिशु से लगातार बात करने और उसे प्यार से थपकाने की कोशिश करें। इससे शिशु को बेहतर महसूस होगा। इस लेख के माध्यम से हम शिशु के रोने के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करेंगे।
शिशु की सामान्य रूप में रोने के कई कारण हो सकते है। शिशु बोल कर तो कुछ बता नहीं सकता है इसलिए उसके पास बताने का माध्यम है की वह रोने लग जाता है। आप गौर करें की शिशु सामान्य रूप से रो रहा है या फिर उसे कोई समस्या है। समय के साथ शिशु आपको यह जताने में माहिर होता चला जायेगा की उसे एग्जेक्ट समस्या क्या है, तब तक तो उसके पास एक ही जरिया है वह है रोने का। आप छोटी छोटी बातों पर गौर करें और सुनिश्चित करें की शिशु के रोने का कारण क्या हो सकता है।
शिशु के द्वारा पोट्टी करना / मूत्र करना
आप नोटिस करें की शिशु जब गीला हो जाता है (पोट्टी करने / मूत्र करने) के बाद जब माँ ध्यान ना देकर डाइपर समय पर ना बदले तो शिशु रोने लगता है। गीले डायपर से उसके पीछे के हिस्से में खुजली आनी शुरू हो जाती है जिसके कारण वह रोने लगता है। इसका समाधान यही है की आप थोड़े थोड़े देर बाद या दूध पिलाने से पूर्व और पश्चात यह देख लें की शिशु ने कहीं पोट्टी या मूत्र तो नहीं कर दिया है। शिशु के सोने की जगह को साफ़ सुथरा रखें और सूखे कपडे बिछाये। शिशु को नमी से दूर रखें। सही समय पर डायपर नहीं बदलने से कई बार शिशु के डायपर वाले स्थान पर दाने जैसे भी हो जाते हैं इसलिए आप तुरंत शिशु के डायपर बदलने की कोशिश करें।
शिशु को कहीं गैस की समस्या तो नहीं है
शिशु जब दूध का सेवन करता है तो हवा के कुछ पॉकेट्स दूध के साथ उसके पेट में चले जाते हैं। इससे शिशु का पेट, जो वास्तव में बहुत छोटा होता है, हवा से भी भर जाता है और उसका पेट फूला हुआ सा दिखाई देता है। पेट में गैस भर जाने के कारण शिशु सही मात्रा में दूध का भी सेवन नहीं कर पाता है। इससे वह भूखा रह जाता है और चिड़चिड़ा होकर रोने लग जाता है। गैस की समस्या को दूर करने की लये दिए गए लिंक पर विस्तार से जानने के लिए क्लिक करें।
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दूध पीने की जरुरत
शिशु जितना छोटा होता है उतना ही उसके रोने के सम्भवना का प्रमुख कारन भूख होता है। ज्यादातर शिशु भूखे होने पर अपनी माँ का ध्यान प्राकृतिक रूप से अपनी और खींचने के लिए रोते हैं। शिशु भूखा होने पर बार बार मुंह को दूध पीने की मुद्रा में ले जाता है और पैरों और हाथों को अविरल हिलाता रहता है। शिशु का पेट बहुत छोटा होता है जो मूत्र करते ही खाली हो जाता है। इसलिए उसकी भूख का ध्यान रखें और शिशु को समय पर दूध पिलाये।
शिशु को उचित तापमान पर रखें
शिशु न तो ज्यादा गर्मी और ना ही ज्यादा सर्दी में रखे, दोनों ही स्थिति में शिशु रोने लगता है। इसलिए शिशु के कमरे का तापमान स्थिर रखें।
गोद में आने के लिए
कई बार शिशु एक ही स्थान से बोर हो जाता है और गोद में आकर खेलना चाहता है। इसके लिए शिशु को अपने गोद में कुछ देर तक खिलाये और उससे बात करने की कोशिश करें। शिशु प्राकृतिक रूप से अपनी माँ के पास रहना चाहता है। एकांत में शिशु असहज हो जाता है और उसके रोने का यह भी एक कारण होता है।
कॉलिक
कॉलिक एक ऐसी स्थिति है जिसमें शिशु बिना किसी स्पष्ट कारण के बहुत रोता है। यह आमतौर पर नवजात शिशुओं में होता है, और यह आमतौर पर 3 से 4 महीने की उम्र तक ठीक हो जाता है। कॉलिक के कारण पूरी तरह से समझा नहीं गया है, लेकिन यह माना जाता है कि यह पेट में गैस या ऐंठन के कारण हो सकता है।नैपी (लंगोट) बदलने की जरुरत
शिशुओं को नैपी (लंगोट) बदलने की आवश्यकता कई कारणों से हो सकती है। सबसे आम कारणों में शामिल हैं:मलत्याग या पेशाब: शिशु अक्सर मलत्याग या पेशाब करते हैं, इसलिए नैपी को नियमित रूप से बदलना आवश्यक है। एक गीली या गंदी नैपी शिशु की त्वचा को परेशान कर सकती है और संक्रमण का कारण बन सकती है।
कपड़े तंग होना: शिशुओं की त्वचा बहुत संवेदनशील होती है, इसलिए कसकर पहने गए कपड़े उन्हें परेशान कर सकते हैं। यदि शिशु की नैपी कसकर पहनी गई है, तो उसे बदलने की आवश्यकता हो सकती है।
त्वचा में जलन: मलत्याग या पेशाब से शिशु की त्वचा में जलन हो सकती है। यदि शिशु की त्वचा में जलन है, तो उसे बदलने की आवश्यकता हो सकती है।
शिशुओं को आमतौर पर हर 2-3 घंटे में नैपी बदलनी चाहिए। यदि शिशु मलत्याग करता है, तो उसे तुरंत नैपी बदलनी चाहिए। यदि शिशु पेशाब करता है, तो उसे हर 2-3 घंटे में या जब नैपी गीली या गंदी हो जाए, तो बदलना चाहिए।
शिशु की नैपी बदलते समय, त्वचा को साफ और सूखा रखना महत्वपूर्ण है। मलत्याग के बाद, शिशु की त्वचा को गुनगुने पानी और हल्के साबुन से साफ करें। पेशाब के बाद, शिशु की त्वचा को केवल गुनगुने पानी से साफ करें। त्वचा को सूखने दें और फिर एक नई नैपी पहनाएं।
यदि आपके शिशु की त्वचा में जलन है, तो एक मलहम या लोशन का उपयोग करें जो संवेदनशील त्वचा के लिए सुरक्षित हो।
यहाँ कुछ सुझाव दिए गए हैं जो आपको शिशु की नैपी बदलने में मदद कर सकते हैं:
एक नरम और आरामदायक जगह पर शिशु को बदलें।
शिशु को आरामदायक महसूस कराने के लिए उसके साथ बात करें या उसे गाने सुनाएं।
नैपी को बदलने से पहले सभी आवश्यक सामान तैयार रखें।
शिशु की त्वचा को साफ करने के लिए हल्के साबुन का उपयोग करें।
शिशु की त्वचा को सूखने दें और फिर एक नई नैपी पहनाएं।
शिशु की नैपी बदलने का अभ्यास करने से आपको यह जल्दी से सीखने में मदद मिलेगी कि कैसे इसे कुशलता से और आराम से किया जाए।
तबियत ठीक नहीं है
यह सच है कि यदि आपके शिशु की तबियत ठीक नहीं है, तो वह अपने सामान्य से अलग स्वर में रो सकता है। यह एक संकेत है कि वह दर्द या असुविधा महसूस कर रहा है। अन्य संकेत जो बता सकते हैं कि आपके शिशु की तबियत ठीक नहीं है, उनमें शामिल हैं:नींद में बदलाव
खाना न खाना या कम खाना
मल त्याग में बदलाव
बुखार
नाक बहना या खांसी
कान में दर्द
त्वचा पर चकत्ते या लालिमा
बेचैनी या चिड़चिड़ापन
यदि आपके शिशु में इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देता है, तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं। डॉक्टर आपके शिशु की जांच करेगा और उसे सही इलाज देगा।
यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं जो आपको अपने शिशु को तब तक शांत करने में मदद कर सकते हैं जब तक कि उसे डॉक्टर के पास न ले जाया जा सके:
शिशु को अपनी बाहों में पकड़ें और उसे प्यार-दुलार दें।
शिशु को एक शांत और आरामदायक जगह पर रखें।
शिशु को धीमे और मधुर आवाज़ में बात करें या गाना गाएँ।
शिशु को एक खिलौना या झूले के साथ खेलने दें।
शिशु को एक गर्म स्नान दें।
यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि आपका शिशु अभी भी बहुत छोटा है और वह अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए केवल रोना जानता है। यदि आपका शिशु रो रहा है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह कोई बुरी बात कर रहा है। वह बस आपको बता रहा है कि उसे कुछ चाहिए या वह असहज महसूस कर रहा है।
शिशु को नींद आना
शिशु दूध पीने के बाद कई बार नींद आने के लिए भी रोता है। इसके लिए शिशु को शांत वातावरण में रखें और उसे सहलाकर सुलाने की कोशिश करें। अत्यधिक शोरगुल में शिशु चिड़चिड़ा होकर भी रोने लगता है। शिशु को दूध पिलाने के बाद आप एक निश्चित मधुर आवाज / लोरी आदि से शिशु को सुलाने की कोशिश करें। जब शिशु प्राकृतिक रूप से नींद लेगा तो वह कम रोयेगा।
शिशु को दांत आना
जब शिशु के दांत आने वाले होते हैं तब भी शिशु अकारण रोने लग जाता है। इसलिए कोशिश करें की उसका ध्यान दूसरी तरफ लगाया जाय जिससे उसका ध्यान इस और ना जाए।
शिशु को पीठ पर खुजली आना
शिशु लगातार पीठ के बल सोता है। इससे उसकी पीठ पर खुजली होना स्वाभाविक होता है। शिशु बता नहीं सकता है इसलिए वह रोने लगता है। शिशु की नियमित सफाई के दौरान पीठ की भी सफाई करें और कुछ देर उसे गोद में रखें जिससे उसकी पीठ को हवा लगेगी और वह रोयेगा नहीं। दिन में समय निकाल कर आप उसकी पीठ को सहला भी सकते है, इससे शिशु को अच्छा महसूस होगा। जब आप शिशु को स्नान करवाएं तो गुनगुने पानी से उसकी पीठ पर भी हलके हाथों से मालिस करें।
यदि आपके शिशु को बुखार है और वो बार बार रो रहा है, कब्ज या दस्त की समस्या है तो शीघ्र डॉक्टर से सम्पर्क करें।
यदि आपके शिशु को बुखार है और वो बार बार रो रहा है, कब्ज या दस्त की समस्या है तो शीघ्र डॉक्टर से सम्पर्क करें।
बच्चे के रोने के कई कारण हो सकते हैं, जो उनकी उम्र और विकास के स्तर के आधार पर बदल सकते हैं। कुछ सामान्य कारणों में शामिल हैं:
भूख: शिशुओं का सबसे आम कारण है भूख लगना। जब बच्चा भूखा होता है तो वो रोता है।
दर्द: बच्चा बीमार होने पर या चोट लगने पर दर्द से रो सकता है।
थकान: बच्चा ज्यादा खेलने या दिन भर की गतिविधियों के बाद थक सकता है और रो सकता है।
परेशानी: बच्चा बहुत शोर-शराबे या भीड़-भाड़ वाली जगह पर होने पर परेशान हो सकता है और रो सकता है।
अपनी इच्छा न पूरी होने पर: बच्चा अपनी इच्छा न पूरी होने पर रो सकता है।
अकेलापन: बच्चा अकेलापन महसूस करने पर रो सकता है।
शिशुओं के रोने के अन्य कारण
कान दर्द: कान में संक्रमण होने पर बच्चा रो सकता है।
गैस: पेट में गैस होने पर बच्चा रो सकता है।
रैश: बच्चे को रैश होने पर वह खुजली से परेशान हो सकता है और रो सकता है।
डिहाइड्रेशन: बच्चे को डिहाइड्रेट होने पर वह रो सकता है।
भूख: शिशुओं का सबसे आम कारण है भूख लगना। जब बच्चा भूखा होता है तो वो रोता है।
दर्द: बच्चा बीमार होने पर या चोट लगने पर दर्द से रो सकता है।
थकान: बच्चा ज्यादा खेलने या दिन भर की गतिविधियों के बाद थक सकता है और रो सकता है।
परेशानी: बच्चा बहुत शोर-शराबे या भीड़-भाड़ वाली जगह पर होने पर परेशान हो सकता है और रो सकता है।
अपनी इच्छा न पूरी होने पर: बच्चा अपनी इच्छा न पूरी होने पर रो सकता है।
अकेलापन: बच्चा अकेलापन महसूस करने पर रो सकता है।
शिशुओं के रोने के अन्य कारण
शिशुओं के रोने के कुछ अन्य कारणों में शामिल हैं:
पेट दर्द: नवजात शिशुओं को पेट दर्द या कोलिक होने पर रोना पड़ सकता है।
कान दर्द: कान में संक्रमण होने पर बच्चा रो सकता है।
गैस: पेट में गैस होने पर बच्चा रो सकता है।
रैश: बच्चे को रैश होने पर वह खुजली से परेशान हो सकता है और रो सकता है।
डिहाइड्रेशन: बच्चे को डिहाइड्रेट होने पर वह रो सकता है।
बच्चे को चुप कराने के तरीके
बच्चे के रोने का कारण समझने के बाद उसे चुप कराने के लिए कुछ तरीके निम्नलिखित हैं:
- बच्चे को दूध या खाना दें। अगर बच्चा भूखा है तो उसे दूध या खाना दें।
- बच्चे को आराम दें। अगर बच्चा थका है तो उसे आराम दें।
- बच्चे को सहलाएं या गले लगाएं। बच्चे को सहलाना या गले लगाना उसे सुरक्षित महसूस कराता है और उसे चुप करा सकता है।
- बच्चे को धीमी आवाज में गाना सुनाएं या कोई कहानी सुना दें।
- बच्चे को किसी खिलौने या खेल से व्यस्त रखें।
डॉक्टर से संपर्क करें
अगर बच्चा लगातार रो रहा है और उसे कोई शारीरिक समस्या नहीं है, तो भी डॉक्टर से संपर्क करना उचित है। डॉक्टर बच्चे की जांच करके किसी अन्य कारण का पता लगाने में मदद कर सकता है।
बच्चे के रोने पर माता-पिता क्या कर सकते हैं
बच्चे के रोने पर माता-पिता को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
- शांत रहें। बच्चे की रोने से घबराएं नहीं और शांत रहें।
- बच्चे को समझें। बच्चे के रोने के कारण को समझने की कोशिश करें।
- बच्चे को प्यार और सहारा दें। बच्चे को प्यार और सहारा देकर उसे शांत कराएं।
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