राजस्थानी कहावतें मुहावरे हिंदी अर्थ मीनिंग Rajasthani Kahavate Muhavare Hindi Meaning

राजस्थानी कहावतें मुहावरे हिंदी अर्थ सहित Rajasthani Kahavate Muhavare Hindi Meaning

राजस्थान में कई बोलियां बोली जाती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से राजस्थानी भाषा कहते हैं। आंचलिक स्तर पर मेवाड़ी, हाड़ोती, ब्रजभाषा, मारवाड़ी, ढूंढाड़ी, मेवाती आदि कई बोलियां बोली जाती हैं। राजस्थानी भाषा 72 बोलियों का समावेश है। इन 72 बोलियों के समूह को ही राजस्थानी भाषा कहा गया है। राजस्थानी भाषा को स्वतंत्र भाषा माना गया है। राजस्थानी भाषा को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। आज हम राजस्थानी भाषा की कहावतों के बारे में जानेंगे।
 
राजस्थानी कहावतें मुहावरे हिंदी अर्थ मीनिंग Rajasthani Kahavate Muhavare Hindi Meaning

कहावत से आशय उस वाक्य से है जिस वाक्य में गुढ़ अर्थ छुपा हो और जो वाक्य आम बोलचाल में प्रयोग किया जाता हो। कहावत को ही लोकोक्ति कहा जाता है। लोकोक्ति का मतलब होता है लोक + उक्ति (लोगों द्वारा कहा हुआ कथन) लोगों द्वारा कही गई बात। इसके अलावा कहावत के पीछे कोई कहानी छुपी हुई रहती है, कहावतें गागर में सागर भरने का कार्य करती हैं, थोड़े से शब्दों में ही बड़ी कही जा सकती है। कहावत एक पूर्ण वाक्य होता है। कहावत का अर्थ सांकेतिक होता है। 
 
उखली में सिर दे, जिको धमका से के डरे: यहां उखली से तात्पर्य ओखली से है जिसमें मसाला और अनाज को कुटा जाता है और धमका का अर्थ चोट से है। अथार्त जब हम अनाज को ओखली में कुटते हैं तो चोट से डरना नहीं चाहिए वैसे ही जब हम किसी जिम्मेदारी को उठाते हैं, तो हमें उस जिम्मेदारी को पूर्ण करने में आने वाली समस्याओं से डरना नहीं चाहिए।

एक घर तो डाकण भी टाले है: यहाँ डाकण से आशय एक बुरे इंसान से है। अथार्त बुरे से बुरा व्यक्ति भी अपने घर, परिवार,संबंधी और अपनों का बुरा नहीं चाहता है। बुरा इंसान भी अपने घर का, परिवार का भला ही चाहता है और अपनों का कभी भी बुरा नहीं करता है।

ओर सब सांग आ ज्याय, बोरे वालो सांग कोन्या आवे: यहां सांग से आशय मुखौटा से है और बोरे का अर्थ होता है बोहरा (व्यापारी और ब्याज पर रुपए देने का कार्य करने वाला)। यानी व्यक्ति और तो सभी मुखोटे लगा सकता है लेकिन एक निर्धन व्यक्ति धनी, साहूकार या व्यापारी का मुखौटा नहीं लगा सकता, उसकी दयनीय स्थिति ही बता देती है कि वह गरीब है। 

कंगाल छैल गांव ने भारी: यहां कंगाल से आशय गरीब से है और छैल का अर्थ होता है शौकीन और जो अमीर होने का दिखावा करता है। ऐसा व्यक्ति जिसके पास खर्च करने के लिए पैसे नहीं हो लेकिन उसके शौक बहुत बड़े हो और वह अपने शौक पूरे करने के लिए अपने परिवार जनों को परेशान करता है। ऐसा व्यक्ति अपने परिवार को ही नहीं पूरे गांव को परेशानी में डाल देता है।

कमेड़ी बाज ने कोनी जीत सके: कमेड़ी (कबूतर जैसा एक पक्षी) अथार्त एक कमजोर व्यक्ति और बाज़ (चील) अथार्त एक शक्तिशाली व्यक्ति। इससे आशय है कि एक कमजोर और गरीब व्यक्ति का प्रभावशाली और शक्तिशाली व्यक्ति से जीतना संभव नहीं है। कमजोर व्यक्ति शक्तिशाली से लड़ नहीं सकता है।

कनकड़ा दोन्यू दीन बिगाड़्यो: कनकड़ा का अर्थ है स्वार्थी साधु और दीन का अर्थ होता है धर्म। इस कहावत का अर्थ है कि दो स्वार्थी साधु मिलकर धर्म का लाभ उठाकर लोगों को मुर्ख बनाते हैं और धर्म की आड़ में गलत कार्य करते हैं। अथार्त धर्म की गलत व्याख्या करते हुए धर्म के पथ से भटक जाते हैं।

कदे न घोड़ा ही सिया, कदे न खीँच्या तंग कदे न रांड्या रण चढ़ा, कदे न बाजी जंग॥:  इस कहावत में कदे न घोड़ा ही सिया, कदे न खिन्चया तंग से मतलब है की कभी भी घोड़े को युद्ध के लिए तैयार नहीं किया और कदे न रांड्या रण चढ़ा, कदे न बाजी जंग का अर्थ है की कभी भी कमजोर और कायर व्यक्ति युद्ध में नहीं जाता है और कभी भी साहस और बहादुरी से युद्ध नहीं करता है। आधुनिक समय में इस कहावत से आशय यह है कि कायर और आलसी व्यक्ति कभी भी दृढ़ निश्चय से बहादुरी और साहसिक कार्य नहीं कर सकता है।
 
 
कलह कलासे पेंडे को पाणी नासे: कलह कलासे (कलह और क्लेश मतलब घर में लड़ाई झगड़ा) घर में अगर क्लेश हो, कलह हो तो पेंडे (घर में पानी के मटके रखने की जगह) में रखा हुआ पानी भी नष्ट हो जाता है। अथार्त गृह क्लेश से घर में हर वस्तु का नुकसान होता है। अतः शान्ति और वैभव उसी घर में आते हैं, लक्ष्मी जी उसी घर में वास करती है जहां पर शान्ति होती है।

कबूतर ने कुवो ही दीखे: कुवा (कुँवा) यहाँ कुवा से आशय सुनसान जगह से है क्योंकि कबूतर अपना घोसला सुनसान जगह पर ही बनाते हैं। जिससे वो आसानी से सुरक्षित रह सके। इसी प्रकार हर आलसी व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार आसान लक्ष्य की और ही बढ़ता है। कबूतर अधिकतर अपना घौंसला बिल्ली और बाज से बचाने के लिए कुए में बना लेते हैं, कुए की दीवारों में घौंसला बना लेते हैं। यहाँ इससे आशय है की जो व्यक्ति जैसा होता है, जिस स्वभाव का होता है वह अपने लिए उसी प्रकार की स्थितियां ढूंढ लेता है।

कमाऊ आवे डरतो, निखटू आवे लड़तो: कमाऊ (जिम्मेदार) और निखट्टू (कामचोर)। इस कहावत में यह बताया गया है कि जिम्मेदार व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों के बोझ तले दबा हुआ रहता है और जो कामचोर व्यक्ति होते और दूसरों पर आश्रित होते हैं, वे केवल शोर मचाते हैं और लड़ते झगड़ते रहते हैं।
काला कने बैठ्या काला लागे: इस कहावत से आशय है कि संगत का असर होता है। अगर दुष्ट व्यक्ति की संगत होगी तो उसके परिणाम भी बुरे होंगे और बदनामी भी होगी। कमाऊ व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझता है इसलिए वह नियमों का पालन करता है लेकिन निखट्टू व्यक्ति सभी से लड़ाई ही करता रहता है।

काम की मां उरेसी, पूत की मां परेसी: यहां उरेसी का मतलब है यही, पास में ही और परेसी का मतलब होता है दूर। मेहनत करने वाला व्यक्ति सभी को अच्छा लगता है और सभी उसको पसंद करते हैं और उसके पास रहते हैं और जो आलसी और कामचोर व्यक्ति होता है, सभी लोग उससे दूरी बनाते हैं और उसके साथ कोई व्यवहार नहीं रखते हैं।

कागलां के काछड़ा होता तो उड़ता कोन्या दीखता: (Rajasthani Muhavare Lokokti Hindi Arth / Meaning) कागला (कौआ), काछड़ा (कच्छे)। इस कहावत से आशय है कि अगर कौवे के पास कच्छे होते तो जब वह उड़ते तो वह दिखाई देते यह इसका शाब्दिक अर्थ है। इसका सांकेतिक अर्थ है कि अगर व्यक्ति में गुण हैं तो वह दिखाई देते हैं। स्पष्ट रूप से उन गुणों का प्रभाव उसके व्यक्तित्व पर पड़ता है और वह गुण उसके व्यवहार में परिलक्षित होते हैं, दिखाई देते हैं।
काणती भेड़ को न्यारो ही राड़ों: (राजस्थानी मुहावरे हिंदी अर्थ सहित) काणती (एक आँख होना), न्यारो (अलग), राड़ों (भेड़ के रहने की जगह)। इस कहावत से आशय है कि जो व्यक्ति बुद्धिहीन होता है, जिसमें कमियां होती है वह बुद्धिमान लोगों के साथ ना होकर अपना एक अलग ही समूह बनाता है और अपने तथ्यहीन विचारों से सदैव पीछे ही रहता है। ऐसे व्यक्ति को संगठन में विश्वास नहीं होता है और वह अपना एक अलग ही समूह बनाता है।
कुंदन जड़े न जड़ाव, जमे सलामत कीट।
 
कहे जडिया सुण ले जगत, उड़े मेह की रीठ॥: राजस्थान में कहा जाता है की सिलाई-कढ़ाई करते समय और कुंदन और नगीना जड़ते समय सिलाई कढ़ाई अच्छे से ना हो और सुई पर कीट अर्थात चिकनाई जमने लगे तो वर्षा होने की संभावना होती है।
कुए में पड़कर सूको कोई भी निकले ना: सुको मतलब सूखा। इस कहावत से आशय है कि व्यक्ति को अपने कार्य का फल अवश्य मिलता है। जैसे अगर कोई व्यक्ति कुएं में गिर जाता है तो वह गिला अवश्य होता है। कार्य का परिणाम अवश्य मिलता है। जैसा कार्य होगा वैसे ही फल की प्राप्ति होगी।
खर, घूघू, मूरख नरा सदा सुखी प्रिथिराज: खर(गधा),घुघु (उल्लू) और मूर्ख नर(मूर्ख व्यक्ति) हमेशा सुखी जीवन जीते हैं, इन्हे दुनियादारी से कुछ भी लेना देना नहीं होता है। यह चिंता मुक्त होते हैं इसलिए हमेशा सुखी और प्रसन्न रहते हैं।
खावे तो डाकण, ना खावे तो डाकण: डाकण (पिशाचिनी, डायन)। इस कहावत का अर्थ है कि कोई कार्य करें तो भी बुरा और ना करें तो भी बुरा परिणाम होना। हर परिस्थिति में बदनामी होनी निश्चित हो तो इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
खावे पुणू, जीवे दुणू: पूणू(3/4 भाग), दुणू(दोगुना) कहावत से आशय है कि जितनी भूख हो उससे कम खाना चाहिए। जो व्यक्ति अपनी भूख से तीन चौथाई हिस्सा ही खाता है तो वह दोगुना ज्यादा जीवित रहता है। जो व्यक्ति खाना कम खाता है वह ज्यादा स्वस्थ एवं दीर्घायु होता है।
खिजूर खाय सो झाड़ पर चढ़े: खिजूर (खजूर), झाड़(खजूर का पेड़)। इस कहावत का अर्थ है जिस व्यक्ति को लाभ प्राप्त करना हो या लाभ की आशा हो, वही व्यक्ति कार्य करता है और नुकसान उठाने की हिम्मत भी रखता है। इससे आशय यह भी है कि खतरा वही उठाया जाता है जहां लाभ सुनिश्चित हो।खेती धणिया सेती: इस कहावत से आशय है कि कृषि कार्य खेत के मालिक के सामने ही अच्छे से होते हैं। अगर खेत का मालिक खेत में हो और मजदूरों के साथ हो, तभी मजदूर अच्छे कार्य करते हैं। खेत के मालिक की अनुपस्थिति में कृषि कार्य सही तरीके से नहीं हो पाता है। वैसे ही जिम्मेदार व्यक्ति हो तभी परिवार और समाज का विकास होता है।
खैरात बंट जठे, मंगता आपे ही पूंच जावे: मुफ्त का सामान लेने के लिए लोगों की भीड़ बहुत जल्दी इकट्ठा हो जाती है। जैसे जहां खैरात बांटी जा रही हो,
वहां भिखारी बिना बुलाए ही आ जाते हैं।
खोयो ऊँट घड़ा में ढूँढ: गंभीर नुकसान उठाने के बाद व्यक्ति की हालत बहुत बिगड़ जाती है और वह नुकसान की भरपाई के लिए असंभव कार्य भी करने लग जाता है। जैसे खोए हुए ऊँट को घड़े में ढूंढना।अब ऊँट घड़े में तो आ नहीं सकता, असंभव है लेकिन उसकी मानसिक हालत इतनी खराब हो जाती है कि वह ऊँट को घड़े में ढूंढता है।
गंगा तूतिये में कोनी नावड़: इस कहावत से आशय है कि बहुत बड़ा कार्य छोटे से प्रयास से नहीं हो सकता है। बड़े कार्य को करने के लिए प्रयास भी ज्यादा करने पड़ते हैं। जैसे गंगा नदी का पानी तुतिये (मिट्टी का छोटा घड़ा) में नहीं आ सकता है वैसे ही छोटे और तुच्छ प्रयासों से बड़ा कार्य पूर्ण करना संभव नहीं हो पाता है।
गई बहू गयो काम, आई बहू आयो काम: इस कहावत का अर्थ है की कार्य किसी के भरोसे नहीं रुकता है। कार्य करने वाले की अनुपस्थिति में भी कार्य पूरा होता है।
गणगौर ने ही घोड़ा ना दौड़े तो कद दौड़े: इस कहावत का अर्थ है कि त्यौंहार पर ही आनंद मनाया जाता है।वैसे ही अवसर हो तब अवसर का फायदा उठाकर कार्य करना चाहिए। अवसर चुकने पर कार्य संभव नहीं है। जैसे गणगौर के त्योहार पर ही घोड़े दौड़ते हैं अगर त्योंहार पर ही घोड़े नहीं दोड़े तो कब दोड़ेंगे।गाडा ने देखके पाडा का पग सूजगा: इस कहावत का अर्थ है समस्या को देख कर परेशान हो जाना। गाडा(गाड़ी), पाडा(भैंसा) जैसे गाड़ी को देखकर भैंसा परेशान हो जाता है कि अब उसको गाड़ी चलानी पड़ेगी।
गिरगिट रंग-बिरंग हो, मक्खी चटके देह।
मकड़ियां चह-चह करे, जब अठ जोर मेह॥: इस कहावत का अर्थ है जब गिरगिट बार-बार रंग बदले और मक्खियां शरीर पर बैठे और मकड़ियों की आवाज हो तो बरसात होने का अनुमान लगाया जा सकता है।
गुड़ देता मरे बिन झैर क्यूं देणूं: झैर(जहर- कटु वचन) इस कहावत का अर्थ है कि अगर कार्य आराम से हो जाए अर्थात मीठी बातों से ही अगर कार्य हो जाए तो कड़वी बातें और झगड़ा नहीं करना चाहिए।
गुण गेल पूजा: व्यक्ति के गुण उसकी पहचान होते हैं। व्यक्ति में जैसे गुण होंगे वैसे ही उसकी समाज में जगह होगी। गुणवान व्यक्ति का हमेशा सम्मान होता है।
गेरदी लोई तो के करेगो कोई: गेरदी (गिरा दिया), लोई (शर्म, हया, लज्जा)। जब व्यक्ति समाज के सामने बेशर्म हो जाए, निर्लज्ज हो जाए और शर्म, हया सब कुछ भूल कर अनैतिक और असामाजिक कार्य करने लग जाता है तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है। समाज में ऐसा माना जाता है कि अगर व्यक्ति बेशर्म हो जाए तो उसे समाज का डर नहीं रहता है। ऐसा व्यक्ति कुछ भी अनैतिक कार्य कर सकता है।गैली रांड का गैला पूत: गैला (बुद्धिहीन, पागल, नासमझ), रांड ( विधवा औरत जिसका कोई सम्मान नहीं करता) इस कहावत का अर्थ है की जैसी नासमझ मां होती है वैसा ही नासमझ पुत्र होता है।
गोद लडायो गीगलो, चढ्यो कचेड्या जाट।
पीर लड़ आई पदमणी, तीन्यू ही बारा बाट॥: इस कहावत में अधिक लाड दुलार किया गया बेटा और अदालत में मुकदमा लड़ता हुआ जाट जाति का व्यक्ति और लड़ाई झगड़ा करके अपने पीहर गई पत्नी के बारे में बताया गया है। ऐसा कहा गया है कि ऐसा करने वाले सभी बर्बाद हो जाते हैं और उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है।
गोलो र मूंज पराये बल आंवसै: मूंज (रस्सी), गोलो (गोला), आंवसे (जोश, अकड़) इस कहावत का आशय है जैसे पानी डालने पर रस्सी और ज्यादा मजबूत हो जाती है उसी प्रकार नौकर अपने मालिक के नाम से ही अपना दबदबा दिखाता है।
घण जाया घण ओलमा, घण जाये घण हाण: इस कहावत का अर्थ है अधिक बच्चे पैदा करने पर अधिक लोगों की शिकायतें प्राप्त होते हैं। ज्यादा बच्चे ज्यादा शैतानी करते हैं और लोग ज्यादा शिकायतें करते हैं, लोग अधिक उपालंभ देते है।
घण जायां घण नास: इस कहावत का अर्थ है कि ज्यादा बच्चे होते हैं तो ज्यादा नुकसान होता है। परिवार में एकता नहीं रह पाती हैं और एकता नहीं रहने से सब नष्ट हो जाता है।
घण मीठा में कीड़ा पड़ै: इस कहावत का अर्थ है कि अति हर वस्तु की ही खराब होती है। जरूरत से ज्यादा प्रेम भी लाभदाई नहीं होता है वहां भी खटास पड़ ही जाती है।
घर-घर माटी का चूल्हा: इस कहावत का आशय है कि हर घर की कहानी एक ही है। सब की परिस्थितियां एक जैसी ही होती है तो इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
घर तो नागर बेल पड़ी, पड़ौसन को खोसै फूस: इस कहावत का अर्थ है दूसरों के धन पर नजर रखना। जब व्यक्ति अपने पास हर तरह की सुख सुविधा होते हुए भी दूसरों की सुविधा पर नजर रखता है तो इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
घूंघटा से सती नहीं, मुंडाया जती नहीं: इस कहावत का आशय है कि घुंघट निकालने मात्र से ही स्त्री को सती नहीं समझा जा सकता, वैसे ही मात्र सिर मुंडवाने से ही पुरुषों को साधु नहीं समझा जा सकता है। इसके लिए उन्हें साधना करनी होती है। दिखावे मात्र से ही सब संभव नहीं होता है,परिणाम प्राप्ति के लिए वह कार्य भी करना होता है।
चांदी देख्या चेतना, मुख देख्या त्यौहार: चांदी अर्थात धन-धान्य से भरपूर। संपन्नता देखने पर व्यक्ति की चेतना अथार्त सक्रियता का पता लगाया जा सकता है और चेहरा देखकर व्यक्ति के व्यवहार का अनुमान लगाया जा सकता है।
चाए जिता पालो, पाँख उगता ई उड़ ज्यासी: इस कहावत से आशय है कि जैसे चिड़िया के बच्चे पंख आते ही उड़ जाते हैं वैसे ही व्यक्ति अपने बच्चों को चाहे कितने ही प्यार से पालन पोषण करें, बच्चे जब समझदार हो जाते हैं तब वह अलग हो जाते हैं। उनकी सोच, उनके विचार, और उनके व्यवहार में अंतर आ जाता है।
चाकरी स सूं आकरी: चाकरी(नौकरी, गुलामी, जी हजूरी करना), आकरी (कठिन)। इस कहावत का अर्थ है कि किसी की जी हजूरी करना, किसी की हां में हां मिलाना और किसी के यहां नौकरी करना बहुत ही कठिन कार्य है। ऐसा करने के लिए अपने मन को बहुत कठोर बनाना पड़ता है और जैसा मालिक कहता है उसी के अनुसार कार्य करना पड़ता है, चाहे वो कार्य उचित हो या ना हो।
चालणी में दूध दुव, करमां ने दोस देव: चालनी (छलनी) में दूध दुव (दुहना, निकालना)।कार्य को सही तरीके से ना करना और भाग्य को दोष देना ही इस कहावत का अर्थ है।
चावलां को खाणो, फलसै ताई जाणो: फलसै (घर के बाहर का दरवाजा) राजस्थान में माना जाता है कि चावल खाने से शक्ति नहीं आती है और थोड़ी देर में ही वापस भूख लग जाती है। इस कहावत का अर्थ है कार्य के लिए पूर्ण रूप से तैयार ना होना।
चिड़ा-चिड़ी की के लड़ाई, चाल चिड़ा मैं आई: इस कहावत से आशय है कि घनिष्ठ व्यक्तियों में जो हमेशा पास में रहते हैं, उन में लड़ाई झगड़े का असर ज्यादा देर तक नहीं रहता है। थोड़ी देर बाद ही उनका मनमुटाव दूर हो जाता है। जैसे पति पत्नी झगड़े करते हैं लेकिन ज्यादा देर तक उनके बीच मनमुटाव नहीं रह सकता है।
चिकणी चोटी का स लगवाल: इस कहावत से आशय है कि धनवान व्यक्ति सभी को अच्छा लगता है और सभी व्यक्ति धनवान से कुछ ना कुछ प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए सभी धनवान व्यक्ति के आस-पास ही रहते हैं।
चून को लोभी बातां सूं कद मान: चून (आटा)। इस कहावत का आशय है कि लालची व्यक्ति बातों से नहीं मानता है। वह तब तक पीछे पड़ा रहता है जब तक उसकी इच्छा पूरी नहीं हो जाती है।
चोखो करगो, नाम धरगो: अच्छे कर्म करने वाले व्यक्ति को उसकी मृत्यु के पश्चात भी याद किया जाता है। वह अपने अच्छे कार्य के लिए हमेशा याद किया जाता है और हमेशा के लिए प्रसिद्ध हो जाता है।
च्यार दिनां री चानणी, फेर अँधेरी रात: इस कहावत का आशय सुख-दुख से है। जब सुख के बाद परेशानियों का समय आता है, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।
छाज तो बोले से बोले पण चालणी भी बोले जिक ठोतरसो बेज: छाज (अनाज छांटने का उपकरण)। इस कहावत का अर्थ है कि व्यक्ति अपने अनगिनत अपने अवगुणों को ना देखकर दूसरों में कमियों को इंगित करता है।
जबान में रस, जबान में विष: इस कहावत का अर्थ है कि व्यक्ति के शब्दों (बोली) में ही प्यार और द्वेष छुपा रहता है। व्यक्ति अपनी बोली से किसी का भी दिल जीत भी सकता है और किसी का दिल दुखा भी सकता है।
डूब्यो तिर के निकले, तिरिया डूब्यो बह जाय: कहावत का अर्थ है कि पानी में डूबा हुआ व्यक्ति एक बार बच भी सकता है लेकिन जो व्यक्ति स्त्री के बहकावे में आ जाता है उसको सही रास्ते पर लाना बहुत ही मुश्किल है।
जावो कलकत्ते सूं आगे, करम छाँवली सागै: इस कहावत का अर्थ है आप चाहे जहां चले जाएं आपके कर्म आपके साथ जाएंगे और आपकी किस्मत जगह बदलने से नहीं बदलती है। वह कर्म करने से, मेहनत करने से बदलती है।
जी की खाई बाजरी, ऊ की भरी हाजरी: इस कहावत का अर्थ है कि व्यक्ति जिसके रहमों करम पर पलता है, अपना जीवन निर्वहन करता है उसी का गुणगान गाता है।
जीवती माखी कोन्या गिटी जावे: माखी (मक्खी), गिटी (निगलना)। इस कहावत का अर्थ है सब कुछ जानते हुए किसी के लिए बुरा कार्य नहीं किया जा सकता है। जिस कार्य के गलत परिणाम पहले से ही पता हो वह कार्य नहीं कर सकते हैं।
जुग देख र जीणूं ह: इस कहावत के अनुसार यह बताया गया है कि व्यक्ति को अपने समय और परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेकर कार्य करना चाहिए।
जुग फाट्या स्यार मरे: इसका हिंदी अर्थ है संगठन में ही शक्ति होती है। जब परिवार टूट जाता है तो उससे सिर्फ नुकसान ही होता है।
जेठा बेटा अर जेठा बाजरा राम दे तो पावे: जेठा (ज्येष्ठ- बड़ा), जेठा (ज्येष्ठ- माह)। इस कहावत का अर्थ है कि सब सबसे बड़ी संतान बेटा होना और ज्येष्ठ माह में बाजरा बोना, सब भगवान के हाथ मेंं ही है। जब ईश्वर कृपा होती है तभी यह संभव है।
झूठ की डागलां ताई दौड़: इस कहावत का अर्थ है कि झूठ के पैर नहीं होते हैं और झूठ अधिक दिनों तक नहीं चल सकता है। एक दिन सच सामनेेे आ ही जाता है।
टके की हांडी फूटी, गंडक की जात पिछाणी: इस कहावत का अर्थ है कम नुकसान में ही व्यक्ति की असलियत की पहचान होना।
टूटी की बूटी कोनी: इसका अर्थ है जब व्यक्ति वृद्ध हो जाता है तब कोई दवा कार्य नहीं करती है। व्यक्ति शरीर से लाचार, बेबस और असहाय हो जाता है। वृद्धावस्था में व्यक्ति का शरीर भी साथ नहीं देता है।
टोलै मिलकी कांवली, आय थला बैठत।
दिन चौथे के पाँचवे जल थल एक करंत॥: राजस्थान में यह माना जाता है कि जब बहुत सारी चील एक स्थान पर इकट्ठी होती हैं तो 4 से 5 दिन के अंतराल पर ही वर्षा अवश्य आती है।
ठंडो लौह तातै ने काटे: सहनशील और धैर्यवान व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के क्रोध को शांत कर सकता है। जब किसी को गुस्सा आया हुआ हो तो एक पक्ष को शांत रहकर निर्णय लेना चाहिए। अगर दोनों ही पक्ष उग्र हो जाते हैं तो कोई भी फैसला नहीं हो पाता है। निर्णय हमेशा शांत मन से ही लेना चाहिए।
ठाडै क धन को बोजो–बोजो रुखाळो है: इस कहावत से आशय है कि बलशाली व्यक्ति का समर्थन सभी  लोग करते हैं और बलशाली व्यक्ति की संपत्ति को कोई भी हड़प नहीं सकता है।
ठोकर खार हुंस्यार होय: इस कहावत का अर्थ है व्यक्ति नुकसान उठाकर ही बुद्धिमान बनता है।
डांगर के हेज घणूं, नापैरी के तेज घणूं: इस कहावत का अर्थ है कि दूध ना देने वाली गाय अपने बछड़े से बहुत प्रेम करती है और जिस स्त्री के पीहर नहीं होता है वह स्त्री बहुत गुस्से वाली होती है।
डूंगरा ने छाया कोनी होय: इस कहावत का अर्थ है कि साधन संपन्न व्यक्ति अपने सुख सुविधा का भोग स्वयं नहीं कर पाता है। जबकि वह दूसरों की मदद करके उनके दुख दर्द को दूर कर उनकी परेशानियां कम कर सकता है।
ढांढा मारण, खेत सुकावण,
तू क्यूं चाली आधै सावण: इस कहावत का अर्थ है सावन का आधा महीना बीत जाने पर जब हवा चलती है तो वह पशु, पक्षियों और कृषि के लिए भी नुकसानदायक होती है।
तंगी में कुण संगी: इस कहावत का अर्थ है जब व्यक्ति किसी मुश्किल या परेशानी में होता है और आर्थिक तंगी होती है तो कोई भी उस का सहारा बन कर उसकी आर्थिक मदद नहीं करता है।
तवे की काची ने, सासरे की भाजी ने कठेई ठौड कोनी: इस कहावत का अर्थ है की कच्ची रोटी किसी काम की नहीं होती है वैसे ही ससुराल को छोड़कर जाने वाली स्त्री का भी कोई सम्मान नहीं होता है।
ताता पाणी से कसी बाड़ बळै: किसी किसी के द्वारा क्रोध में कुछ कहने मात्र से ही उस व्यक्ति का बुरा नहीं होता है। जैसे गर्म पानी से आग नहीं लग सकती, वैसे ही बुरा कह देने मात्र से ही व्यक्ति का बुरा नहीं होता है।
ताली लाग्यां ही तालो खुल: इस कहावत का आशय है उचित तरीके से कार्य करने पर ही सफलता प्राप्त होती है।
तेल तो तिलां से ही निकलसी: इस कहावत का अर्थ है गुणवान व्यक्ति के गुण उसके व्यवहार में स्वयं परिलक्षित होते हैं, दिखाई देते हैं।
थावर कीजे थरपना बुध कीजै व्योहार: राजस्थान में मान्यता है कि शनिवार को किसी भी कार्य की स्थापना करना और बुधवार को व्यापार की शुरुआत करना श्रेष्ठ होता है।
थोथो चणो बाजै घणो: जिस व्यक्ति में गुणों का अभाव हो, वह व्यक्ति अपनी कमियों को छुपाने के लिए अत्यधिक व्यवहार कुशल बनने की चेष्टा करता है।
थोथो शंख पराई फूँक से बाजे: बुद्धिहीन व्यक्ति दूसरों की सलाह मानकर सभी कार्य करता है। वह अपनी स्वयं की बुद्धि का प्रयोग ना करके दूसरों के द्वारा कही गई बातें मानता है।
दलाल के दिवालो नहीं, महजित के तालो नहीं: इस कहावत से आशय है कि दलाल (बिचोलिया) को कभी भी नुकसान नहीं होता है। नुकसान की स्थिति में वह दोनों पक्षों से दूर हो जाता है।

दूसरा को माल तूंतड़ा की धड़ में जाय: तुन्तड़ा (चारा) इस कहावत से आशय है कि दूसरों का धन उपयोग करते समय व्यक्ति लापरवाही से धन खर्च करता है और उस धन का सदुपयोग नहीं कर पाता है।

दोन्यू हाथ मिलायां ई धुपै: इस कहावत का अर्थ है दोनों पक्षों का ही ध्यान रखने पर ही सही निर्णय हो पाता है। जैसे दोनों हाथों के मिलाने से ही दोनों हाथ धुलते हैं वैसे ही दोनों पक्षों की बातों का महत्व होना चाहिए, तभी दोनों पक्ष में सुलह होती है।

धरम को धरम, करम को करम: ऐसा कार्य करना जिससे स्वयं को और दूसरों को भी लाभ हो।

धायो मीर, भूखो फकीर, मरयां पाछै पीर: परिस्थितियों के अनुसार आकलन करना। जैसे अगर व्यक्ति के पास खूब धन संपत्ति हो तो उसे मीर कहा जाता है, अगर व्यक्ति भूखा हो तो उसे फकीर कहा जाता है और व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे पीर कहा जाता है।

धीणोड़ी सागै हीणोड़ी मर ज्याय: इस कहावत का अर्थ है कि व्यक्ति लाभ प्रदान करने वाले लोगों को ज्यादा महत्व देता है। जिससे अपने दूसरे रिश्तों पर ध्यान नहीं दे पाता है इस वजह से अन्य रिश्ते कमजोर हो जाते हैं फिर भी उनको कोई तवज्जो नहीं दी जाती है।

नदी कनलौ जांट, कद होण बिनास:जांट (पेड़)। नदी के पास लगा हुआ पेड़ पानी की अधिक मात्रा से ज्यादा मजबूत नहीं हो पाता है और पेड़ कभी भी गिर सकता है।

न कोई की राई में, न दुहाई में: जो व्यक्ति सिर्फ अपने कार्य में ही ध्यान रखता है और अपना समय उपयोगी कार्य में लगाता है, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है।

नगारा में तूती की आवाज कोन्या सुण: समर्थ और महान लोगों के यहां दयनीय और गरीब की उपेक्षा की जाती है। उनकी आवाज को दबाया जाता है और उनके अधिकारों की उपेक्षा की जाती है।
 
नर नानेर, घोड़ो दादेर: राजस्थान में यह माना जाता है कि लड़का अपने ननिहाल पक्ष के गुणों को ग्रहण करता है और घोड़ा अपने पितृपक्ष के गुणों को ग्रहण करता है।

नांव राखे गीतड़ा के भींतड़ा: लेखक और शिल्पकार अपनी कला के कारण हमेशा याद किए जाते हैं और अपनी कला से प्रसिद्धि प्राप्त करतें हैं।

नाजुरतिये की लुगाई, जगत की भोजाई: राजस्थानी कहावत है कि जो सामाजिक रुप से कमजोर इंसान होता है उसकी वस्तु पर सभी अपना हक जमाते हैं।
 
नारनौल की आग पटीकड़ै दाजै: इस कहावत का अर्थ है कि किसी के बुरे कर्म का फल किसी दूसरे व्यक्ति को भुगतना पड़ता है।

नानी कसम करै, दोयती ने दंड: इस कहावत का अर्थ है कि किसी व्यक्ति के कार्य का परिणाम उसकी आगे आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ता है। 

कली होठां, चढ़ी होठां: इस कहावत का अर्थ यह है कि अगर बात किसी एक को भी पता चल जाए तो बात को फैलने में समय नहीं लगता है। बात एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे होती हुई सभी को पता चल जाती है।

नीत गेल बरकत है: इस कहावत का अर्थ है कि जैसी व्यक्ति की नियत होती है वैसे ही नियती होती है। व्यक्ति की सोच और उसका कर्म ही उसका भविष्य तय करते हैं। जो व्यक्ति सबका भला चाहता है तो भगवान भी उसका भला करते हैं। 

न्यारा घरां का न्यारा बारणां: इसका अर्थ यह है कि सभी व्यक्तियों के अलग-अलग रीति रिवाज होते हैं। हर घर के अलग कायदे कानून होते हैं। व्यक्ति अपने अनुसार अपने घर के नियम बनाता है। किसी एक का नियम दूसरे पर लागू हो यह आवश्यक नहीं।

नेम निभाणा, धर्म ठिकाणा: इस कहावत का अर्थ यह है कि जो व्यक्ति हर परिस्थिति में अपने नियम निभाता है वह धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति होता है। एक धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति ही संयमित जीवन जीता है और धर्म  को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाता है।

पड़–पड़ कई सवार होय है: इस कहावत से आशय है कि व्यक्ति अपनी गलतियों से अपने जीवन की बहुत सी महत्वपूर्ण बातें सीखता है।

पर नारी पैनी छुरी, तीन ओड सै खाय। धन छीजे, जोबन हडै, पत पंचा में जाय॥: इस कहावत से आशय है कि पराई स्त्री के जाल में नहीं फंसना चाहिए। इससे धन हानि होने के साथ ही जवानी भी नष्ट हो जाती हैं और समाज में बदनामी भी होती है।

पपैया पीऊ–पीऊ करे, मोरा घणी अजग्म। छत्र करै मोरिया सिरे, नदिया बहे अथग्म॥: जब
पपीहा बोले और मोर नाचे तो भारी बरसात आने की संभावना होती है। 

पवन गिरि छूटे पुरवाई। धर गिर छोबा, इन्द्र धपाई॥: पूरब दिशा से हवा चलती है तब बहुत भारी वर्षा होती है।

पाँच आंगलियां पूंच्यो भारी: इस कहावत का अर्थ है संगठन में ही शक्ति होती है।

पांचू आंगली एक–सी कोनी होवे: इस कहावत का अर्थ है कि सभी एक जैसे नहीं होते हैं। जैसे पांच उंगलियां बराबर नहीं होती हैं वैसे ही परिवार के सभी सदस्यों की सोच, विचार और व्यवहार एक जैसा नहीं होता है।

पाँव उभाणा जायसी, कोडीयज कंगाल: इस कहावत का अर्थ है कि मरने के बाद सभी व्यक्ति नंगे पैर ही जाते हैं। यह धन और दौलत सब यहीं रह जाता है।

पाप को घड़ो भर के फूटे: अत्याचार और पाप बढ़ने पर पाप का अंत अवश्य होता है। जैसे रावण का अत्याचार और पाप बढ़ने पर रावण का अंत हो गया था। वैसे ही जब व्यक्ति एक निश्चित सीमा से बढ़कर जुल्म और अत्याचार करता है तो उसका अंत निश्चित है।

पीरकां की आस करे जकी भाईड़ां ने रोवे: इस कहावत का अर्थ है जहां कोई आपका साथ ना दे वहां किसी से भी उम्मीद रखना बेकार है।

पीसो गाँठ को, हथियार हाथ को: राजस्थान में कहा जाता है कि संकट के समय इकट्ठा किया हुआ धन और बचाव के समय हाथ में उठाया हुआ हथियार ही जान बचाने के काम आता है और रक्षा करता है। 

पुल का बाया मोती निपजै: इस कहावत का अर्थ है समय से किया गया कार्य ही फलदाई होता है।

पूत का पग पालणै ही दिख्याव: बच्चों का व्यवहार देखकर ही उनके भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है।

 पैली पडवा गाजै, दिन बहत्तर बाजे: राजस्थान में माना जाता है कि आषाढ़ की प्रतिपदा तिथि यानी कि एकम तिथि को अगर बादल गरजते हैं तो 72 दिन तक बरसात नहीं होती है।

फाड़णियाँ नै सीमणियाँ कोनी नावड़ै: इस कहावत का अर्थ है की फिजूलखर्ची करने पर धन की कमी हो ही जाती है।
बड़ा–बड़ा गाँव जाऊँ, बड़ा–बड़ा लाडू खाऊँ: बिना मेहनत के ही फल प्राप्त करने की इच्छा करना और कोई कार्य ना करके सिर्फ धनवान बनने की कल्पना करना करना।

बड़े लोगां के कान होय है, आँख नहीं: इस कहावत का अर्थ है बड़े और समर्थ लोग स्वयं किसी की तहकिक़ात नहीं करते हैं। सच और झूठ का पता नहीं लगाते हैं। सिर्फ दूसरे लोगों की सुनी हुई बात पर ही विश्वास कर लेते हैं।

 बाड़ के सहारे दूब बधे: इस कहावत का अर्थ है कमजोर और असहाय व्यक्ति भी किसी के सहारे से अपना जीवन यापन कर सकते हैं। 

बालक देखे हीयो, बूढ़ो देखे किने: इस कहावत का आशय है कि छोटे बच्चे सिर्फ प्रेम करने वाले को ही पसंद करते हैं जबकि एक उम्रदराज व्यक्ति व्यवहार  देखता है।

बावै सो लूणै: जैसा बोओगे वैसा काटोगे अथार्त व्यक्ति जैसे कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है।
भाठै सूं भाठो भिड्याँ बिजली चमक: इस कहावत से आशय है दो दुष्ट व्यक्तियों की लड़ाई में नुकसान ही होता है।

मतलब की मनुहार, जगत जिमावै चूरमा: इस कहावत का अर्थ है कि व्यक्ति अपने स्वार्थ प्राप्ति के लिए दूसरों की जी हजूरी करता है।

माटी की भींत डिगती बार कोनी लगावे: इस कहावत का अर्थ है जिस व्यक्ति में सामर्थ्य नहीं हो उसे कमजोर व्यक्ति ज्यादा समय तक किसी को सहारा नहीं दे सकता है। जैसे मिट्टी की दीवार ज्यादा समय तक नहीं चलती है वैसे ही कमजोर व्यक्ति ज्यादा समय तक किसी को सहारा नहीं दे सकता है। व्यक्ति को स्वयं ही समर्थवान बनना होता है। 

मां मरी आधी रात, बाप मर्यो परभात: इस कहावत का अर्थ है बहुत सारी मुसीबतों का एक साथ आना और एक के बाद एक परेशानी का आना।

माया अंट की, विद्या कंठ की: इस कहावत का अर्थ है अपना कमाया हुआ धन और अर्जित ज्ञान ही समय पर काम आता है। 

माल से चाल आव: इस कहावत का अर्थ है कि जब व्यक्ति संपन्न होता है, जब व्यक्ति के पास धन होता है तब व्यक्ति बुद्धिमानी के कार्य करता है।

मींडका ने तिरणूं कुण सिखावै: इस कहावत का अर्थ है व्यक्ति की जन्मजात और प्राकृतिक गुण व्यक्ति  में अंतर्निहित होते हैं, उनको सिखाने की आवश्यकता नहीं होती है। जैसे मेंढक को तैरना कोई नहीं सिखाता हैं वह  स्वयं ही सीख जाता है।

यारी को घर दूर है: इस कहावत का आशय है कि दोस्ती निभाना आसान नहीं है। सच्चा दोस्त अपनी दोस्ती के लिए कठिन से कठिन कार्य भी कर सकता है। सच्चा दोस्त वही होता है जो मुसीबत के समय साथ खड़ा हो और मुसीबत को दूर करें करने में मदद करें।

राख पत, रखाय पत: इस कहावत का अर्थ है दूसरे व्यक्तियों को इज्जत और मान सम्मान देने पर ही स्वयं को मान सम्माम की प्राप्ति होती है।

रात च्यानणी, बात आँख्या देखी मानणी: इस कहावत का अर्थ है प्रत्यक्ष देखा हुआ ही मानना चाहिए। जैसे चांदनी रात में सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है,  वैसे ही प्रत्यक्ष देखी हुई बात को पर ही विश्वास करना चाहिए।

रूप की रोवै, करम की खाय: व्यक्ति को अपनी शारीरिक सुंदरता पर ध्यान ना दे कर मेहनत पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि मेहनतकश व्यक्ति मेहनत करके अपना जीवन यापन कर सकता है, केवल शारीरिक सुंदरता से व्यक्ति अपना जीवन यापन नहीं कर पाता है। मेहनतकश व्यक्ति अपनी मेहनत से आगे बढ़ कर प्रगति के नये रास्ते खोल सकता है। 

रोयां राबड़ी कुण घालै: इस कहावत का अर्थ है व्यक्ति को स्वयं परिश्रम करने से ही धन की प्राप्ति होती है, किसी के सामने भूखमरी का रोना रोने से खाना नहीं मिलता है, मेहनत करके ही व्यक्ति अपना जीवनयापन कर सकता है।

लोहा, लकड़ा, चामड़ा, पहला किसा बखाण।
बहु, बछेरा, डीकरा, नीमटियो पछाण॥
इस कहावत का अर्थ है जैसे लोहा, लकड़ी और चमड़े का पता उपयोग करने पर ही चलता है वैसे ही बहू, बेटा और घोड़े के बच्चों का स्वभाव उनके वयस्क होने पर ही पता चलता है।

संवारता बार लागे, बिगाड़तां कोनी लागे: इस कहावत का अर्थ है कार्य को सफल बनाने में बहुत समय लगता है लेकिन थोड़ी सी गलती से ही कार्य बिगड़ जाता है। इसका अर्थ यह भी है कि किसी के साथ रिश्ता बनाने में बहुत समय लगता है लेकिन रिश्ता तोड़ने में समय नहीं लगता है।

सवेरै रो गाजियो ऐलौ नही जाय: इस कहावत का अर्थ है अगर सुबह सुबह ही बादल गरजना करें तो बरसात अवश्य होती है।
सगलै गुण की बूज है: सज्जन व्यक्तियों का सम्मान सभी करते हैं। गुणवान व्यक्ति की हर जगह चाह होती है। सभी व्यक्ति गुणवान व्यक्तियों से संबंध रखना चाहते हैं।

सदा न जुग जीवणा, सदा न काला केस: इस कहावत का आशय है कि व्यक्ति हमेशा जीवित नहीं रहता है। जवानी भी हमेशा साथ नहीं रहती हैं, जवानी के बाद  बुढापा भी आता है। ऐसे ही सभी अवस्थाओं का अंत हो जाता है।
साच कही थी मावडी, झूठ कह था लोग।
खारी लागी मावडी, मीठा लाग्या लोग॥: इस कहावत का अर्थ है कि लोग खुश करने के लिए झूठ बोलते हैं, लेकिन मां हमेशा सच का साथ देती है। अगर सच कड़वा हो तो भी माँ हमेंशा सच ही कहती है। लेकिन लोग सिर्फ वही कहते हैं जो आप सुनना चाहते हैं, इसलिए कभी भी लोगों की चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं आना चाहिए। हमेशा सच को स्वीकार करने की हिम्मत होनी चाहिए। 

सांप के मांवसियां की के साख: इस कहावत का अर्थ दुष्ट व्यक्ति हमेशा दुष्टता करता है, उस पर कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए। जैसे सांप को कितना ही दूध पिलाओ आखिरकार वह डस ही लेता है।
सिर चढ़ाई गादड़ी गाँव ई फूंकै लागी: अपात्र व्यक्ति को उसकी योग्यता और सामर्थ्य से बढ़कर स्थान नहीं देना चाहिए। व्यर्थ ही किसी को ज्यादा तवज्जो नहीं देनी चाहिए। ऐसा करने से कुछ समय बाद वह व्यक्ति सभी के लिए नुकसानदायक हो जाता है। 

सोनै कै काट कोन्या लागै: सज्जन व्यक्ति किसी के कह देने मात्र से ही गलत साबित नहीं होते हैं। उनका व्यवहार ही उनकी पहचान होता है। सज्जन व्यक्ति कोई गलत कार्य नहीं करते हैं। किसी के कह देने से ही सज्जन पुरुषों पर कलंक नहीं लगाया जा सकता है। जैसे सोने पर जंग नहीं लग सकता वैसे ही सज्जन व्यक्ति को बदनाम नहीं किया जा सकता है।

हतकार की रोटी चौवटे ढकार: इस कहावत का आशय है कि मुफ्त की वस्तुओं का भोग करके, बातों को बढ़ा चढ़ाकर प्रदर्शित करना और अपने आप को बड़ा व्यक्ति दिखाने की चेष्टा करना।
हांसी मैँ खांसी हो ज्याय: कभी-कभी हंसी मजाक में ही कोई ऐसी बात हो जाती है जिससे लड़ाई झगड़े की नौबत आ जाती है, तब इस कहावत का प्रयोग किया जाता है। 

हाकिमी गरमाई की, दुकनदारी नरमाई की: इस कहावत का अर्थ है नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को अपना स्वभाव थोड़ा कड़क रखना चाहिए, जिससे सभी उसकी बातों को माने और व्यापार करने वाले व्यक्ति को अपना व्यापार बढ़ाने के लिए विनम्र होना चाहिए।

राजस्थानी मुहावरे भाग -1 : राजस्थानी मुहावरों का सरल हिंदी अर्थ देखें (Rajasthani Muhavare Meaning Hindi)
राजस्थानी मुहावरे भाग -2 :
राजस्थानी मुहावरों का हिंदी में मीनिंग देखें Rajasthani Muhavare Hindi Arth Sahit

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