श्री कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहते हैं Krishna Ko Ranchhod Kyo Kahte Hain

श्री कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहते हैं Why is Shri Krishna called Ranchhod, Krishna Ko Ranchhod Kyo Kaha Jata Hai Hindi

श्री कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहते हैं

श्री कृष्ण द्वारा जरासंघ/कालयवन के साथ हुए युद्ध में, युद्ध को छोड़कर कालयवन को गुफा की तरफ ले जाने के कारण ही श्री कृष्ण को रणछोड़ कहा जाता है।
श्री कृष्ण जी को हम भक्त जन कई नामों से पुकारते हैं। ये नाम श्री कृष्ण जी के गुणों और कार्यों के साथ उनकी लीलाओं पर आधारित हैं। श्री कृष्ण जी भगवान विष्णु जी के १२ अवतार के रूप में पूजे जाते हैं। भगवान श्री कृष्ण जी को गोविन्द, मुरारी, नन्द किशोर, नन्द लाला, बांके बिहारी, मुरलीधर आदि नामों से जाना जाता है जिनका अपना एक महत्त्व और कारण है।

भगवान श्री कृष्ण को उपरोक्त नामों के साथ ही "रणछोड़" (Ranchhod) के नाम से भी जाना जाता है। इस नाम के आधार से पहले आइये जान लेते हाँ की "रणछोड़" शब्द का अर्थ। रणछोड़ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है "रण" और "छोड़". इस शब्द का हिंदी अर्थ यह हुआ की जो युद्ध को छोड़ भाग गया हो। भगवान् श्री कृष्ण जी के द्वारा युद्ध छोड़कर जाने के कारण श्री कृष्ण जी को "रणछोड़ " और "रणछोड़ दास" भी कहा जाता है।
 
कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहते हैं (Why is Shri Krishna called Ranchhod Krishna Ko Ranchhod Kyo kahte Hain) प्रथम मत : शास्त्रों से ज्ञात होता है की भगवान श्री कृष्ण जी ने महाबली मगधराज जरासंघ के साथ कई युद्ध हुए जिनमे 17 बार श्री कृष्ण विजयी रहे। जब श्री कृष्ण जी का १८ बार जरासंघ से युद्ध हुआ तो जरासंघ में सैनिकों की अग्रिम पंक्ति में ब्राह्मणों को खड़ा कर दिया क्योंकि उसे पता था की श्री कृष्ण जी ब्राह्मणों पर शस्त्र नहीं उठाएंगे। श्री कृष्ण ने पाया की अग्रिम पंक्ति में तो ब्राह्मण खड़े हैं तो उन्होंने युद्ध नहीं करके, युद्ध से पलायन किया तभी से श्री कृष्ण जी का नाम रणछोड़ हो गया।

कृष्ण को रणछोड़ क्यों कहते हैं (Why is Shri Krishna called Ranchhod Krishna Ko Ranchhod Kyo kahte Hain) द्वितीय मत :इसके साथ ही एक अन्य मत के अनुसार, कालयवन और जरासंघ श्री कृष्ण से युद्ध करने के लिए आए। श्री कृष्ण ने कालयवन को युद्ध में बगैर किसी शस्त्र और सेना के लड़ने को कहा। कालयवन ने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया। श्री कृष्ण जी ने कालयवन को युद्ध के दौरान कहा की वे अपनी सेना को छोड़कर ऐसे स्थान पर चले जहां दोनों की सहायता के लिए नहीं आ सके। 

श्री कृष्ण ने कालयवन से कहा की मैं तुम्हारे साथ ऐसे स्थान पर युद्ध करूँगा जहाँ दोनों को कोई देख नहीं पाए। भगवान श्री कृष्ण कालयवन को अपने पीछे लेकर एकांत की तरफ बढ़ने लगे। श्री अपनी लीला दिखा रहे थे वहीँ कालयवन उनके पीछे पीछे चला आ रहा था।एकांत स्थान पर पहुंचने पर श्री कालयवन ने कृष्ण जी से कहा की अब तो एकांत भी आ गया है, चलो युद्ध करे। इस पर श्री कृष्ण जी ने कहा की यदि एकांत आ गया है तो अब उनको भागना चाहिए और श्री कृष्ण भागने लगे। कालयवन भी श्री कृष्ण को पकड़ने के उद्देश्य से उनके पीछे भागने लगा।

कालयवन श्री कृष्ण जी के पीछे से आवाज लगाता हुआ जा रहा था की आप परम यशश्वी हैं, मेरे साथ इस प्रकार से युद्द को छोड़कर जाना उचित नहीं है। भागते भागते श्री कृष्ण कालयवन को एक गुफा में प्रवेश करवा देते हैं और स्वंय को छिपा लेते हैं। जब कालयवन ने गुफा में प्रवेश किया तो उसे एक व्यक्ति सोते हुए दिखाई दिया। उसने सोचा की यही श्री कृष्ण हैं। लेकिन वे तो राजा मुचकुन्द थे। कालयवन ने पैरों की ठोकर मार कर सोते हुए मुचकुन्द को श्री कृष्ण समझ कर जगाया। जब राजा मुचकुन्द निंद्रा से जागे और उन्होंने देखा की कालयवन ने उनको ठोकर मार कर जगाया है तो क्रोध के साथ कालयवन को देखने पर वह वहीँ भष्म हो गया। मुचकुन्द को यह वर प्राप्त था की जो भी उसे निंद्रा से जगायेगा वह भष्म हो जाएगा। इस प्रकार से श्री कृष्ण जी की योजना कार्य कर गई। इसके उपरान्त उल्लेख मिलता है की श्री कृष्ण जी ने मुचकुन्द को अपना वास्तविक स्वरुप दिखाया। मुचकुन्द ने श्री कृष्ण जी से उनकी अनन्य भक्ति का वर माँगा। यही कारण है की इस घटना के उपरान्त श्री कृष्ण रणछोड़ कहलाए।
 
कालयवन कौन था (Kaalyavan Koun Tha) : कालयवन यद्यपि ब्राह्मण था लेकिन उसके कर्म आसुरी थे। पुराणों में कालयवन को म्लेच्छों का प्रमुख बताया गया है। कालयवन ऋषि शेशिरायण का पुत्र था। कालयवन को जन्म से ही भगवान शिव का वर प्राप्त था की उसे कोई भी सूर्यवंशी और चंद्रवंशी शस्त्रों का प्रयोग करके हरा नहीं सकता था।

जरासंघ के द्वारा कालयवन से दोस्ती की गई क्योंकि वे श्री कृष्ण से युद्ध करना चाहता था। जरासंघ और कालयवन की सेना ने मथुरा को चरों तरफ से घेर लिया। कालयवन ने श्री कृष्ण जी को युद्ध के लिए सन्देश भेजा जिस पर श्री कृष्ण जी ने प्रतिउत्तर में सन्देश भेजा की वे केवल कालयवन से ही युद्ध करना चाहते हैं, सेना से युद्ध करने का कोई लाभ नहीं है। श्री कृष्ण जी को पता था की कालयवन को भगवान् शिव के द्वारा अजेय होने का वर प्राप्त था साथ ही श्री कृष्ण जानते थे की कालयवन का अंत मुचकुन्द के द्वारा होना है। 
 
(मुचकुन्द-इक्ष्वाकु नरेश मांधाता के पुत्र थे। पौराणिक कथाओं से ज्ञात होता है की उन्होंने लम्बे समय तक दैत्यों देवों की रक्षा की थी। इसके उपरान्त इन्हे निंद्रा का वरदान (यह वरदान इंद्र से इनको प्राप्त था ) प्राप्त हुआ और साथ ही निंद्रा से यदि कोई इनको जगाता है तो वह भस्म हो जाएगा, ऐसा वरदान इन्हे प्राप्त था ) जब श्री कृष्ण युद्ध से कालयवन को गुफा में ले गए तो वहाँ पर मुचकुन्द ही निंद्रा में थे। कालयवन के द्वारा ठोकर मार कर मुचकुन्द को जगाने पर कालयवन जलकर भष्म हो गया था।  

कालयवन वध कृष्ण की माया से मरा कालयवन | Shri krishna

भगवान श्रीकृष्ण को रणछोड़ इसलिए कहा जाता है क्योंकि उन्होंने एक बार रणभूमि से भागने का फैसला किया था। यह घटना महाभारत के युद्ध से पहले घटी थी, जब श्रीकृष्ण जरासंध के साथ युद्ध कर रहे थे। जरासंध ने एक शक्तिशाली योद्धा, कालयवन को श्रीकृष्ण से लड़ने के लिए भेजा। कालयवन के पास एक ऐसा वरदान था कि उसे न तो सूर्यवंशी और न ही चंद्रवंशी कोई पराजित कर सकता था।

श्रीकृष्ण जानते थे कि कालयवन को पराजित करना उनके लिए असंभव होगा। इसलिए, उन्होंने रणभूमि से भागने का फैसला किया। उन्होंने एक गुफा में छिपकर कालयवन को चकमा दे दिया। कालयवन ने श्रीकृष्ण को ढूंढने की कोशिश की, लेकिन वह उन्हें नहीं मिला।

जरासंध कालयवन की हार से बहुत क्रोधित हुआ। उसने मथुरा शहर को नष्ट कर दिया और श्रीकृष्ण को एक कायर कहा। उसने उन्हें रणछोड़ नाम दिया, जिसका अर्थ है "रणभूमि से भागने वाला व्यक्ति"।

हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण ने रणभूमि से भागने का फैसला नहीं किया था। वे कहते हैं कि वह कालयवन को पराजित करने के लिए एक योजना बना रहे थे। उन्होंने गुफा में छिपकर कालयवन को चकमा दिया ताकि वह अपनी योजना को अंजाम दे सकें।

इस घटना के बावजूद, श्रीकृष्ण को एक महान योद्धा और एक बुद्धिमान नेता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने महाभारत के युद्ध में पांडवों की मदद की और उन्हें जीत दिलाई।

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3 टिप्पणियां

  1. बहुत ही अच्छी जानकारी 🙏
  2. Very good knowledge of mahabharat
  3. Nice knowledge of mahabharat