अब किसी महफ़िल में जाने की हमें फुर्सत नहीं
अब किसी महफ़िल में जाने की हमें फुर्सत नहीं
अब किसी महफ़िल में जाने की हमें फुर्सत नहीं,
दुनिया वालों को मनाने की हमें फुर्सत नहीं।।
एक दिल है जिसमें मेरा बस गया है सांवरा,
अब कहीं दिल को लगाने की हमें फुर्सत नहीं,
अब किसी महफ़िल में।।
एक जो आंखें हमारी मिल गई हैं श्याम से,
अब कहीं आंखें मिलाने की हमें फुर्सत नहीं,
अब किसी महफ़िल में।।
एक सर है झुक गया जो आपके दरबार में,
अब कहीं सर को झुकाने की हमें फुर्सत नहीं,
अब किसी महफ़िल में।।
दर बदर की ठोकरें खाने से है क्या फायदा,
सांवरे के दर के जैसा और कोई दर नहीं,
अब किसी महफ़िल में।।
दुनिया वालों को मनाने की हमें फुर्सत नहीं।।
एक दिल है जिसमें मेरा बस गया है सांवरा,
अब कहीं दिल को लगाने की हमें फुर्सत नहीं,
अब किसी महफ़िल में।।
एक जो आंखें हमारी मिल गई हैं श्याम से,
अब कहीं आंखें मिलाने की हमें फुर्सत नहीं,
अब किसी महफ़िल में।।
एक सर है झुक गया जो आपके दरबार में,
अब कहीं सर को झुकाने की हमें फुर्सत नहीं,
अब किसी महफ़िल में।।
दर बदर की ठोकरें खाने से है क्या फायदा,
सांवरे के दर के जैसा और कोई दर नहीं,
अब किसी महफ़िल में।।
।। सावरे के दर के जैसा और कोई दर नहीं।। SAAWRE KE DAR KE JESAA AUR KOI DAR NAHI ।।
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अब किसी महफ़िल में
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Author - Saroj Jangir
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