मिल मेरे प्रीतमा जिओ मीनिंग हिंदी Mil Mere Pritam Jio Meaning
जीवात्मा अपने परमात्मा से पार्थना करती है की उसके बगैर उसकी स्थिति बहुत ही दयनीय और असहाय है, अब आकर मेरे प्रीतम मुझ से मिलाप करो। यह जीवात्मा अपने प्रीतम के अभाव में बहुत ही दुखी है और ना तो उसके नैनों में नींद है और ना ही उसे अन्न ही अच्छा लगता है, यहाँ तक की उसे पानी भी अच्छा नहीं लगता है। गुरु के आगे विनती है की मेरे प्रियतम से मुझे मिला दिया जाय, चाहे वह कैसे भी मिले। मेरे प्रियतम स्वंय सुखो के दाता हैं और वे स्वंय मुझे मिलने मेरे घर पर आये हैं।
मेरे प्रियतम सदा अमर है और कभी भी सांसारिक मृत्यु को प्राप्त नहीं होने वाले हैं। नानक देव जी ! यह जीवात्मा सदा ही सुहागन रहने वाली है जिसे छोड़कर प्रिय कभी नहीं जायेगे। "वाहे गुरु जी"
मिल मेरे प्रीतमा जिओ,
तुध बिन खरी निमाणी,
मैं नैणी नींद ना आवै, जीओ,
भावै अन्न ना पाणी,
मिल मेरे प्रीतमा जिओ,
तुध बिन खरी निमाणी,मिल मेरे प्रीतमा जिओ,
तुध बिन खरी निमाणी,
पानी अन्न ना भावै, मरिए हांवे,
बिन पिर (पीर ) क्यों सुख पाइये,
गुर आगे करु बिनती, जे गुर भावै,
जो मिले तिवें मिलाइए,
मिल मेरे प्रीतमा जिओ,
तुध बिन खरी निमाणी,
मिल मेरे प्रीतमा जिओ,
तुध बिन खड़ी निमाणी,
आपे मेल लए सुख दाता,
आप मिलया घर आए,
नानक कामन सदा सुहागन,
ना पीर मरे ना जाये,
मिल मेरे प्रीतमा जिओ, तुध बिन खरी निमाणी,
तुध बिन खरी निमाणी,
मैं नैणी नींद ना आवै, जीओ,
भावै अन्न ना पाणी,
मिल मेरे प्रीतमा जिओ,
तुध बिन खरी निमाणी,मिल मेरे प्रीतमा जिओ,
तुध बिन खरी निमाणी,
पानी अन्न ना भावै, मरिए हांवे,
बिन पिर (पीर ) क्यों सुख पाइये,
गुर आगे करु बिनती, जे गुर भावै,
जो मिले तिवें मिलाइए,
मिल मेरे प्रीतमा जिओ,
तुध बिन खरी निमाणी,
मिल मेरे प्रीतमा जिओ,
तुध बिन खड़ी निमाणी,
आपे मेल लए सुख दाता,
आप मिलया घर आए,
नानक कामन सदा सुहागन,
ना पीर मरे ना जाये,
मिल मेरे प्रीतमा जिओ, तुध बिन खरी निमाणी,
कौन थे भगत पूरण सिंह जी
भाई भगत पूरण सिंह जी बीसवीं सताब्दी के (4 June, 1904 - 5 August, 1992) का जन्म राजेवाल (राहों), जिला लुधियाना में ४ जून, १ ९ ०४ को माता, मेहताब कौर और पिता चौधरी चिबू मल से हुआ था, जो जन्म से हिंदू धर्म से सबंध रखते थे। भगत पूरण सिंह जी के बचपन का नाम रामजी दास था।
भगत पूरण सिंह जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा शहर-खन्ना, पंजाब में पूर्ण की और फिर में लाहौर के खालसा हाई स्कूल में दाखिला लिया। बचपन से ही उन्होंने बहुत ही अभावो का सामना किया औरउनकी माता जी ने भी भी बड़े ही दुखों का सामना किया क्योंकि रामजीदास जी के पिता का देहांत हो गया था। उनकी माताजी ने उनको गुरुद्वारा डेरा साहिब में काम करने को कहा और वे वहाँ पर साफ़ सफाई का काम किया करते थे। यहीं पर भाई पूरण सिंह जी गुरुग्रंथ साहिब को श्रधा सुमन अर्पित करने का काम भी करते रहे। यहीं पर रहते हुए उन्होंने बीमार, अपाहिज और दुखी मानव जन के लिए कार्य करना शुरू किया।
भाई पूर्ण सिंह जी के सिक्ख बनने सबंधी एक रोचक किस्सा है। पूरण सिंह जी अपने सेवा भाव के लिए कई गावों की यात्राएं किया करते थे, तब वे कई मंदिरों में रुकते थे जहाँ पर उन्हें रुकने की एवज में साफ़ सफाई करवाई जाती थी, उल्लेखनीय है की भाई पूरण सिंह जी स्वंय गुरुद्वारे की साफ़ सफाई किया करते थे लेकिन उन पर कोई दबाव नहीं था की यदि उन्होंने सफाई नहीं की तो उनको खाना नहीं मिलेगा, या रहने की जहग नहीं मिलेगी, इसके बाद ही उन्हें मंदिर में रुकने और खाने की इजाजत होती थी, ऐसा देख कर पूरण सिंह जी दिल बहुत ही व्यथित हुआ और उन्होंने खंड का अमृत Khanda-da-Amrit चखकर सिक्ख बनने का फैसला किया।
पूरण सिंह जी और पिंगलवाड़ा स्थापित करने के सबंध में उल्लेखनीय है की उनकी माता जी उन्हें बचपन से यह सिखाती थी की हर जीव चाहे वह चींटी भी क्यों ना हो उसमे भी इश्वर का वास है और उन्हें सभी का ध्यान रखना चाहिए और सेवा भाव, जीवों की सेवा ही परम धर्म का काम है। पेड़ पौधे लगाना, पक्षियों को खाना, पानी डालना, रास्ते से कंकड़ पत्थर आदि उठाना उन्हें उनकी माँ ने ही सिखाया था। पूरण सिंह ने १९४७ में पिंगलवाड़ा को स्थापित किया जिसका शाब्दिक अर्थ है अपंगो (रुग्णों) का घर, जो आज भी चलाया जाता है और हजारों लोगों के इलाज का एक अहम् केंद्र है।
१९३४ को डेरा साहिब के गुरूद्वारे पर किसी ने एक अपंग लडके को छोड़ दिया जिसे आगे चलकर पूरण सिंह जी ने ही पीरा सिंह नाम दिया। इसे पूरण सिंह ने अपनाया और इसकी बहुत सेवा की। इस घटना ने पूरण सिंह जी के जीवन को पूर्ण रूप से बदल दिया। १९४७ में जब वे विभाजन के उपरान्त भारत में अमृतसर में पहुंचे तो उन्होंने देखा की हजारों लोग विभाजन के दंश के कारण असहाय और रोगी बन चुके हैं, जिनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। वे वहां पर घायलों और रोगियों का इलाज करने लगे और उनके लिए मांग कर भोजन और दावा भी लाते रहे। १९७९ को भारत सरकार के द्वारा उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा गया लेकिन अमृतसर पर सरकार की कार्यवाही के चलते उन्होंने यह सम्मान वापस लौटा दिया। ऐसे महान जन कल्याणकारी संत आत्माएं हजारों लाखों वर्षों में दिखाई देती हैं, शत शत नमन।
भाई भगत पूरण सिंह जी बीसवीं सताब्दी के (4 June, 1904 - 5 August, 1992) का जन्म राजेवाल (राहों), जिला लुधियाना में ४ जून, १ ९ ०४ को माता, मेहताब कौर और पिता चौधरी चिबू मल से हुआ था, जो जन्म से हिंदू धर्म से सबंध रखते थे। भगत पूरण सिंह जी के बचपन का नाम रामजी दास था।
भगत पूरण सिंह जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा शहर-खन्ना, पंजाब में पूर्ण की और फिर में लाहौर के खालसा हाई स्कूल में दाखिला लिया। बचपन से ही उन्होंने बहुत ही अभावो का सामना किया औरउनकी माता जी ने भी भी बड़े ही दुखों का सामना किया क्योंकि रामजीदास जी के पिता का देहांत हो गया था। उनकी माताजी ने उनको गुरुद्वारा डेरा साहिब में काम करने को कहा और वे वहाँ पर साफ़ सफाई का काम किया करते थे। यहीं पर भाई पूरण सिंह जी गुरुग्रंथ साहिब को श्रधा सुमन अर्पित करने का काम भी करते रहे। यहीं पर रहते हुए उन्होंने बीमार, अपाहिज और दुखी मानव जन के लिए कार्य करना शुरू किया।
भाई पूर्ण सिंह जी के सिक्ख बनने सबंधी एक रोचक किस्सा है। पूरण सिंह जी अपने सेवा भाव के लिए कई गावों की यात्राएं किया करते थे, तब वे कई मंदिरों में रुकते थे जहाँ पर उन्हें रुकने की एवज में साफ़ सफाई करवाई जाती थी, उल्लेखनीय है की भाई पूरण सिंह जी स्वंय गुरुद्वारे की साफ़ सफाई किया करते थे लेकिन उन पर कोई दबाव नहीं था की यदि उन्होंने सफाई नहीं की तो उनको खाना नहीं मिलेगा, या रहने की जहग नहीं मिलेगी, इसके बाद ही उन्हें मंदिर में रुकने और खाने की इजाजत होती थी, ऐसा देख कर पूरण सिंह जी दिल बहुत ही व्यथित हुआ और उन्होंने खंड का अमृत Khanda-da-Amrit चखकर सिक्ख बनने का फैसला किया।
पूरण सिंह जी और पिंगलवाड़ा स्थापित करने के सबंध में उल्लेखनीय है की उनकी माता जी उन्हें बचपन से यह सिखाती थी की हर जीव चाहे वह चींटी भी क्यों ना हो उसमे भी इश्वर का वास है और उन्हें सभी का ध्यान रखना चाहिए और सेवा भाव, जीवों की सेवा ही परम धर्म का काम है। पेड़ पौधे लगाना, पक्षियों को खाना, पानी डालना, रास्ते से कंकड़ पत्थर आदि उठाना उन्हें उनकी माँ ने ही सिखाया था। पूरण सिंह ने १९४७ में पिंगलवाड़ा को स्थापित किया जिसका शाब्दिक अर्थ है अपंगो (रुग्णों) का घर, जो आज भी चलाया जाता है और हजारों लोगों के इलाज का एक अहम् केंद्र है।
१९३४ को डेरा साहिब के गुरूद्वारे पर किसी ने एक अपंग लडके को छोड़ दिया जिसे आगे चलकर पूरण सिंह जी ने ही पीरा सिंह नाम दिया। इसे पूरण सिंह ने अपनाया और इसकी बहुत सेवा की। इस घटना ने पूरण सिंह जी के जीवन को पूर्ण रूप से बदल दिया। १९४७ में जब वे विभाजन के उपरान्त भारत में अमृतसर में पहुंचे तो उन्होंने देखा की हजारों लोग विभाजन के दंश के कारण असहाय और रोगी बन चुके हैं, जिनके पास इलाज के लिए पैसे नहीं हैं। वे वहां पर घायलों और रोगियों का इलाज करने लगे और उनके लिए मांग कर भोजन और दावा भी लाते रहे। १९७९ को भारत सरकार के द्वारा उन्हें पद्मश्री से भी नवाजा गया लेकिन अमृतसर पर सरकार की कार्यवाही के चलते उन्होंने यह सम्मान वापस लौटा दिया। ऐसे महान जन कल्याणकारी संत आत्माएं हजारों लाखों वर्षों में दिखाई देती हैं, शत शत नमन।
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Mil Mere Pritam | Eh Janam Tumhare Lekhe | Pavan Raj Malhotra | Releasing
Song - Mil Mere Pritam
Singer - Manna Mand
Music - Gurmoh & Vicky Bhoi
Mix & Master - Sameer Charegaonkar
Music Label - White Hill Music
Movie - Eh Janam Tumhare Lekhe
White Hill Productions In Association With Pingalwara Presents
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Author - Saroj Jangir
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