कोरोनिल कोरोना और आयुर्वेदा Coronil Corona (Covid-19) and Ayurveda

कोरोनिल कोरोना और आयुर्वेदा Coronil Corona (Covid-19) and Ayurveda

बाबा राम देव के द्वारा बनाई गई कोरोनिल टेबलेट्स पर तरह तरह की खबरे मीडिया में है, जैसे कोरोनिल दवा की अनुमति आयुष मंत्रालय से नहीं ली गई, इसका शोध नहीं किया गया, क्लिनिकल ट्राइल नहीं हुआ। लेकिन पतंजलि की तरफ से बार बार यही कहा जा रहा है की उनके द्वारा सभी नियमों का पालन किया गया है।

कोरोना वाइरस से बचाव आयुर्वेद और कोरोना वायरस Corona Virus Precaution Ayurveda and Corona Virus

कोरोनिल टेबलेट्स को समझने के लिए आप पहले आयुर्वेद की हालत को समझना बहुत जरुरी है। वर्तमान में यदि आयुर्वेद की स्थिति पर विश्लेषण किया जाए तो हम देखेंगे की जिस आयुर्वेद का गौरवशाली इतिहास रहा है वह वर्तमान में अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति से पिछड़ रहा है। आयुर्वेद के मूल ग्रन्थ यथा कश्यप संहिता, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, भेलसंहिता तथा भारद्वाज संहिता में संचित ज्ञान के अतरिक्त हमने कुछ विशेष जोड़ा नहीं है। जो ज्ञान हमें इस ग्रंथों से मिला है उसका भी कायदे से अनुंसधान और विश्लेषण हमारे द्वारा नहीं किया गया है।

1835 में ब्रिटिश राज में कोल्कता के आयुर्वेद कॉलेज को बंद कर दिया और उसे आधुनिक मेडिकल कॉलेज में बदल दिया। अंग्रेजों ने वैद्यों को अप्रशिक्षित और झोला छाप बताकर एलोपेथी को ही स्थापित कर दिया और आयुर्वेद के साथ ही यूनानी, होम्योपेथिक चिकित्सा पद्धतियों को सड़क छाप घोषित कर दिया। स्वतंत्र भारत में भी यह स्थिति कुछ विशेष बदली नहीं। लेकिन गौरतलब है की चीन ने अपनी चिकित्सा पद्धति के महत्त्व को समझा और 1950 में ही हर्बल दवाओं की खेती शुरू कर दी और देसी इलाज करने वालों को एक प्लेटफार्म से जोडकर उन्हें प्रशिक्षित किया, उन्हें आधुनिक रिसर्च के साथ जोड़ा।
हमारे देश में स्वतंत्रता के उपरान्त भी सरकारों ने भी इस और ध्यान नहीं दिया। जहां वैद्यों को झोला छाप समझा जाता रहा वहीँ सरकारों ने ऐसी कोई नीति नहीं बनाई की उनके ज्ञान को आधुनिक विज्ञान से जोडकर उन्हें प्रशिक्षित किया जाए। ऐसे मैं अमूल्य और दुर्लभ वानस्पतिक ज्ञान रखने वाले वैद्य हाशिये पर हो गए और उनके अर्जित ज्ञान को आगे हस्तांतरित नहीं किया जा सका।

आयुर्वेद चिकित्सा के लिए एलोपेथी की तुलना में कॉलेज/पाठ्यक्रम और शोध संस्थान की कोई ठोस नीति नहीं बनी। यही कारण है की जो आयुर्वेदिक हॉस्पिटल बने वे भी दोयम दर्जे के ही समझे गए। उनके पास ना तो आधुनिक उपकरण थे और ना ही समुचित सुविधाए ही। जहां एलोपेथी के हॉस्पिटल्स मुख्य मार्गों पर स्थापित किए गए वहीँ आयुर्वेदिक हॉस्पिटल्स किसी गली तक ही सीमित रह गए। इससे लोगों की मानसिकता पर गहरा असर पड़ता है और वे वैद्य के पास जाने की तुलना मैं डॉक्टर्स के पास जाना अधिक सुविधा जनक और सोशल स्टेटस के रूप में भी देखने लगे। लोगों मैं यह धारणा बनने लगी की आयुर्वेद तो घास फूस आदि से की जाने वाली चिकित्सा है। आयुर्वेद के प्रति आज भी राय है की यह तो थकान मिटाने वाली और मानसिक शान्ति देने तक ही सीमित है। लोगों की इस धारणा को बदलने के लिए सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं।
इस विषय पर उल्लेखनीय है की हमें चाहिए की हम आयुर्वेद के प्रति लोगों में व्याप्त मिथ्या धारणा को दूर करें और उन्हें यह समझाएं की यह चिकित्सा पद्धति कारगर है और अपना स्वतंत्र महत्त्व रखती है। लोगों को आयुर्वेद से जोड़ने के लिए आयुर्वेद हॉस्पिटल्स की स्थापना एलोपेथी की तर्ज पर की जाए, उन्हें आधुनिक उपकरण मुहिया करवाए जाएं, प्राइम लोकेशन पर हॉस्पिटल्स की स्थापना की जाए, हेल्थ इन्सोरेन्स में आयुर्वेदा को शामिल किया जाए, स्कूलों में आयुर्वेद के ग्रंथों के अध्ययन की व्यवस्था की जाए।

बाबा रामदेव जी ने आयुर्वेद के प्रचार प्रसार के लिए जो किया है वह निश्चित ही सराहनीय है। सरकार को चाहिए की वह आगे बढ़कर बाबा से संवाद कायम करे और उन्हें प्रोत्साहित करे, सुविधाएं दें जिससे वे शीध्र कोरोना की रोकथाम के लिए बनाई गई कोरोनिल टेबलेट्स को लोगों तक उपलब्ध करवा सके। उल्लेखनीय है की इस दिशा में सरकार की सहायता की बहुत जरूरत होती है नहीं तो किसी दवा के क्लिनिकल ट्राइल और रिजल्ट्स आने में ही एक साल का समय लग जाता है, वो भी एलोपेथी दवा की। आयुर्वेद तो वैसे ही बहुत पिछड़ा हुआ है। आशा है की कोरोनिल टेबलेट्स को जल्दी ही ओपचारिक अनुमति मिलेगी और आयुर्वेद के माध्यम से हम कोरोना महामारी को दूर कर पायेंगे, क्योंकि आयुर्वेद में असीम संभावनाएं मौजूद हैं।

The author of this blog, Saroj Jangir (Admin), is a distinguished expert in the field of Ayurvedic Granths. She has a diploma in Naturopathy and Yogic Sciences. This blog post, penned by me, shares insights based on ancient Ayurvedic texts such as Charak Samhita, Bhav Prakash Nighantu, and Ras Tantra Sar Samhita. Drawing from an in-depth study and knowledge of these scriptures, Saroj Jangir has presented Ayurvedic Knowledge and lifestyle recommendations in a simple and effective manner. Her aim is to guide readers towards a healthy life and to highlight the significance of natural remedies in Ayurveda.


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