कलि का स्वामी लोभिया पीतलि धरी खटाई मीनिंग Kali Ka Swami Lobhiya Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning, Kabir Ke Dohe Hindi Me (Hindi Arth/Hindi Bhavarth)
कलि का स्वामी लोभिया, पीतलि धरी खटाई,राज दुवाराँ यौं फिरै, ज्यूँ हरिहाई गाइ॥
Kali Ka Swami Lobhiya, Peetali Dhari Khataai,
Raaj Duvaara Yo Phiere, Jyu Harihai Gaai.
कलि का स्वामी लोभिया : कलिकाल, कलियुग के महात्मा लोभी होते हैं.
पीतलि धरी खटाई : जैसे की पीतल में खटाई को रखने पर वह दूषित हो जाती है.
राज दुवाराँ यौं फिरै : राज दरबार और पैसे वालों के घर पर वे ऐसे फिरते हैं जैसे.
ज्यूँ हरिहाई गाइ : जैसे हिली हुई गाय, हरा चरने के लिए बार बार भगाने पर भी वापस वहीँ पर लोटती है.
कलि : कलियुग, कलिकाल.
स्वामी : महात्मा, ज्ञानीजन.
लोभिया : लोभ करने वाले हैं, लालची.
पीतलि : पीतल धातु (पीतल का पात्र)
धरी : रखी हुई.
खटाई : खट्टी वस्तुएं.
राज दुवाराँ : राज दरबार, राज द्वार.
यौं फिरै : ऐसे फिरते हैं.
ज्यूँ : जैसे.
हरिहाई गाइ : हिली हुई गाय, हरे चरने के लोभ में पड़ी हुई गाय जो हरे खेत में चरती है, उसे भगाने पर भी वह बार बार पुनः उसी खेत में लौट आती है.
पीतलि धरी खटाई : जैसे की पीतल में खटाई को रखने पर वह दूषित हो जाती है.
राज दुवाराँ यौं फिरै : राज दरबार और पैसे वालों के घर पर वे ऐसे फिरते हैं जैसे.
ज्यूँ हरिहाई गाइ : जैसे हिली हुई गाय, हरा चरने के लिए बार बार भगाने पर भी वापस वहीँ पर लोटती है.
कलि : कलियुग, कलिकाल.
स्वामी : महात्मा, ज्ञानीजन.
लोभिया : लोभ करने वाले हैं, लालची.
पीतलि : पीतल धातु (पीतल का पात्र)
धरी : रखी हुई.
खटाई : खट्टी वस्तुएं.
राज दुवाराँ : राज दरबार, राज द्वार.
यौं फिरै : ऐसे फिरते हैं.
ज्यूँ : जैसे.
हरिहाई गाइ : हिली हुई गाय, हरे चरने के लोभ में पड़ी हुई गाय जो हरे खेत में चरती है, उसे भगाने पर भी वह बार बार पुनः उसी खेत में लौट आती है.
कबीर साहेब की वाणी है की वर्तमान में, कलियुग में संतजन और साधुजन भी ढोंगी हो गए हैं और माया के वश में पड गए हैं. जैसे पीतल में रखी खटाई दूषित हो जाती है, वैसे ही कलियुग के साधू संत भी दूषित और विकारग्रस्त हो गए हैं क्योंकि उन्होंने माया का त्याग नहीं किया है, वे माया के चक्कर में अभी भी हैं. वे राज दरबार में ऐसे फिरते हैं जैसे किसी खेत में हरे के चक्कर में पड़ी हुई गाय भाग भाग कर पुनः उसी खेत में जाती है जहाँ से उसे खदेड़ दिया जाता है. सन्यासी को राजदरबार से मोह नहीं होना चाहिए, फिर भी वह माया के कारण दरबार के द्वार पर चक्कर काटते हैं. अतः भाव है की भले ही भक्ति का चोला पहन लिया जाए, साधू संत कहलवा लिया जाए लेकिन यदि माया से अपने मन को विरक्त नहीं किया तो वह अवश्य ही भक्ति को प्राप्त नहीं कर पायेगा. अपने मन से माया का त्याग होना आवश्यक होता है.
प्रस्तुत साखी में उपमा अलंकार की व्यंजना हुई है.
प्रस्तुत साखी में उपमा अलंकार की व्यंजना हुई है.