कलि का स्वामी लोभिया मनसा धरी बधाइ मीनिंग कबीर के दोहे

कलि का स्वामी लोभिया मनसा धरी बधाइ मीनिंग Kali Ka Swami Lobhiya Hindi Meaning, Kabir Ke Dohe Hindi Me (Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit/Hindi Bhavarth)

कलि का स्वामी लोभिया, मनसा धरी बधाइ।
दैहिं पईसा ब्याज कौं, लेखाँ करताँ जाइ॥

कलि का स्वामी लोभिया : कलियुग का स्वामी लोभी होता है.
मनसा धरी बधाइ :मन में माया को बढाने की युक्ति लगाता रहता है.
दैहिं पईसा ब्याज कौं : रूपये पैसे को ब्याज पर देते हैं जिससे वह बढ़ जाए.
लेखाँ करताँ जाइ : वह उसका लेखा जोखा करता रहता है.
कलि का : कलियुग का, कलिकाल का.
स्वामी : मालिक, साधू संत आदि.
लोभिया : लोभी होता है. मनसा धरी बधाइ।
कबीर साहेब ने इस दोहे में वाणी दी है की कलियुग/कलिकाल के साधू, संत और महात्मा भी माया के प्रभाव से अछूते नहीं रहे हैं. वे भी मायाजनित व्यवहार करने में व्यस्त रहते हैं. वे अपने मन में पैसे को बढाने की जुगत में लगे रहते हैं. वे अपने मन से लोभी और लालची बन चुके हैं. कलियुग के लोभी संतजन रूपये पैसे ब्याज पर देते हैं और वे अपना जीवन इन्ही के लेखा जोखा करने में, हिसाब किताब में ही बर्बाद कर देते हैं.
अतः साहेब का मूल भाव है की यदि भक्ति मार्ग पर आगे बढ़ना है तो अवश्य ही माया और उसके प्रभाव को समझना होगा. मायाजनित व्यवहार से हमें दूर रहना होगा. माया भक्ति से विमुख करती है. माया को हृदय से छोड़ कर हरी भक्ति में अपना ध्यान लगाना ही सच्ची भक्ति है.
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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