पतंजलि मुक्ता वटी क्या है मुक्ता वटी के फायदे Patanjali Mukta Vati Benefits Usages Price and Usages
यह लेख पतंजली दिव्य मुक्तावटी ओषधि के विषय में/ओषधि के घटकों के बारे सामान्य जानकारी देने हेतु लिखा गया है। यदि आपको किसी भी प्रकार का कोई विकार है तो पतंजली चिकित्सालय में उपलब्ध वैद्य से सलाह प्राप्त कर लें और इसके उपरान्त ही किसी भी दवा का सेवन करें।पतंजलि मुक्ता वटी क्या है What is Patanjali Mukta Vati
पतंजलि मुक्ता वटी एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसे रक्तचाप के नियंत्रण हेतु सेवन किया जाता है। ब्लड प्रेशर के विकार और उससे सबंधित अन्य विकार जैसे, घबराहट, अनिंद्रा, बेचैनी, सीने में दर्द, सर दर्द, चक्कर आना आदि में भी इस दवा का उपयोग किया जाता है। इस ओषधि में सर्पगन्धा का उपयोग होता है। यह ओषधि जहाँ उच्च रक्तचाप को दूर करती है वहीँ अनिंद्रा विकार में लाभकारी होती है। हृदय की कमजोरी में गजोबन बहुत ही उपयोगी होता है।यह भी पढ़ें :
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What Patanjali Ayurveda Says About Patanjali Mukta Vati पतंजली मुक्तावटी के विषय में पतंजली आयुर्वेद का कथन
We came to know that this drug is successful after experimenting on millions of patients suffer with high blood pressure, that it completely cures the problem if it is taken along with the practice of Yoga. Mukta vati is totally free from side effects. This drug cures high blood pressure or heart disease caused by the disorders of the kidneys or Cholesterol, anxiety, stress or any other reason which is hereditary, etc. It works well if insomnia, nervousness, chest pain and head ache like Problems are mingled with BP. Dosage and method of usage: Chewing up 1 or 2 tablets and drink gourd juice or water 1 hour before breakfast in the morning and before taking dinner in the evening.पतंजली मुक्ता वटी की कीमत Price of Patanjali Mukta Vati
Number Of Tablets-120 (300mg) का मूल्य रूपये २०० है।पतंजलि मुक्ता वटी कहाँ से खरीदें Where Should I Buy Patanjali Mukta Vati
इस ओषधि को आप अपने निकटतम पतंजलि चिकित्सालय में वैद्य की सलाह के उपरान्त खरीद सकते हैं। यह पतंजलि स्टोर्स पर उपलब्ध है और आप इसे ऑनलाइन भी खरीद सकते हैं। पतंजलि आयुर्वेद की वेबसाइट का लिंक निचे दिया गया है।Benefits of Patanjali Mukta Vati Hindi पतंजलि मुक्ता वटी के फायदे इस दवा का मुख्य रूप से उच्च रक्त चाप के लिए किया जाता है। अनिद्रा अधिक चिन्तन में भी इसका उपयोग किया जाता है।
मुक्ता वटी के ओषधिय गुण : औषधीय कर्म (Medicinal Actions) मुक्ता वटी एंटीडिप्रेसेंट एंटी-हाइपरटेन्सिव, तनाव विरोधी, दिमाग को आराम देने वाला एंटीऑक्सिडेंट, हल्का दाहक विरोधी, अडाप्टोजेनिक, शामक, एंटिकॉनविल्सेट होते हैं।
https://www.patanjaliayurved.net/product/ayurvedic-medicine/vati/mukta-vati-extra-power/125
दिव्य मुक्ता वटी के रोचक लाभ | Swami Ramdev
वर्तमान समय की जीवन शैली कुछ ऐसी बन गई ही की हम अपने नित्य जीवन में स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाते हैं जिसके कारण से हमें कई प्रकार के रोग घेर लेते हैं। एक स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक है की हम अपने जीवन शैली में यथोचित बदलाव करें और योग को अपने प्रतिदिन की रूटीन में शामिल करें। हाई ब्लड प्रेशर में हृदय की धमनियाँ सिकुड़ने लगती हैं जिनके कारण से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बना रहता है। आप हृदय विकारों से बचने के लिए नित्य प्राणायाम, अनुलोम विलोम, बालासन, सुखासन, सेतु बंधासन, धो-मुखश्वनासन आदि करें। अपने खान पान पर भी विशेष ध्यान दें। जैसा की स्वामी नित्यान्दंम जी ने बताया है की रात को समय पर सोने और सुबह जल्दी उठ कर सुबह की सैर करना आवश्यक है।
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रक्तचाप के अनियंत्रित होने का प्रमुख कारण मोटापा भी होता है इसलिए अपने वजन पर विशेष रूप से ध्यान दीजिये। खेल कूद और शारीरिक व्यायाम करें और शारीरिक मेहनत का काम भी करें। चटपटे आहार से दूर रहें और धूम्रपान से तौबा करें। आप अपने भोजन में साबुत अनाज को शामिल करें। दूध, हरी सब्जियां, दाल, सोयाबीन, प्याज, लहसुन को अपनी खुराक में शामिल करें। इसके अतिरिक्त नमक का सेवन कम करें। ज्यादा चाय और कॉफी का सेवन नहीं करें।
आप सुबह कुछ कलियाँ लहसुन का उपयोग करें। आँवले के रस को शहद में मिलाकर लेने से भी लाभ मिलता है।
High Blood Pressure Causes उच्च रक्तचाप के कारण
अनियमित जीवन शैली। शारीरिक श्रम का अभाव।
अधिक मात्रा में तैलीय प्रदार्थों का सेवन।
भोजन में अधिक मात्रा में नमक का सेवन।
शराब और धुम्रपान का अधिक सेवन।
समुचित मात्रा में नींद का नहीं लेना। हाई ब्लड प्रेशर के घरेलु उपाय : उल्लेखने है की यद्यपि हाई ब्लड प्रेशर का उचित निदान वैद्य/चिकित्सक से किया जाना चाहिए, लेकिन आप वैद्य के सलाह के उपरान्त निम्न घरेलु नुस्खों को आजमा कर देखिये।
भोजन में लहसुन का इस्तेमाल करें। सुबह शाम एक कलि लहसुन की चबाकर खाएं। आप शहद के साथ भी लहसुन का सेवन कर सकते हैं। लहसुन ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करता है (१)
सुबह खाली पेट आंवले का रस (एक चम्मच) लेने से उच्च रक्त चाप में सुधार होता है। (२)
मेथी ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित कर मेटाबॉलिज्म के स्तर में भी सुधार करती है इसलिए अपने भोजन में मेथी का उपयोग करना चाहिए। रात को दो चम्मच मेथी पानी में भिगो कर सुबह मेथी और उसके पानी के सेवन से रक्त चाप में सुधार होता है। (3)
सुबह निम्बू का रस पीने से भी रक्त चाप में सुधार होता है। (४)
करेला और सहजन की फ़ली से भी रक्त चाप में लाभ मिलता है।
अर्जुन की छाल का 10 ग्राम चूर्ण, 100 मिली दूध और100 मिली पानी को मिला कर इन्हें पकाएं और जब मात्र दूध बच जाए तब इसे ठंडा करके छान कर पीने से भी लाभ मिलता है।
दूध में हल्दी और दालचीनी मिला कर पीने से उच्च रक्त चाप में लाभ मिलता है।
एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को रात को पानी में भिगो दें और सुबह खाली पेट इसका सेवन करने से लाभ मिलता है।
"दिव्य मुक्ता वटी" में जो घटक होते हैं उन का संक्षिप्त परिचय
Gajoban (गजोबन) गज़ोबन (ऑनोसमा ब्रेक्टिएटम बोरागिनसेई) एक हर्ब है जिसे यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग में लाया जाता है। गजोबन ठंडा, कसैले, मूत्रवर्धक, स्पस्मॉलिटिक और हृदय को शक्ति देने वाला होता है। गजोबन का मुख्य रूप से हृदय विकार (हृदय की कमजोरी ) अनिंद्रा, मानसिक तनाव (अवसाद), पाचन विकार (कब्ज/गेस), पुराने बुखार, पीलिया, मिस्टरिस्टल्सिस आदि विकारों के उपचार हेतु उपयोग में लाया जाता है। गजोबन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास करती है।
वचा या वच
वच का वर्णन और प्रयोग चरक और सुश्रुता के समय से ही किया जा रहा है। वच को कैलमस रूट, स्वीट फ्लैग, उग्रगंध आदि नामों से भी जाना जाता है। इस हर्ब को अंग्रेजी में कैलामस (Acorus Calamus) और इसका लेटिन नाम इसका लैटिन नाम एकोरस कैलमस Acorus calamus होता है। वच का उपयोग विभिन्न ओषधियों के निर्माण में किया जाता है। इसको मुख्यतया त्वचा विकारों को दूर करने के लिए, मानसिक विकारों के इलाज करने, तनाव दूर ,याददास्त बढ़ाने, तनाव को दूर करने में, घाव के उपचार, और पेट सबंधी विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है। वाच / वच का शाब्दिक अर्थ होता है बोलना/ध्वनि निकालना, इसीलिए यह गले के विकारों के लिए भी एक श्रेष्ठ ओषधि होती है। वच मस्तिष्क और न्यूरोलॉजिकल गतिविधियों पर गहरा असर डालती है इसलिए तंत्रिका तंत्र के अतिरिक्त हृदय विकारों में भी इसका उपयोग किया जाता है। वस रस में कटु, तिक्त, काषाय होती है। वच का वीर्य उष्ण, विपाक-कटु, और साथ ही वच दीपन, पाचन, लेखन, प्रमाथि, कृमिनाशक, उन्मादनाशक, अपस्मारघ्न, और विरेचक होता है।
आप सुबह कुछ कलियाँ लहसुन का उपयोग करें। आँवले के रस को शहद में मिलाकर लेने से भी लाभ मिलता है।
High Blood Pressure Causes उच्च रक्तचाप के कारण
अनियमित जीवन शैली। शारीरिक श्रम का अभाव।
अधिक मात्रा में तैलीय प्रदार्थों का सेवन।
भोजन में अधिक मात्रा में नमक का सेवन।
शराब और धुम्रपान का अधिक सेवन।
समुचित मात्रा में नींद का नहीं लेना। हाई ब्लड प्रेशर के घरेलु उपाय : उल्लेखने है की यद्यपि हाई ब्लड प्रेशर का उचित निदान वैद्य/चिकित्सक से किया जाना चाहिए, लेकिन आप वैद्य के सलाह के उपरान्त निम्न घरेलु नुस्खों को आजमा कर देखिये।
भोजन में लहसुन का इस्तेमाल करें। सुबह शाम एक कलि लहसुन की चबाकर खाएं। आप शहद के साथ भी लहसुन का सेवन कर सकते हैं। लहसुन ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करता है (१)
सुबह खाली पेट आंवले का रस (एक चम्मच) लेने से उच्च रक्त चाप में सुधार होता है। (२)
मेथी ग्लूकोज की मात्रा को नियंत्रित कर मेटाबॉलिज्म के स्तर में भी सुधार करती है इसलिए अपने भोजन में मेथी का उपयोग करना चाहिए। रात को दो चम्मच मेथी पानी में भिगो कर सुबह मेथी और उसके पानी के सेवन से रक्त चाप में सुधार होता है। (3)
सुबह निम्बू का रस पीने से भी रक्त चाप में सुधार होता है। (४)
करेला और सहजन की फ़ली से भी रक्त चाप में लाभ मिलता है।
अर्जुन की छाल का 10 ग्राम चूर्ण, 100 मिली दूध और100 मिली पानी को मिला कर इन्हें पकाएं और जब मात्र दूध बच जाए तब इसे ठंडा करके छान कर पीने से भी लाभ मिलता है।
दूध में हल्दी और दालचीनी मिला कर पीने से उच्च रक्त चाप में लाभ मिलता है।
एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को रात को पानी में भिगो दें और सुबह खाली पेट इसका सेवन करने से लाभ मिलता है।
"दिव्य मुक्ता वटी" में जो घटक होते हैं उन का संक्षिप्त परिचय
Gajoban (गजोबन) गज़ोबन (ऑनोसमा ब्रेक्टिएटम बोरागिनसेई) एक हर्ब है जिसे यूनानी और आयुर्वेदिक चिकित्सा में उपयोग में लाया जाता है। गजोबन ठंडा, कसैले, मूत्रवर्धक, स्पस्मॉलिटिक और हृदय को शक्ति देने वाला होता है। गजोबन का मुख्य रूप से हृदय विकार (हृदय की कमजोरी ) अनिंद्रा, मानसिक तनाव (अवसाद), पाचन विकार (कब्ज/गेस), पुराने बुखार, पीलिया, मिस्टरिस्टल्सिस आदि विकारों के उपचार हेतु उपयोग में लाया जाता है। गजोबन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का भी विकास करती है।
वचा या वच
वच का वर्णन और प्रयोग चरक और सुश्रुता के समय से ही किया जा रहा है। वच को कैलमस रूट, स्वीट फ्लैग, उग्रगंध आदि नामों से भी जाना जाता है। इस हर्ब को अंग्रेजी में कैलामस (Acorus Calamus) और इसका लेटिन नाम इसका लैटिन नाम एकोरस कैलमस Acorus calamus होता है। वच का उपयोग विभिन्न ओषधियों के निर्माण में किया जाता है। इसको मुख्यतया त्वचा विकारों को दूर करने के लिए, मानसिक विकारों के इलाज करने, तनाव दूर ,याददास्त बढ़ाने, तनाव को दूर करने में, घाव के उपचार, और पेट सबंधी विकारों को दूर करने के लिए किया जाता है। वाच / वच का शाब्दिक अर्थ होता है बोलना/ध्वनि निकालना, इसीलिए यह गले के विकारों के लिए भी एक श्रेष्ठ ओषधि होती है। वच मस्तिष्क और न्यूरोलॉजिकल गतिविधियों पर गहरा असर डालती है इसलिए तंत्रिका तंत्र के अतिरिक्त हृदय विकारों में भी इसका उपयोग किया जाता है। वस रस में कटु, तिक्त, काषाय होती है। वच का वीर्य उष्ण, विपाक-कटु, और साथ ही वच दीपन, पाचन, लेखन, प्रमाथि, कृमिनाशक, उन्मादनाशक, अपस्मारघ्न, और विरेचक होता है।
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सर्प गंधा (Sarp Gandha) (Rauvolfia serpentina Linn.)
सर्पगन्धा एपोसाइनेसी परिवार का द्विबीजपत्री, बहुवर्षीय झाड़ीदार सपुष्पक और महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है। सर्प गंधा को पारम्परिक रूप से ओषधियों में उपयोग में लाया जाता है। ऐसा माना जाता है की सर्पगंधा का उपयोग ओषधि निर्माण में ३००० वर्षों से किया जा रहा है। सर्पगंधा की जड़ का उपयोग मुख्य रूप से ओषधियों में किया जाता है। सर्पगंधा के पौधे का वानस्पतिक नाम रौवोल्फिया सर्पेन्टाइना (Rauvolfia serpentina Linn.) Benth. ex Kurz Syn Rauvolfia trifoliata (Gaertn.) Bail है। हिंदी में इसे नकुलकन्द, सर्पगन्धा, धवलबरुआ, नाकुलीकन्द, हरकाई चन्द्रा, आदि नामों से जाना जाता है। सर्प गंधा की जड़ें गहरी पीली और भूरा रंग लिए हुए होती है। सर्पगंधा की जड़े तिक्त पौष्टिक, ज्वरहर, निद्राकर, शामक, गर्भाशय उत्तेजक तथा विषहर होती हैं। सर्पगंधा निचले हिमालय, पूर्वी और पश्चिमी घाट और अंडमान आदि इलाकों में पाई जाती है। सर्पगंधा भारत के अतिरिक्त भारत के अतिरिक्त श्रीलंका, म्यनमार, मलेशिया, इण्डोनेशिया, चीन तथा जापान आदि इलाकों में भी पाई जाती है।
सर्पगंधा को मुख्य रूप से उच्च रक्त चाप के विकार को दूर। करने में होता है। इसके अतिरिक्त साँसों की बीमारी, मिर्गी, विष के प्रभावों को कम करने में सर्पगंधा का उपयोग होता है। सर्पगंधा कफ्फ और वात को शांत करता है और पित्त को बढाता है। तासीर में यह रूखा और गर्म होता है। सर्पगंधा का सेवन अपनी मर्जी से नहीं करना चाहिए क्योंकि अधिक मात्रा में इसका उपयोग शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है। काली खॉंसी में सर्पगंधा का चूर्ण विशेष रूप से लाभकारी होता है। सर्पगंधा में वात शामक, उष्ण एवं विषघ्न गुण होने के कारण यह त्वचा से विष कणों को बाहर निकालने में बहुत ही उपयोगी है। इस पादप से
क्षाराभ रिसरपिन, सर्पेन्टिन, एजमेलिसिन जैसे तत्व प्राप्त होते हैं। चरक (1000-800 ई0पू0) ने सर्पगंधा का वर्णन सर्पदंश तथा कीटदंश के उपचार के लिए किया है। सर्पगंधा की जड़ में 55 से भी ज्यादा क्षार पाये जाते हैं जिनका बहुत अधिक ओषधिय महत्त्व होता है।
आइये जान लेते हैं मोटे रूप से सर्पगंधा का उपयोग किन परिस्थितियों में किया जाता है।
- सर्प गंधा अनिंद्रा और हाइपर टेंसन को दूर करने के लिए अत्यंत ही उपयोगी होती है। इससे बेहतर नींद आती है और तंत्रिका तंत्र जनित अन्य विकारों में लाभ मिलता है (1)
- रक्त चापविशेष रूप से उच्च रक्त चाप हेतु सर्पगंधा का उपयोग लाभकारी होता है। सर्पगंधा में पाए जाने वाले एल्कलॉइड रक्त चाप को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं। (2)
- सर्प गंधा से पेट से सबंधित विकार भी दूर होते हैं (3)
- जहरीले कीटों के काटने पर सर्पगंधा उपयोगी होती है। (4)
- सांप के काटने पर प्राथमिक रूप से इस ओषधिय पादप का उपयोग किया जाता है। यह विष के प्रभाव को कम करता है (5)
- सर्प गंधा रक्त से लिपिड स्तर को कम करता है।
- सर्पगंधा में एंटीइन्फ्लामेंटरी और एंटीबेक्टेरिअलप्रोपर्टीज होती हैं जिससे यह सुजन को दूर करती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करती है।
- पारम्परिक रूप से सर्पगंधा का उपयोग बच्चेदानी के संकुचन को बढाने के लिए किया जाता है।
- अतिचिन्ता रोग (hypochondria) तथा अन्य प्रकार के मानसिक विकारों के लिए भी सर्पगंधा का उपयोग किया जाता है।
The author of this blog, Saroj Jangir (Admin),
is a distinguished expert in the field of Ayurvedic Granths. She has a
diploma in Naturopathy and Yogic Sciences. This blog post, penned by me,
shares insights based on ancient Ayurvedic texts such as Charak
Samhita, Bhav Prakash Nighantu, and Ras Tantra Sar Samhita. Drawing from
an in-depth study and knowledge of these scriptures, Saroj Jangir has
presented Ayurvedic Knowledge and lifestyle recommendations in a simple
and effective manner. Her aim is to guide readers towards a healthy life
and to highlight the significance of natural remedies in Ayurveda.
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