सात समंद की मसि करौं लेखनि सब बनराइ हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

सात समंद की मसि करौं लेखनि सब बनराइ हिंदी मीनिंग Saat Samand Ki Masi Karo Lekhni Sab Banraayi Meaning

सात समंद की मसि करौं, लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं, तऊ हरि गुण लिख्या न जाइ॥
Saat Samand Kee Masi Karaun, Lekhani Sab Banarai.
Dharatee Sab Kaagad Karaun, Taoo Hari Gun Likhya Na Jai.
 
शब्दार्थ : Word Meaning Kabir Doha
  • सात समंद : सातों समुद्र ।
  • मसि करौं : स्याही बना लू।
  • लेखनी - कलम बना लू।
  • सब बनराई - सभी जंगलों की लकड़ी की कलम बना लू।
  • धरती सब कागद करौं - समस्त धरती का कागज़ कार्य में ले लू।
  • तऊ हरि गुण लिख्या न जाइ- तब भी हरी के गुण का गुणगान संभव नहीं है।
  • "सब धरती" या "सम्पूर्ण पृथ्वी"।
  • शब्द "बन" का अर्थ है "जंगल"।
  • शब्द "लिखनी" का अर्थ है "कलम"।
  • शब्द "मसि करूं" का अर्थ है "स्याही बनाकर"।
  • शब्द "गुरु गुण" का अर्थ है "गुरु के गुण"।
इस दोहे में इश्वर के गुणों की महिमा का वर्णन किया गया है। यह दोहे में भक्ति के भाव से कबीरदास जी ने हरी के गुणों की अनंतता को दर्शाया है ।

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Kabir Doha

यदि सातों समंदर की स्याही बना ली जाए और समस्त जंगलों की लकड़ी की लेखनी बना ली जाए और सम्पूर्ण धरती का कागज़ बना लिया जाए तो भी हरी के गुणों की व्याख्या नहीं की जा सकती है। साहेब ने हमेशा से ही गुरु को ईश्वर के तुल्य माना है, जिसमे अथाह गुण हैं और जिसके गुणों का बखान नहीं किया जा सकता है। सातों समुद्रों के जल की स्याही बना ली जाए और सभी वन समूहों की लेखनी बना ली जाए, तथा सारी पृथ्वी को काग़ज़ कर लिया जाए, तब भी परमात्मा के गुण को लिखा नहीं जा सकता। क्योंकि वह परमात्मा अनंत गुणों से युक्त है जिसका वर्णन संभव नहीं है। ऐसे ही गुरु की महिमा का वर्णन है की गुरु और गोविन्द दोनों एक ही समान हैं, वस्तुतः गुरु ईश्वर से भी बढकर है क्योंकि गोविन्द के विषय में गुरु देव जी ने ही बताया है।

सात समंद की मसि करौं लेखनि सब बनराइ हिंदी मीनिंग Saat Samand Ki Masi Karo Lekhni Sab Banraayi Hindi Meaning

हरी (ईश्वर) की महिमा अनंत है और भगवान की अद्भुत महिमा और गुणों की महत्ता को यह दोहा प्रदर्शित करता है। यदि सभी समुद्रों के जल की स्याही बना ले, सभी वन समूहों की लेखनी (कलम) बना ले, और सारी पृथ्वी को कागज़ कर ले, तभी भी इश्वर के गुणों को पूरी तरह से लिखा नहीं जा सकता है, क्योंकि भगवान की महिमा अनंत है।

इस दोहे में कबीर साहेब ने भगवान के अद्भुत गुणों से हमको परिचित करवाया है। हरी के गुणों को शब्दों में व्यक्त करना असंभव है, क्योंकि वे अनंतता में समाये हुए हैं। हम अपनी भक्ति और समर्पण के माध्यम से भगवान के गुणों का आनंद ले सकते हैं, परन्तु उन्हें पूरी तरह से समझना हमारे लिए असंभव है। यह दोहा भक्ति और भावुकता के साथ परमात्मा की महिमा का गुंजार करता है और हमें यह स्मरण दिलाता है कि हमारे प्रयासों से भी परमात्मा की अनंतता को बयां करना संभव नहीं है, क्योंकि वह सभी से परे हैं। हमें समर्पण और निष्ठा से भगवान की भक्ति करनी चाहिए और उनके अनंत गुणों का आनंद लेना चाहिए।

इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि वे यदि सात समुद्रों के जल को स्याही बना लें, समस्त वन-समूहों को लेखनी बना लें और सम्पूर्ण पृथ्वी को काग़ज़ कर लें, तो भी भगवान के गुणों को पूरी तरह से वर्णन कर पाना सम्भव नहीं है। भगवान के गुण अत्यंत अनंत होते हैं और उन्हें शब्दों में समझना और वर्णन करना असंभव है। उनकी महत्ता और अद्भुतता को शब्दों में ढाल देना संभव नहीं है।
 
शब्दार्थ
मसि = स्याही ।

'लेखनि सब बनराय' का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
लेखनि सब बनराय' का अर्थ है, समस्त जंगल (लकड़ी) की लेखनी से कलम बना ली जाये।

गुरु गोविंद दोऊँ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥


गुरु के बगैर ज्ञान की प्राप्ति होना असंभव है और मोक्ष की प्राप्ति भी संभव नहीं है सत्य की प्राप्ति भी संभव नहीं है, मन के विकार भीतभी मिट सकते हैं जब गुरु की कृपा प्राप्त हो। 

गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटे न दोष॥


जो व्यक्ति गुरु की आज्ञा में नहीं रहता है और अन्य मार्ग का अनुसरण करता है वह नरक का ही भागी होता है। गुरु के बताए मार्ग के अनुसरण से ही भक्ति मार्ग सम्भव है।

गुरु शरणगति छाडि के, करै भरोसा और।
सुख संपती को कह चली, नहीं नरक में ठौर॥


गुरुमुखी व्यक्ति गुरु के द्वारा बताए गए मार्ग का ही अनुसरण करता है, अन्य किसी के मार्ग का वह अनुसरण नहीं करता है। 
 
गुरुमुख गुरु चितवत रहे,जैसे मणिहिं भुवंग।
कहैं कबीर बिसरें नहीं,यह गुरुमुख को अंग॥


जो जीव गुरु के बताए गए मार्ग से विमुख होकर गुरु से ही अलग हो जाते हैं उनका कोई ठौर ठिकाना नहीं रहता है। एक बार हरी यदि विमुख हो जाए तो गुरु का सहारा बचता है लेकिन यदि गुरु ही विमुख हो जाए तो कोई ठौर नहीं रहती है। यहां गुरु को ईश्वर के तुल्य बताया है। 

कबीर ते नर अंध है,गुरु को कहते और।
हरि के रूठे ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर॥


गुरु के बिना कोई भी कर्म कार्य नहीं करते हैं और जो गुरु के बगैर दान आदि देते हैं, गुरु के बगैर ईश्वर को याद करते हैं / सुमिरन करते हैं वे सभी निष्फल ही होते हैं। भाव है की गुरु से विमुख हो जाने पर कुछ भी हाथ नहीं लगता है। गुरु बिन माला फेरते,गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन सब निष्फल गया,पूछौ वेद पुरान॥

कबीर सब जग हंडिया, मंदिल कंधि चढ़ाइ।
हरि बिन अपनाँ को नहीं, देखे ठोकि बजाइ॥ 
Kabeer Sab Jag Handiya, Mandil Kandhi Chadhai.
Hari Bin Apanaan Ko Nahin, Dekhe Thoki Bajai.


सारा संसार घूम लिया लेकिन यह देख लिया की इस संसार में कोई हमारा नहीं है। हरी के अतिरिक्त इस संसार में कोई हमारा नहीं है। मैंने मंदल (एक तरह का ढोल ) को गले में लटकाकर उसे थोक बजाकर, पीटकर देख लिया की हरी के अतिरिक्त कोई हमारा नहीं है। भाव है की इस संसार में केवल ईश्वर ही अपना सच्चा साथी है और कोई अन्य सहाय नहीं है। वस्तुतः यह दोहा कबीर साहेब के विभिन्न क्षेत्रो की यात्रा का भी ज्ञान देता है और बताता है की सत्य की खोज में साहेब ने कई स्थानों की यात्राएं की हैं। सार रूप में उन्होंने यह देख लिया की यह संसार मात्र छलावा है और इसके सभी रिश्ते नाते झूठे हैं, अस्थाई हैं स्थाई है तो केवल मालिक का नाम। मालिक के नाम का सुमरिन और सत्य की राह पर चलकर ही इस जीवन को सफल बनाया जा सकता है।

नाँ कुछ किया न करि सक्या, नाँ करणे जोग सरीर। 
जे कुछ किया सु हरि किया, ताथै भया कबीर कबीर॥
Naan Kuchh Kiya Na Kari Sakya, Naan Karane Jog Sareer.
Je Kuchh Kiya Su Hari Kiya, Taathai Bhaya Kabeer Kabeer.


इस संसार में रहते हुए मैंने आज तक कुछ भी नहीं किया है, जो कुछ भी किया है वह परमात्मा ने ही किया है और इसके परिणाम स्वरुप चारों तरफ कबीर कबीर हो गया जिसमे मेरा कुछ भी किया धरा नहीं है। यह साहेब की उस विचारधारा की और इशारा करता है जिसमे उन्होंने यह वाणी दी है की जो भी करता है ईश्वर करता है, अच्छा बुरा सभी वही करता है। जीव के हाथ में कुछ भी नहीं है, इसलिए हरी सुमिरण करते हुए मालिक के बताए गए मार्ग का अनुसरण करके ही इस भव सागर से पार लगा जा सकता है। हरी ही सम्पूर्ण जगत का नियंता है और वही करने के काबिल है।

कबीर किया कछू न होत है, अनकीया सब होइ।
जे किया कछु होत है, तो करता औरे कोइ॥
Kabeer Kiya Kachhoo Na Hot Hai, Anakeeya Sab Hoi.
Je Kiya Kachhu Hot Hai, To Karata Aure Koi.


जो मैं चाहता हूँ वह होता नहीं है और जो मैंने नहीं चाहा है वह हो जाता है। यदि तुम्हारे द्वारा करने से कुछ भी परिणाम प्राप्त होता है/ कुछ होता भी है तो वह उसी मालिक के द्वारा किया हुआ है तुम्हारा इसमें कुछ भी नहीं है। भाव है की जो भी भला बुरा होता है वह उसी हरी के द्वारा किया जाता है, इसमें हमारा कुछ भी लेना देना नहीं है। जगत के समस्त कार्यों का करता धरता ईश्वर ही है। इस दोहे में विरोधाभाष और भेद्काशियोक्ति अलंकार का उपयोग हुआ है। 

जिसहि न कोई तिसहि तूँ, जिस तूँ तिस सब कोइ।
दरिगह तेरी साईंयाँ, नाँव हरुंमन होइ॥
Jisahi Na Koee Tisahi Toon, Jis Toon Tis Sab Koi.
Darigah Teree Saaneenyaan, Naanv Haroo Man Hoi.

स्वामी की दरिगाह, शरण में आकर कोई भी तुम्हारे आशीर्वाद से वंचित नहीं रह पाता है, तुम्हारी कृपा के फल को कोई मिटा नहीं सकता है। जिसका कोई नहीं है उसका सिर्फ तू (मालिक-ईश्वर ) ही है। ईश्वर जिस पर भी मेहरबान होता है वह हल्का होते हुए भी शक्तिशाली बन जाता है। 

एक खड़े ही लहैं, और खड़ा बिललाइ।
साईं मेरा सुलषना, सूता देइ जगाइ॥
Ek Khade Hee Lahain, Aur Khada Bilalai.
Saeen Mera Sulashana, Soota Dei Jagai.


एक व्यक्ति जो ईश्वर की शरण में आ गया है वह खड़े खड़े ही, बहुत ही सरलता से हरी का आशीर्वाद प्राप्त कर लेता है और दुसरा जो हरी की शरण में नहीं गया है वह खड़े खड़े (काफी प्रयत्नों के उपरान्त और विविध मतों को धारण करके) चिल्लाता (बिल्लाइ ) रहता है, उसे कुछ भी प्राप्त नहीं हो पाता है। मेरा ईश्वर, मेरा साईं सुलक्षणा है, मेहरबान है और वह सोते हुए को भी जगाकर सब कुछ दे देता है। हरी के मेहरबान हो जाने पर प्रतीक्षा करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है। इस दोहे में ईश्वर के कृपालु होने की व्यंजना प्राप्त होती है।

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अबरन कौं का बरनिये, मोपै लख्या न जाइ।
अपना बाना बाहिया, कहि कहि थाके माइ॥
Abarana Kauṁ Kā Baraniyē, Mōpai Lakhyā Na Jā'i.
Apanā Bānā Bāhiyā, Kahi Kahi Thākē Mā'i.


जिसका कोई रूप रंग नहीं है, जो अवर्णनीय है (अरबन) उसका वर्णन कैसे किया जा सकता है, मुझसे तो उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। सभी लोग अपने ही भाव (बाना ) के बारे में वर्णन करते हैं और थक जाते हैं लेकिन उनसे यह सिद्ध नहीं हो पाता है। भाव है की जो वर्णनातीत है उसका क्या वर्णन किया जाए, बहुत वर्णन करने के उपरान्त भी कोई ईश्वर का वर्णन नहीं कर पाया है। निराकार, निर्गुण और निर्विकार ब्रह्म वर्णन से परे है। सभी जीव यथाशक्ति अपने हिसाब से वर्णन करते हैं लेकिन वर्णन करना संभव नहीं है। 

झल बाँवे झल दाँहिनैं, झलहिं माँहि ब्यौहार।
आगैं पीछै झलमई, राखै सिरजनहार॥
Jhal Baanve Jhal Daanhinain, Jhalahin Maanhi Byauhaar.
Aagain Peechhai Jhalamee, Raakhai Sirajanahaar.


विषय वासनाए की ज्वाला बाएँ हैं और दाहीने भी हैं। इसी ज्वाला में ही सारे कार्य होते हैं, समस्त संसार का व्यवहार इसी ज्वाला में ही होता है। माया की अग्नि आगे और पीछे दोनों तरफ जल रही है। इस ज्वाला से रखवाली करने वाला वही सृजनहार ही है। ईश्वर ही इस अग्नि से हमारी रक्षा कर सकता है। भाव है की माया की अग्नि चारों तरफ जल रही है, इस संसार के समस्त कार्य माया के द्वारा ही संचालित हो रहे हैं और इस माया की डाह से हमें हरी के चरणों का आशीर्वाद ही बचा सकता है। माया के भ्रम को हम तभी समझ सकते हैं जब हम हरी के सानिध्य में चले जाए। 

साईं मेरा बाँणियाँ, सहजि करै ब्यौपार।
बिन डाँडी बिन पालड़ै, तोलै सब संसार॥
Saeen Mera Baanniyaan, Sahaji Karai Byaupaar.
Bin Daandee Bin Paaladai, Tolai Sab Sansaar.


ईश्वर/साईं मेरा बानिया (व्यापार करने वाला ) है जो सहज रूप से व्यापार करता है। बिना तराजू और डंडी, पलड़े के वह समस्त संसार के व्यव्हार को तौलता है। भाव है की हरी सभी को तौलता है, उसके कर्मों का हिसाब रखता है और उसमे कोई हेरा फेरी नहीं होती है। अच्छे कर्मों का अच्छा फल मिलता है और बुरे कर्मों का बुरा ही फल प्राप्त होता है जिसमे कोई गुन्जाईस बाकी नहीं रहती है।

कबीर वार्‌या नाँव परि, कीया राई लूँण।
जिसहिं चलावै पंथ तूँ, तिसहिं भुलावै कौंण॥
Kabeer Vaar‌ya Naanv Pari, Keeya Raee Loonn.
Jisahin Chalaavai Panth Toon, Tisahin Bhulaavai Kaunn.

साहेब हरी के नाम पर न्योछावर हैं। नज़र उतारने के लिए मैंने लूंण और राई (सरसों) कर दिया है-यह एक तरह से बुरे लोगों को दूर रखने के लिए लोकाचार किया जाता है। हरी जिस सन्मार्ग पर चलाता है उसे भला कौन भुला सकता है। भाव है की इस संसार में जितने भी कार्य हैं वे हरी के द्वारा ही पूर्ण किये जाते हैं, उसी के मार्ग का अनुसरण किया जाना चाहिए।
 
कबीर करणी क्या करै, जे राँम न कर सहाइ।
जिहिं जिहिं डाली पग धरै, सोई नवि नवि जाइ॥
Kabīra Karaṇī Kyā Karai, Jē Rām̐ma Na Kara Sahā'i.
Jihiṁ Jihiṁ Ḍālī Paga Dharai, Sō'ī Navi Navi Jā'i.



कर्म और फल के विषय में साहेब का वर्णन है की तुम्हारे कर्मों का क्या फायदा यदि ईश्वर तुम्हारी रक्षा नहीं करे, ईश्वर की कृपा नहीं हो। अहंकारी जीव जिस जिस डाल पर पाँव रखता है वही झुक जाती है और उसके कार्य सिद्ध नहीं हो पाते हैं। भाव है की सद्कर्मों के अच्छे फल के लिए भी हरी की कृपा की आवश्यकता होती हैं। इस दोहे में रुपकातिश्योक्ति अलंकार का उपयोग हुआ है। 

जदि का माइ जनमियाँ, कहूँ न पाया सुख।
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जब से मां से जन्म लिया है तभी से मुझे इस संसार में कहीं सुख नहीं मिला है। मैं डाली डाली फिरा तो दुखों ने मेरा पत्ते पत्ते पर पीछा किया। भाव है की इस संसार में दुःख ही दुःख हैं सुख तो हरि के चरणों के अतिरिक्त कहीं भी नहीं है, और यह संसार अत्यंत ही दुखमय है। इस दोहे में लोकोप्ती अलंकार का उपयोग हुआ है।
 
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