श्री कृष्ण को बाँके बिहारी क्यों कहते हैं Krishn Ko Banke Bihari Kyo Kahte Hain

श्री कृष्ण को बाँके बिहारी क्यों कहते हैं / Krishna Ko Banke Bihari Kyo Kaha Jaata Hai, Shri Krishna Ko Banke Bihari Kyo Kahte Hain.

 
श्री कृष्ण को बाँके बिहारी क्यों कहते हैं

श्री कृष्ण का शरीर तीन स्थानों (कमर, होंठ और पैर ) से टेढ़ा था इसी कारण श्री कृष्ण को बाँके बिहारी कहा जाता है। स्वामी हरिदास जी अनुरोध पर ही श्री कृष्णा ने विग्रह रूप में अवतार लिया था। स्वामी हरिदास ने ही सर्वप्रथम राधा कृष्ण के विग्रह रूप को बाँके बिहारी का नाम दिया था। श्री कृष्ण जी के इसी टेढ़ेपन के कारण इनको त्रिभंगी भी कहा जाता है। बांके बिहारी जी मूर्ति काले रंग में सुशोभित है। श्री बांके बिहारी जी की प्रतिमा के सबंध में उल्लेखनीय है की प्रतिमा में राधा और कृष्णा दोनों समाए हुए हैं।
 
बांके बिहारी का शाब्दिक अर्थ :  बांके बिहारी का शाब्दिक अर्थ है "बांके" से भाव है टेढ़ा (Bent at three places) और बिहारी का अर्थ है रमण (Supreme Enjoyer ) करने वाला। श्री कृष्ण जी का शरीर तीन स्थानों से टेढ़ा है इसलिए कृष्ण को बांके बिहारी कहा जाता है।
 

श्री कृष्ण को बाँके बिहारी क्यों कहते हैं/ कहा जाता है? Shri Krishn Ko Banke Bihari Kyo Kahate Hain Hindi (Why Krishna Called Banke Bihari in Hindi )

श्री बांके बिहारी जी को वृन्दावन में प्रकट करने वाले स्वामी हरिदास जी : स्वामी हरिदास जी अनन्य श्री कृष्ण के भक्त थे। इसके अतिरिक्त स्वामी हरिदास जी महान कृष्ण भक्त कवि, शास्त्रीय संगीतकार और श्री कृष्ण के उपासक थे जो 'सखी संप्रदाय' के प्रवर्तक भी थे, जिसे 'हरिदासी संप्रदाय' भी कहा जाता है। स्वामी हरिदास जी का जन्म विक्रम सम्वत् 1535 में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी (श्रीराधाष्टमी) को ब्रह्म मुहूर्त में हुआ था। हरिदास जी बचपन से ही ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने और भगवान की लीलाओं में ध्यान लगाया करते थे। 

स्वामी हरिदास जी ने २५ वर्ष की अवस्था में घर छोड़ कर वृन्दावन में अपनी भक्ति के लिए निधिवन को चुना। निधिवन में स्वामी जी कुञ्ज बिहारी के ध्यान में मग्न रहते थे। स्वामी जी ने सर्वप्रथम श्री कृष्ण और राधा जी की युगल छवि श्री बांके बिहारी जी महाराज के रूप में प्रतिष्ठित किया। आज यह भव्य मंदिर "श्री बांके बिहारी जी मंदिर" के नाम से प्रसिद्द है। श्री बांके बिहारी जी के मंदिर स्वामी हरिदास जी ने १८६४ में करवाया था। वृन्दावन धाम की पवित्र नगरी में स्थापित है "श्री बांके बिहारी (Shri Banke Bihari)" जी मंदिर जिसकी शरण में आने से समस्त पापों का नाश हो जाता है।
 
ऐसे अवतरित हुए श्री बांके बिहारी जी : स्वामी हरिदास जी एक बार श्री कृष्ण जी के निर्बाध भजन कर रहे थे। हरिदास जी की भक्ति से प्रसन्न होकर श्री कृष्णा और राधा जी दोनों साथ में प्रकट हुए और कहने लगे की वे हरिदास जी के ही साथ रहना चाहते हैं। इस पर हरिदास जी ने भोलेपन से कहा की मैं तो संत हूँ मैं नित्य आपको तो लंगोटा पहना दूंगा लेकिन श्री राधा जी के लिए कहाँ से नित्य आभूषण लाऊँगा। इस पर श्री कृष्ण जी राधा जी से एकाकार होकर विग्रह रूप में प्रकट हुए। स्वामी हरिदास जी ने श्री कृष्ण जी के इसी विग्रह रूप को बाँके बिहारी जी का नाम दिया। 

 

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