तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा हिंदी मीनिंग Tum To Kaalu Haak Janu Lava Hindi Meaning

तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा हिंदी मीनिंग Tum To Kaalu Haak Janu Lava Hindi Meaning Tulsidas Baalkand Parshuram Laksman Sanvaad Bhavarth

तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।।
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेउ कर घोरा।।
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगु। कटुबादी बालकु बधजोगू ।।
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनिहार भा साँचा।।
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू।।
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही।।
उतर देत छोड़ौ बिनु मारे। केवल कौसिक सील तुम्हारे।।
न त येहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें।।
गाधिसू कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।।
तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा-शब्दार्थ 
तुम्ह तौ-तुमको तो, हाँक हाँककर,जबरदस्ती, बलपूर्वक।  धरेउ-धारण कर लिया, लावा - लाया, कटुबादी - कटु वचन बोलने वाला बिलोकि - देखकर, मरनिहार-मरने को तत्पर, छमिअ-क्षमा करें, साधू-सज्जन, अकरुन करुणा रहित, गुरुद्रोही - गुरु से द्रोह करने वाला, गुरहि - गुरु के, होतेउँ - हो जाता, गाधिसू गाधि के पुत्र यानी विश्वामित्र, अयमय लोहे का बना हुआ, कालु - काल मौत, जनु - जैसे, सुधारि - सुधार कर, ठीक से, घोड़ा - बाँचा भयानक, दोसु - तोप, वधजोगू वध के योग्य, बचाया, साँचा - सचमुच, गरनहिं न नहीं गिनता है, महत्व नहीं देता है, कोही - क्रोधी. सील शील, प्रेम, उरिन ऋणमुक्त. थोरे - ओड, खाँड़ खड्ग, खांडा, ऊखमय गन्ने से बना हुआ, न बुझ - नहीं समझता है, अजहुँ - आज भी, अबूझ - मुर्ख, नासमझ।

तुलसीदास के पद का हिंदी मीनिंग Tulsidasa Pad Hindi Meaning (Baal Kand)
उक्त काव्यांश महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ महाकाव्य के बालकाण्ड से लिया गया है जिसमे लक्ष्मण और परशुराम जी मध्य का संवाद दर्शाया गया है. लक्ष्मण जी परशुराम जी से कहते हैं की आप तो मानों मृत्यु को हांककर अपने साथ लाए हो. यही कारण है की आप बार बार काल के विषय में बातें कर रहे हैं. बार बार यमराज को आवाज देकर मेरे लिए बुला रहे हो (आप बलपूवर्क यमराज को हाँक कर मेरे लिए बुला रहे हो ) परशुराम जी ने जब लक्ष्मण जी के ऐसे कठोर वचन सुने तो परशुराम ने अपना फरसा हाथ में ले लिया और बोलने लगे की अब मुझे जन कोई दोष न दें क्योंकि यह कटुवचन बोलने वाला लड़का वध के ही काबिल है। 

मैंने इसे बालक समझ कर कई बार छोड़ दिया/मेरे फरसे से बचा लिया लेकिन यह बालक तो मरने ही योग्य है. परशुराम जी के क्रोध को देखकर, विश्वामित्र जी ने कहा की सज्जन व्यक्ति बालक के गुण और दोष पर अधिक ध्यान नहीं देते हैं. आप इसके अपराध को क्षमा कर दीजिए. इसके उपरान्त परशुराम जी कहते हैं की मेरे हाथ में घातक फरसा है और मैं अत्यंत ही क्रोधी स्वभाव का भी हूँ. मैं अत्यंत ही निर्दयी और क्रोधी स्वभाव का हूँ. मेरे सामने घोर अपराधी और गुरु का अपमान करने वाला खड़ा है. यह बालक मुझे उत्त पर उत्तर देता जा रहा है. आपके शील स्वभाव के कारण मैं इसको बिना मारे छोड़ रहा हूँ. नहीं तो मैं मेरे फरसे से थोड़ी सी मेहनत करके इस बालक का वध करके मेरे गुरु ऋण से मुक्त हो जाता। 

इसे सुन कर विश्वामित्र सोचते हैं की परशुराम गधीपुत्र है जिसे चारों तरफ हरा ही हरा दिखाई दे रहा है. राम लक्ष्मण जी भी साधारण क्षत्रियों जैसा भी समझ रहा है. ये गन्ने की खांड नहीं है जिन्हें बड़ी ही सरलता से काट दिया जाए. जबकि ये लोहे की तलवार की भाँती से मजबूत हैं. इस पद में  ‘बाल बिलोकि बहुत’, ‘गुन गनहिं न’ तथा ‘केवल कौसिक’ में अनुप्रास अलंकार व्यंजना है और बार-बार’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का उपयोग हुआ है। इस पद्य में  व्यंग्य तथा रौद्र रस का उपयोग हुआ है.

तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा।बार बार मोहि लागि बोलवा॥{राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद} गोस्वामी तुलसीदास..

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