अलिफ़ अल्लाह चम्बे दी बूटी मीनिंग Alif Allah Chambe Di Buti Meaning
चम्बे दी बूटी /Chambe Di Buti Song (Punjabi Folk Song : الف اللہ چمبے دی بوٹی) यह सुप्रसिद्ध गीत /कलाम Sain Zahoor साईं ज़हूर की आवाज/स्वर में है। यह सांग मूल रूप से १७ वी शताब्दी के कवि हज़रत सुलतान बाहू (Hazrat Sultan Bahu/हज़रत सुलतान बाहू) की रचना है। सूफी परम्परा में दरवेश इसे प्रधानता से गाते हैं।
लेखक, हज़रत सुलतान बाहू का जन्म झंग (वर्तमान पाकिस्तान) जिले के गाँव अवाण में हुआ था और इनका शुरू से ही रुझान सूफी संत हज़रत हबीब-उल्ला से ये प्रेरित थे। चम्बे दी बूटी का हिंदी अर्थ निचे दिया गया है, आशा है की आपको अवश्य ही पसंद आएगा। यदि आप इस कलाम के विषय में अधिक जानकारी रखते हैं, तो कृपया त्रुटि सुधार करने के लिए कमेंट के माध्यम से सूचित करें।
हू.........हू............, हू हू,.....हू............। अलिफ़-अल्ला चम्बे दी बूटी, मुरशद मन विच लाई हू । नफी असबात दा पानी मिल्या, हर रगे हर जाई हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू............।
चम्बे दी बूटी Meaning
हिंदी मीनिंग/Hindi Meaning : मेरे मुर्शिद (गुरु) ने मेरे मन/चित्त (हृदय) में ख़ुदा की भक्ति का एक बीज बोया है। यह चम्बे (चंपा/चमेली) के खुशबूदार बूटी (छोटा पादप /अक्सर औषधीय रूप में महत्त्व का पादप बूटी कहलाता है) है। मेरे मुर्शिद ने इसे मेरे मन के अंदर लगाया है। यह बूटी धर्म के प्रति निष्ठां और और अपने अस्तित्व की स्वीकृति के साथ फला फूला है। मेरे द्वार नकारात्म्क और ईश्वर के प्रति समर्पण दोनों के पानी के द्वारा ही यह बूटी पोषित है। मेरा खुदा मेरी हर धड़कती हुई नब्ज (रग/रगे ) में मौजूद है। ईश्वर मेरे तन मन हर जगह व्याप्त है।
अल्लाह हु : या अल्लाह/या खुदा। अलिफ़ : उर्दू वर्णमाला का पहला अक्षर। अल्लाह : ईश्वर, परवरदिगार, ख़ुदा। चम्बा/चम्बे : एक तरह का फूल/खुशबूदार फूल Plumeria (Frangipani Flower) बूंटी : ऐसा छोटा पादप जो ओषधि (दवा ) होती है। flower or sprig of plant. मुर्शिद : गुरु, नफी-बदी, असबात-नेकी, हर रगे हर जाई : हर तरफ।
अन्दर बूटी मुश्क मचाया, जां फुल्लन ते आई हू, जीवे मुरशद कामिल बाहू, जैं इह बूटी लाई हू । अल्लाह हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू............, अल्लाह हू............।
हिंदी मीनिंग/Hindi Meaning : गुरु के द्वारा मेरे मन में इस दिव्य बूटी को लगाया गया है (भक्ति का बीज बोया गया है ) अब यह अपने स्वभाव के अनुसार मेरे अंतःकर्ण (हृदय) में खुशबु का प्रसार कर रहा है। अब यह बूटी पल्लवित हो गई है और इसकी इसकी खुशबु चारों तरफ फ़ैल गई है। इसकी कलियाँ खिल गई हैं और हृदय में मुश्क (कस्तूरी ) सुगंध फैला रही है जैसे कस्तूरी की गंध पुरे जंगल में व्याप्त होती रहती है। मेरा गुरु/मुर्शिद खूब जिए (उसकी लम्बी आयु हो ) जिसने यह बूंटी मेरे हृदय में लगाईं है। बाहू
( Hazrat Sultan Bahu/हज़रत सुलतान बाहू) जो इस कलाम के लेखक हैं कहते हैं
की मेरे पूर्णता को प्राप्त गुरु जुग जुग जिए, ईश्वर उनको लम्बी आयु दे।
अन्दर : रूह के अंदर, हृदय में। मुश्क : कस्तूरी, मृगनाभि, मिश्क कस्तूरी, मृगमद, मृगनाभि, कस्तूरी, कस्तूरिका, मृग कस्तूरी, यहाँ गंध ( ख़ुशबू ) से आशय है। मचाया : शोर मचाया। जाँ : जान। कामिल : पूर्ण, पूरा। मुरशद-पीर,गुरू। जैं-जिस ने। लाई हू : लगाईं है।
बग़दाद शहर दी की निशानी, उच्चियाँ लम्मियाँ चीड़ां हू, तन मन मेरा पुरज़े पुरज़े, ज्यों दरज़ी दियां लीरां हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू............, अल्लाह हू............।
हिंदी मीनिंग/Hindi Meaning : बग़दाद शहर की यादों के सबंध में कहा गया है की बग़दाद शहर की क्या निशानी है। बग़दाद शहर को यहाँ अत्यंत ही दिव्य माना गया है। बग़दाद शहर में ऊँचे ऊँचे और लम्बे चीड़ के वृक्ष हैं, पेड़ हैं। बग़दाद की यादों में मेरा तन और मन (सर्वश्व) ही टुकटे टुकड़े हो गया है, बिखर गया है। बग़दाद शहर की यादों में मेरा तन मन बिखर गया है। मेरा तन मन ऐसे टुकड़े टुकड़े हो गया है जैसे दर्जी की कतरन (लीर-कपडे की कतरन) (कपडे के बहुत सारे छोटे टुकड़े जो किसी पोषाक को बनाने के बाद में बच जाते हैं ) हो।
दी : की (बग़दाद शहर की ) की : क्या (What) निशानी : निशानी, पहचान। उच्चियाँ लम्मियाँ : ऊँची और लम्बी चीड़ (चीड़ का पेड़) चीड़ां हू : चीड़ के दरख़्त। तन मन मेरा : मेरा मन और शरीर। पुरज़े पुरज़े : टुकड़े टुकड़े/छिन्न भिन्न। ज्यों : जैसे। दरज़ी : दर्जी, टेलर। दियां : की (दर्जी की ) लीरां: कपडे की कतरन।
लीरां दी गल कफनी पा के, रलसां संग फ़कीरां हू । शहर बग़दाद दे टुकड़े मंगसां बाहू, करसां मीरां मीरां हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू............, अल्लाह हू............।
हिंदी मीनिंग/Hindi Meaning : कवि अपनी कल्पना के आधार पर कहता है की मैं उन लीरों (कपडे की कतरन) का एक लबादा/कफनी बना कर पहनूँगा और फ़कीर (साधु / संत) के साथ शामिल हो जाऊँगा। मैं फकीरों के जैसा ही हो जाऊँगा। मैं बगदाद शहर में फ़कीर बन कर भिक्षा मांगूंगा, बग़दाद के टुकड़ों पर ही मैं जीवित रहूँगा (भीख में मिले रोटी के टुकड़ों पर) । बाहु (लेखक) कहते हैं की मैं फ़कीर बन कर मेरे गुरु के नाम का जाप (मीरा, मीरा ) करूँगा।
लीरां : मेरे तन मन जो की दर्जी के कपड़ों की भाँती कतरन/लम्बी लीर। दी : की। गल : गले में। कफनी : लबादा। कफ़न के कपड़े में से एक कपड़ा जो औरत और आदमी के लिए एक ही होता है तथा कुर्ते की भाँती शव को पहनाते हैं।
Punjabi Folk Songs Lyrics in Hindi
पा के : पहन के। रलसां : शामिल हो जाऊँगा, मिल जाऊँगा। संग फ़कीरां : फकीरों के साथ में। शहर बग़दाद दे : बग़दाद शहर के। दे : के। टुकड़े : टुकड़े-रोटी के टुकड़े/भीख, मंगसां : मांगूंगा। बाहू करसां मीरां मीरां हू : बाहु (हज़रत सुल्तान बाहू/लेखक) कहते हैं की मीरा मीरा (मीर -गुरु/मुर्शिद) करूँगा। मीरां मीरां : मेरे स्वामी, मेरे मीर। मीर : प्रिय गुरु।
पढ़ पढ़ इल्म ते हाफ़िज होइओ, ना गिया हिजाबों परदा हू, पढ़ पढ़ आलिम फाज़िल होइओं, अजे भी तालिब ज़र दा हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू............, अल्लाह हू............।
हिंदी मीनिंग/Hindi Meaning : कवि आत्मिक विश्लेषण करने के लिए कहता है की किताबी ज्ञान से कुछ भी हासिल नहीं होने वाला है। ज्ञान को पढ़ पढ़ कर उसे कंठस्थ याद कर लिया है तो क्या हुआ ? तुमने कुरान की पवित्र आयतों को अपने अंदर स्टोर कर लिया है, संग्रह कर लिया है लेकिन जो रहस्य है उससे तो पर्दा नहीं उठा है। तुमने भले ही किताबी ज्ञान प्राप्त कर लिया हो लेकिन रहस्य से तुम अनजान हो।
तुमने अभी रहस्य/तत्व ज्ञान को प्राप्त नहीं किया है। तुमने स्वंय के अंदर की खोज नहीं की है। पढ़ पढ़ कर तुम ज्ञानी तो बन गए हो लेकिन तुमने अपने अंदर का "अहम" (मैं होने का भाव, घमण्ड ) समाप्त नहीं किया है। अभी भी तुम सांसारिक धन दौलत/विषय विकारों के तलबगार हो, तलब रखते हो।
ज़र/जर : वैभव, धन दौलत, धन-दौलत । इल्म : ज्ञान, विद्या, विज्ञान, जानकारी , शिक्षा, तालीम हाफ़िज : जिसे क़ुरआन कंठस्थ हो, किताबी ज्ञान रखने वाला। होइओ : हो गए हो। आलिम : बहुत शिक्षित, विद्वान, ज्ञाता, पंडित, कोविद, ज्ञाता, जानने वाला। फाज़िल : श्रेष्ठ, श्रेष्ठतर, वरिष्ठ, विद्वान, पंडित अजे भी : अभी भी। तालिब : इच्छुक, ख्वाहिशमंद, याचक, माँगनेवाला, अभिलाषी, आर्जुमंद, लालायित, लिप्सु, मुश्ताक़
कई हज़ार किताबां पढियां, अजे नफ़्स ना मरदा हू, बाज फ़कीरा बाहु किसे ना मारिया, ज़ालिम चोर अंदर दा हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू, अल्लाह हू............, अल्लाह हू............।
तुमने हजारों किताबों को पढ़ लिया है, लेकिन तुमसे अभी भी अहम् नष्ट नहीं हुआ है। तुम अहम को समाप्त नहीं कर पाए हो। केवल फ़कीर ही अपने अहम् को नष्ट कर सकने में समर्थ हैं। यह अहम ही है जो हृदय के अंदर बैठा चोर है और जो अंदर ही अंदर हमें क्षति पहुँचा रहा है।
हाफिज़: ज्ञान को ज़बानी याद करन वाला। तालिब: चाहवान नफ़्स : घमंड, अहम् स्वंय के होने का अभिमान।
ना : नहीं। मरदा : नहीं। बाज : के सिवाय। बाहु : लेखक/हज़रत सुलतान बाहू फ़कीरा : सच्चा खुदा का भक्त/संत/साधू। ज़ालिम चोर : कष्टदाई अंदर बैठा चोर (अहम ) मारिया : समाप्त करना, मिटा देना। अंदर दा : जो अंदर है, अंदर का (अहम )