
भोले तेरी भक्ति का अपना ही
तारों
के मध्य में चंद्रमा का महत्त्व होता है, जैसे तारों के मध्य में चाँद का
महत्त्व होता है. लेकिन सूर्य के उदय होने के उपरांत उसका महत्त्व कम हो
जाता है.
ऐसे ही जो स्वंय को ज्ञानी समझते हैं वे अपने शिष्यों के मध्य
में खुश होते हैं और सम्मान को प्राप्त करते हैं. लेकिन जब में ज्ञानीजन
के मध्य में जाते हैं, उनके मध्य में वास्तविक ज्ञानी पंहुचता है तो वे छिप
जाते हैं, उनका महत्त्व कम हो जाता है. अतः इस दोहे का मूल भाव है की
सच्चे तत्वज्ञानी का ही महत्त्व होता है, जो ढोंगी हैं और स्वांग रचते हैं
वे अधिक समय तक लोगों के सम्मान के पात्र नहीं होते हैं. प्रस्तुत साखी में
अल्प ज्ञानियों को चंद्रमा कहा गया है. उनके शिष्य को तारे कहा गया है और
तत्वज्ञानी जन को सूर्य के समान बताया गया है. प्रस्तुत साखी में अन्योक्ति
अलंकार की व्यंजना हुई है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |