पाँणी ही तैं पातला धूवाँ ही तै झींण मीनिंग
पाँणी ही तैं पातला, धूवाँ ही तै झींण।
पवनाँ बेगि उतावला, सो दोसत कबीरै कीन्ह॥
Paani Hi Te Patala, Dhua Hi Te Jheen,
Pavana Begi Utavala, So Dosat Kabire Keenh.
पाँणी ही तैं : पानी से भी, पानी की तुलना में.
पातला : पतला है, महीन है.
धूवाँ ही तै : धुंआ से भी,
झींण : झीना है, विरल है.
पवनाँ : पवन, हवा.
बेगि : तीव्र, जल्दी, वेगमान.
उतावला : जल्दी करना, शीघ्र.
सो दोसत : ऐसे दोस्त, मित्र को.
कबीरै कीन्ह : कबीर चिन्हित करता है.
कबीर साहेब ने भक्ति मार्ग में सबसे बड़ा बाधक है, ऐसा मन जो पानी से भी पतला है और धुआ से भी महीन है, विरल है और जो पवन की गति से भी अधिक तीव्र है, तेज है, उस मन को कबीर साहेब ने मानसिक साधना के द्वारा अपना दोस्त बना लिया है, अपने नियंत्रण में ले लिया है. ऐसा सूक्ष्म रूपी मन जो पंचतत्व से भी प्रथक है उसे कबीर साहेब ने अपने नियंत्रण में ले लिया है. मन के विषय में कबीर साहेब ने अनेकों स्थान पर सन्देश दिया है की मन को समझना आवश्यक है, मन ही व्यक्ति को संकट में डालता है. मन ही चंचल होता है जो माया की तरफ आकृष्ट होता है. अतः मन की क्रियाओं का शोधन करना आवश्यक होता है. मन को नियंत्रित करने के उपरान्त साधक अवश्य ही अपने साधना पथ पर प्रखरता से आगे बढ़ता है. प्रस्तुत साखी में व्यक्तिरेक अलंकार की सफल व्यंजना हुई है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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