जैसे तिल में तेल है ज्यों चकमक में आग हिंदी मीनिंग Jaise Til Me Tel Hai-Hindi Meaning कबीर दोहे व्याख्या हिंदी में
जैसे तिल में तेल है ज्यों चकमक में आग
तेरा साईं तुझमें है , तू जाग सके तो जाग
तेरा साईं तुझमें है , तू जाग सके तो जाग
Jaise Til Mein Tel Hai Jyon Chakamak Mein Aag
Tera Saeen Tujhamen Hai , Too Jaag Sake To Jaag
दोहे के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Dohe
जैसे तिल में तेल है - जिस भाँती तिल में तेल व्याप्त है. तिल (एक तरह का बीज) बहुत छोटा होता है और इसके अन्दर तेल होता है.ज्यों चकमक में आग - जिस भाँती चकमक (एक तरह का पत्थर जिसे आपस में रगड़ने पर अग्नि उत्पन्न होती है ) पत्थर में आग होती है .
तेरा साईं तुझमें है- तुम्हारा इश्वर तुम्हारे ही अन्दर है/हृदय में है.
तू जाग सके तो जाग - यदि तुम उसे (इश्वर ) को पहचान सकते हो तो पहचानों, जागने से आशय ज्ञान की प्राप्ति से है.
दोहे का हिंदी मीनिंग: भ्रम का शिकार होकर व्यक्ति इश्वर को इधर उधर ढूंढ़ता फिरता है, लेकिन वह तो हरदम अन्दर बैठा हुआ है। उसे पहचानने के लिए सत्याचरण, नेक राह, दया धर्म और आडम्बरों से मुक्त जीवन की जरुरत होती है, अन्यथा उसे कभी पहचान पाना असंभव होता है, भले ही वह हृदय में बैठा है। जैसे तिल के अंदर तेल समाया हुआ है, चकमक पत्थर में आग रहती है वैसे ही हृदय में साईं का निवास हर वक़्त है बस उसे जानने और जगाने की जरुरत है।
विषय है की यह भ्रम आखिर किसने फैलाया की ईश्वर मंदिर में मिलेगा, मस्जिद में मिलेगा या फिर तीर्थ, तपस्या और एकांत में !, यह बांटने का एक षड्यंत्र है जो बहुत पुराना है, बहरहाल अगर आप ईश्वर को ढूंढे तो वह आपके अंदर ही है, वह तभी मिल पायेगा जब तक आप स्वंय को उस काबिल नहीं बना लेते। काबिलियत से मतलब है की आप सत्य को धर्म बनाइये, मानवता को अपनानिये, खुद का विश्लेषण कीजिये तो कहीं भी भटकने की जरुरत नहीं रह जाती है।
क्या कबीर साहेब विवाहित थे : जिस प्रकार से कबीर साहेब के माता पिता के सबंध में अनेकों विचार प्रसिद्द हैं तो एक दुसरे से मुख्तलिफ हैं, वैसे ही उनके परिवार के विषय में कोई भी एक मान्य राय की सुचना उपलब्ध नहीं है। कबीर को जहाँ कुछ लोग अविवाहित मानते हैं वही कुछ लोग कबीर का भरा पूरा परिवार बताते हैं। इन्ही मान्यताओं के आधार पर ऐसा माना जाता है की कबीर साहेब की पत्नि का नाम लोई था। कबीर पंथ के विद्वान व्यक्ति कहते हैं की कबीर ब्रह्मचारी थे और वे नारी को साधना में बाधक मानते थे।
नारी कुण्ड नरक का, बिरला थंभै बाग।
कोई साधू जन ऊबरै, सब जग मूँवा लाग॥
पहलो कुरूप, कुजाति,
कुलक्खिनी साहुरै येइयै दूरी।
अबकी सरूप, सुजाति, सुलक्खिनी सहजै उदर धरी।
भई सरी मुई मेरी पहिली वरी। जुग-जुग जीवो मेरी उनकी घरी।
मेरी बहुरिया कै धनिया नाऊ।
कबीर साहेब के पुत्र का नाम कमाल माना जाता है।
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