मैनु मेरे साईंयाँ औकात विच रखी
मैनु मेरे साईंयाँ औकात विच रखी
सुख होवे, दुख होवे — सदा शुकर मनावा,
निवा होके हर वेले तैनूं दिल दी सुनावा।
कदे मुख उत्ते मेरे गल मंदड़ी न आवे,
कदे भूल के न साईंया दिल किसे दा दुखावा।
हर वेले हो मंगा — मेरे अंग-संग वसी,
हर आंख नम होवे, जदो दुनिया तो जावा।
(अंतरा 1)
औकात विच रखीं मैंनूं, औकात विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
चंगे चाहे माडे तू — हालत विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
(अंतरा 2)
हर वेले साईंया — तेरा शुकर मनावा मैं,
सुख होवे, दुख होवे — तैनूं न भुलावा मैं।
नीवापन मेरे जज़्बात विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
(अंतरा 3)
रुतबा न मंगदा मैं, ओहदा नहियों मंगदा,
गुरु जी दीवाना — तेरे सेवका दे संग दा।
मैंनूं सेवादारा दी — जमात विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
(अंतरा 4)
भागा वाली तेरी — मेरी जदों मुलाकात होवे,
जदों मेरी झोली विच — पानी कोई दात होवे।
श्रद्धा ते सबूरी दी — सौगात विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
(अंतरा 5)
हक ते हलाल वाली — रुखी सुखी खावा मैं,
जदों कुछ पावा गुरु जी — होर झुक जावा मैं।
सादापन मेरी — गल बात विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
निवा होके हर वेले तैनूं दिल दी सुनावा।
कदे मुख उत्ते मेरे गल मंदड़ी न आवे,
कदे भूल के न साईंया दिल किसे दा दुखावा।
हर वेले हो मंगा — मेरे अंग-संग वसी,
हर आंख नम होवे, जदो दुनिया तो जावा।
(अंतरा 1)
औकात विच रखीं मैंनूं, औकात विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
चंगे चाहे माडे तू — हालत विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
(अंतरा 2)
हर वेले साईंया — तेरा शुकर मनावा मैं,
सुख होवे, दुख होवे — तैनूं न भुलावा मैं।
नीवापन मेरे जज़्बात विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
(अंतरा 3)
रुतबा न मंगदा मैं, ओहदा नहियों मंगदा,
गुरु जी दीवाना — तेरे सेवका दे संग दा।
मैंनूं सेवादारा दी — जमात विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
(अंतरा 4)
भागा वाली तेरी — मेरी जदों मुलाकात होवे,
जदों मेरी झोली विच — पानी कोई दात होवे।
श्रद्धा ते सबूरी दी — सौगात विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
(अंतरा 5)
हक ते हलाल वाली — रुखी सुखी खावा मैं,
जदों कुछ पावा गुरु जी — होर झुक जावा मैं।
सादापन मेरी — गल बात विच रखीं,
मैंनूं मेरे मालका — औकात विच रखीं।
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प्रभु की कृपा में रहने वाला भक्त हर सुख-दुख में उनकी महिमा का गुणगान करता है और सदा उनके प्रति कृतज्ञता का भाव रखता है। वह नम्रता के साथ अपनी हर पुकार को प्रभु के सामने रखता है, यह कामना करते हुए कि उसका मन कभी किसी को दुख न दे और उसका हृदय सदा प्रभु के प्रेम में डूबा रहे। यह भक्ति का वह भाव है, जो भक्त को हर परिस्थिति में प्रभु की उपस्थिति का अनुभव कराता है और उसे नीवापन और सादगी के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। प्रभु की शरण में रहकर भक्त यह याचना करता है कि वह उसे सदा अपनी औकात में रखे, ताकि वह न कभी अभिमान में भटके और न ही प्रभु के प्रेम से दूर हो।
प्रभु का सेवक बनना ही भक्त का सबसे बड़ा रुतबा है, और वह किसी सांसारिक वैभव की कामना नहीं करता। वह केवल प्रभु की सेवा और उनके भक्तों के संग में सुख पाता है, और उनकी कृपा की झोली में श्रद्धा और सबुरी की दौलत माँगता है। प्रभु की दया में रहकर वह सादा जीवन और हक-हलाल की कमाई को अपनाता है, और हर पल उनकी कृपा के आगे नतमस्तक रहता है। यह सादगी और समर्पण ही भक्त के जीवन को सार्थक बनाता है, और उसे प्रभु की कृपा के उस पवित्र मार्ग पर ले जाता है, जहाँ हर सांस उनकी भक्ति और कृतज्ञता से संनादित होती है।
प्रभु का सेवक बनना ही भक्त का सबसे बड़ा रुतबा है, और वह किसी सांसारिक वैभव की कामना नहीं करता। वह केवल प्रभु की सेवा और उनके भक्तों के संग में सुख पाता है, और उनकी कृपा की झोली में श्रद्धा और सबुरी की दौलत माँगता है। प्रभु की दया में रहकर वह सादा जीवन और हक-हलाल की कमाई को अपनाता है, और हर पल उनकी कृपा के आगे नतमस्तक रहता है। यह सादगी और समर्पण ही भक्त के जीवन को सार्थक बनाता है, और उसे प्रभु की कृपा के उस पवित्र मार्ग पर ले जाता है, जहाँ हर सांस उनकी भक्ति और कृतज्ञता से संनादित होती है।
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Author - Saroj Jangir
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