कबीर साखियाँ एवं सबद हिंदी भावार्थ कबीर के दोहे

कबीर साखियाँ एवं सबद (क्षितिज) हिंदी भावार्थ NCERT Solutions for Class 9 Hindi

मानसरोवर सुभग जल हंसा केलि कराहि
मुकताफल मुकता चुगै अब उड़ी अनत न जाही।
Maanasarovar Subhag Jal Hansa Keli Karaahi
Mukataaphal Mukata Chugai Ab Udee Anat Na Jaahee.
Or
Mansarovar Subhag Jal, Hansa Keli Karahi,
Mukta Fal Mukata Chuge Aub Udi Anat Na Jahi.
 
कबीर साखियाँ एवं सबद हिंदी भावार्थ NCERT Solutions for Class 9 Hindi (क्षितिज)
 

मानसरोवर सुभग जल हंसा केलि कराहि शब्दार्थ Mansarovar Subhag Jal Hindi Word Meaning.

मानसरोवर = शून्य शिखर में स्थित अमृत कुंड, /तिब्बत में स्थित एक बड़ी झील, सुभर = अच्छी तरह भरा, जल - अमृत, हंसा-आत्मा, जीवात्मा, एक पक्षी, मुक्ताहल - मुक्ति का फल, मुक्ता-मुक्ति। उड़ि - उड़कर, अनत - अन्यत्र/कहीं और, जाहिं – जाना ।
 
 

मानसरोवर सुभग जल हंसा केलि कराहि शब्दार्थ/भावार्थ हिंदी मीनिंग Mansarovar Subhag Jal Meaning in Hindi

मानसरोवर रूपी कुंड में अमृत रूपी जल भरा है। आत्मा रूपी हंस उसमे क्रीड़ा कर रहा है और जीवात्मा शून्य शिखर तक पहुँच चुकी है, मस्त होकर क्रीड़ा कर रही है। जीवात्मा स्वछंद रूप से मुक्ताफल चुनने में व्यस्त है और इस परम आनंद को छोड़कर विषय वासनाओं के सुख की प्राप्ति की उसे आशा नहीं है। अब वह कहीं और नहीं जाना चाहती है। इस  साखी में रूपक, श्लेष और अन्योक्ति अलंकारों का प्रयोग किया गया है।
कई स्थानों पर इसकी व्याख्या में कहा गया है की जैसे हंस मानसरोवर में मोती चुनने में व्यस्त /मस्त हो जाता है वैसे ही जीवात्मा इस संसार में ही रहना चाहती है, लेकिन इसका ऐसा भाव मुझे समझ में नहीं आता है। इस साखी में "मानसरोवर " से आशय भक्ति से पूरित मन से है।

प्रेमी ढ़ूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।
Premee Dhoondhat Main Phiraun, Premee Mile Na Koi.
Premee Kaun Premee Milai, Sab Vish Amrt Hoi.
साखी के शब्दार्थ प्रेमी - प्रेम करने वाला, जिसने तत्व की प्राप्ति कर ली है, ढूँढत - ढूँढना/खोजना, फिरौं – घूमना ।
कबीर की साखी का हिंदी अर्थ/भावार्थ :- कबीर साहेब इस साखी में बताया है की इस जगत में सच्चे प्रेम की कमी है. संसार में सच्चे भक्तों की कमी के बारे में बताया है। साहेब कहते हैं की मैं सच्चे प्रेमी को ढूंढ़ता फिरा लेकिन मुझे कोई सच्चा प्रेमी नहीं मिला. यदि सच्चा प्रेमी मिल जाए तो विष भी अमृत में बदल जाता है. कबीर साहेब ने सच्चे प्रेमी की पहचान बताई है की वह समस्त दुर्गुणों को भी अच्छाई में बदल देता है।

हस्ती चढ़िये ज्ञान कौ, सहज दुलीचा डारि।
स्वान रूप संसार है, भूँकन दे झख मारि।
Hastee Chadhiye Gyaan Kau, Sahaj Duleecha Daari.
Svaan Roop Sansaar Hai, Bhoonkan De Jhakh Maari.
शब्दार्थ - हस्ती - हाथी, चढ़िए - चढ़ना, सहज - सरलता से, दुलीचा - कालीन, डारि - डालकर, स्वान - कुत्ता, भूँकन - भौंकना, झख मारना - समय नष्ट करना। 
कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग/भावार्थ  : कबीर साहेब इस साखी में सन्देश देते हैं की यदि ग्यानी व्यक्ति यदि आपके पास हाथी पर चढ़कर भी आए तो उसके समक्ष कालीन बिछा देना चाहिए. यह संसार तो कुत्ते की तरह है जो बात बात पर भौंकता रहता है. ऐसे लोग थक हार कर चुप हो जाएंगे. 
 
कबीर साहेब की इस साखी में रुपक अलंकार का प्रयोग किया गया है तथा इसमें दोहा छंद का उपयोग किया गया है। कबीर साहेब की इस साखी में सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है। कबीर साहेब की इस साखी में शास्त्रीय ज्ञान का विरोध करने के साथ सहज ज्ञान को स्थापित किया गया है. 
 
कबीर साहेब की इस साखी में छंद में तत्सम और तद्भव शब्दों का सहजता से किया गया है । इस साखी में शांत रस का प्रयोग है। इस साखी में सहज समाधि का महत्त्व स्थापित किया है। ज्ञानी जन के द्वारा ज्ञान की प्राप्ति हाथी पर चढ़ने की भाँती है और सांसारिक आलोचनाओं को कुत्ते के भौंकने के समान हैं। भाव है की लोक निंदा की परवाह किये बगैर ज्ञान की प्राप्ति करनी चाहिए। 
हस्ती चढ़िये ज्ञान कौ और सहज दुलीचा डारि में रूपक अलंकार है।

पखा पाखी के कारने, सब जग रहा भुलान |
निरपख होयके हरी भजे, सोई संत सुजान ||
Pakha Paakhee Ke Kaarane, Sab Jag Raha Bhulaan |
Nirapakh Hoyake Haree Bhaje, Soee Sant Sujaan ||

साखी के शब्दार्थ : पखा पखी - पक्ष और विपक्ष/विभिन्न मत, कारनै - के कारण से, भुलान - भूला हुआ, निरपख - निष्पक्ष/सहज होकर, होइ - होकर, भजै - भक्ति करना, सोई - वही, सुजान - बुद्धिमान।
कबीर साखी हिंदी भावार्थ : कबीर साहेब इस साखी में कहते हैं की पक्ष विपक्ष के चक्कर में फंस कर सभी जग भ्रमित है. जो व्यक्ति पक्ष विपक्ष को छोडकर निष्पक्ष होकर हरी के नाम का सुमिरण करता है वही बुद्धिमान व्यक्ति होता है. यह जगत पक्ष विपक्ष में पड़कर भूल में है, भ्रमित है। 
 
भाव है की जगत के लोग विभिन्न मतों में उलझे रहते हैं, भक्ति मार्ग में भी वे तरह तरह के विचारों का मूल्यांकन करने में ही उलझे रहते हैं, जबकि ईश्वर की प्राप्त/भक्ति मार्ग के लिए सहजता आवश्यक है। लोग विभिन्न धर्मों के मतों के चक्कर में भ्रमित हैं, जबकि पूर्ण ब्रह्म एक ही है। सोइ संत सुजान में अनुप्रास अलंकार का उपयोग हुआ है। इस साखी में सच्चे संत से आशय है की जो हिन्दू मुस्लिम, जात पात, पक्ष विपक्ष से परे हो।

हिंदू मूये राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, दुइ मैं कदे न जाइ॥
Or
हिंदू मूया राम कही मुसलमान खुदाई
कहे कबीर सो जीवता जे दुहू के निकटि न जाई।
Or
हिंदू मूआ राम कहि, मुसलमान खुदाइ।
कहै कबीर सो जीवता, जो दुहुँ के निकटि न जाइ।
Hindoo Mooa Raam Kahi, Musalamaan Khudai.
Kahai Kabeer So Jeevata, Jo Duhun Ke Nikati Na Jai.
Or
Hindoo Mooye Raam Kahi, Muslim Khudai.
Kahai Kabeer So Jeevata, Dui Main Kade Na Jaee So
Or
Hindoo Mooya Raam Kehi Muslim Chhal
Kahe Kabeer So Jeevata Je Duhoon Ke Nikati Jaee.
 
हिंदू मूये राम कहि दोहे के शब्दार्थ : Word Meaning of Hindu Mua Ram Kahi in Hindi
हिंदू मूये राम कहि-हिन्दू राम राम पुकारते हैं / राम कहते हैं.
मुसलमान खुदाइ-मुसलमान खुदा का नाम पुकारते हैं, मुस्लिम लोगों के लिए खुदा ही सर्वश्रेष्ठ है.
कहै कबीर सो जीवता-जीवित वही है/तत्व ज्ञान उसी ने प्राप्त किया है.
दुइ मैं कदे न जाइ-दोनों के प्रतीकात्मक रूप में जो कभी नहीं जाता है.

Kabir Doha Hindi Meaning दोहे का हिंदी मीनिंग/हिंदी भावार्थ - हिन्दू कहता है की उसे राम प्यारा है और मुस्लिम कहता है की उसे खुदा प्यारा है. कबीर साहेब का कहना है की जो इन दोनों में नहीं पड़ता है वही जीवित है. कबीर साहेब के समय में दो धर्म प्रमुखता से प्रचलित थे. एक हिन्दू और दुसरा मुस्लिम. मुस्लिम धर्म शासकीय धर्म था क्योंकि यह मुस्लिम राजाओं के द्वारा लोगों पर बलपूर्वक थौपा गया था. ऐसे में हिन्दू धर्म भी बचाव की मुद्रा में था और इनके मानने वालों में अक्सर ही टकराव होता रहता था. दोनों ही धर्म के अनुयायी अपने धर्म को महान मानते थे. 
 
कबीर साहेब सदा से ही एक ऐसी शक्ति के पक्षधर थे जो पूर्ण परम ब्रह्म शक्ति है और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की नियामक और रचना करने वाली है. इसका कोई आकार नहीं है वह सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त होकर भी ब्रह्माण्ड का नहीं है. ऐसे में साहेब वाणी देते हैं की यह संघर्ष व्यर्थ है. जिस विषय को लेकर यह संघर्ष हो रहा है उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है. भले ही कोई राम को महान और सर्वोच्च माने या कोई खुदा को, कबीर साहेब के मुताबिक़ ना राम नाही खुदा महान है बल्कि वह तो पूर्ण ब्रह्म है जिसका कोई रूप और आकार नहीं है. सही मायनों में जीवित वही है जो पूर्ण परम ब्रह्म का उपासक है, उसी का सुमिरन करता है. जो इन दोनों के निकट नहीं है वही जीवित है /सचेत है. कबीर के अनुसार नियामक शक्ति सगुण और निर्गुण से परे है. वे राम और रहीम के झगड़े से दूर हैं और ऐसे धर्म के पक्षधर हैं जो मानवता के ऊपर आधारित है.

काबा फिरि कासी भया रामहि भया रहीम।
मोट चून मैदा भया रहा कबीरा जीम।।
Kaaba Phiri Kaasee Bhaya Raamahi Bhaya Raheem.
Mot Choon Maida Bhaya Raha Kabeera Jeem.
 
काबा फिरि कासी भया शब्दार्थ :  
काबा-मुस्लिम धर्म के अनुयाइयों का एक पवित्र स्थल, 
फिरी-बदल जाना/एक ही हो जाना, 
कासी-काशी, हिन्दुओं का एक पवित्र स्थल, भया-हो
जाना, रामहि ही भया रहीम-राम रहीम में बदल गया है, राम और रहीम दोनों एक ही हैं, 
मोट चून-मोटा आटा, मैदा-बारीक गेंहू का आटा, 
जीम-भोजन ग्रहन करना, भोजन करना।

काबा फिरि कासी भया कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग : जब व्यक्ति हिन्दू और मुस्लिम के भेद से ऊपर उठ जाता है तो अब तक जिसे वह मोटा आटा समझता था वह मैदा के समान हो गया है। जिसे भोजन के रूप में ग्रहण किया जा सकता है। वस्तुतः आटा वही है बस भेद है तो उसे समझने का, और ऐसे ही धर्म के आधार पर व्यक्तियों का भेद हो जाता है और वे अपने इष्ट को सर्वोच्च मानते हैं लेकिन सभी का मालिक एक ही होता है । धार्मिक मतभेद को मोटे चून के समान बताया गया है जो खाने में अखाद्य होता है, लेकिन जब सतगुरु के माध्यम से गुरु ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है तब फिर यह भेद भी समाप्त होने लगता है और समभाव आने लगता है, जीव को समझ में आने लगता है की यह बंटवारा हमारे द्वारा ही पैदा किया गया है जबकि सभी का मालिक एक ही है । 
 
अब उसे राम कहो या रहीम । काबा काशी हो जाने का भाव यही है की धर्म सभी के एक ही हैं और मालिक भी एक ही । कबीर दास जी का जन्म भी एक मुस्लिम परिवार में हुआ था और उनके लिए काबा का महत्त्व रहा की वह बहुत ही पवित्र स्थल है लेकिन आत्मज्ञान प्राप्ति के उपरान्त काबा काशी में बदल गया है । काबा का काशी में बदल जाना वैसा ही हुआ जैसे मोटा अनाज (गेंहू ) को पीसने के बाद वह मैदा में तब्दील हो जाता है । अब जब समझ में आ गया है तो बैठकर भरपेट जीमने (भोजन ग्रहण करने ) में ही बुद्धिमत्ता है इसलिए क्यों ना भोजन को जी भर के कर लिया जाय, भाव है की राम रस का सुमिरण जी भर के कर लेना चाहिए । राम और रहीम का भेद समाप्त हो जाने पर जीवन बहुत ही सरल और सुगम हो जाता है और समस्त दुविधाएं दूर होने लगती हैं ।

ऊँचे कुल में जनमिया, करनी ऊँच न होय ।
सबरं कलस सुरा भरा, साधू निन्दा सोय ।।
या
ऊंचे कुल का जनमिया, करणी ऊंच न होइ।
सुबरण कलश सुरा भरा, साधु निंदा सोई।।
Oonche Kul Mein Janamiya, Karanee Oonch Na Hoy .
Sabaran Kalas Suraabhara, Saadhoo Ninda Soy ..
Or
Oonche Kul Ka Janamiya, Karanee Oonch Na Hoi.
Subaran Kalash Sura Bhara, Saadhu Ninda Soee
 
"ऊँचे कुल में जनमिया" शब्दार्थ Word Meaning of Unche Kul Me Janamiya
ऊँचे कुल में जनमिया-ऊँचे कुल में जनम लेने से.
करनी ऊँच न होय - कर्म ऊँचे नहीं हो जाते हैं।
सबरं कलस सुरा भरा-स्वर्ण के कलश में यदि शराब भरी है।
साधू निन्दा सोय-वह निंदा का पात्र है।
Hindi Meaning of Kabir Doha/दोहे का हिंदी मीनिंग : कबीर साहेब ने व्यतिगत/गुणों के आधार पर श्रेष्ठता को स्वीकार किया है लेकिन जन्म आधार पर / जाति आधार पर किसी की श्रेष्ठता को नकारते हुए कहा की मात्र ऊँचे कुल में जन्म ले से ही कोई विद्वान् और श्रेष्ठ नहीं बन जाता है, इसके लिए उसमे गुण भी होने चाहिए। यदि गुण हैं तो भले ही वह किसी भी जाती और कुल का क्यों ना हो वह श्रेष्ठ ही है। यदि सोने के बर्तन में शराब भरी हुयी है, तो क्या वह श्रेष्ठ बन जायेगी ? नहीं वह निंदनीय ही रहेगी/ साधू और सज्जन व्यक्ति उसकी निंदा ही करेंगे।
कठिन शब्दों के अर्थ
सुभर - अच्छी तरह भरा हुआ, परिपूर्ण।
केलि - क्रीड़ा, खेल।
मुकताफल - मोती।
दुलीचा - बैठने का आसन।
स्वान - कुत्ता।
झक मारना - समय को बर्बाद करना।
पखापखी - पक्ष-विपक्ष।
कारनै - कारण।
सुजान - चतुर, बुद्धिमान ।
निकटि -निकट, पास में ।
काबा - मुसलमानों का पवित्र तीर्थ स्थल।
मोट चुन - मोटा आटा।
जनमिया - जन्म लेकर।
सुरा - शराब, मदिरा । 

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