माँ ही मंदिर माँ ही पूजा भजन
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा भजन
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा
रमता जोगी बहता पानी,
माँ की कहे कहानी,
माँ का नाम सदा रहता है,
बाकी सब कुछ फ़ानी।
(मुखड़ा)
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ से बढ़ के कोई न दूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर।।
(अंतरा 1)
माँ के पुण्य से जगत बना है,
ईश्वर को भी माँ ने जना है,
माँ ममता का एक कलश है,
जीवन ज्योत है, अमृत रस है,
क्या अंबर और क्या ये धरती,
माँ की तुलना हो नहीं सकती,
युग आते हैं, युग जाते हैं,
माँ की गाथा दोहराते हैं,
बड़े-बड़े ज्ञानी कहते हैं,
माँ का रुतबा सबसे ऊँचा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ से बढ़ के कोई न दूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर।।
(अंतरा 2)
मिट्टी हो गई माँ की काया,
भटक रहा है फिर भी साया,
कड़ी धूप में सोच रही है,
लाल पे अपने कर दूँ छाया,
शूल बनी है माँ की विवशता,
व्याकुल है, सूझे ना रस्ता,
सरल बहुत है कहना-सुनना,
कठिन बड़ा ही है माँ बनना,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ से बढ़ के कोई न दूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर।।
(अंतरा 3)
जनम-जनम की माँ दुखियारी,
करके हर कोशिश ये हारी,
भई बावरी उलझ गई है,
बच्चे का सुख ढूंढ़ रही है,
भूख से मुन्ना तड़प रहा है,
मन का धीरज टूट गया है,
आँचल में है दूध की नदिया,
और आँखों में नीर भरा है,
सबको सहारा देने वाली,
कौन बने अब तेरा सहारा?
कौन बने अब तेरा सहारा?
(पुनरावृत्ति – मुखड़ा)
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ से बढ़ के कोई न दूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर।।
रमता जोगी बहता पानी,
माँ की कहे कहानी,
माँ का नाम सदा रहता है,
बाकी सब कुछ फ़ानी।
(मुखड़ा)
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ से बढ़ के कोई न दूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर।।
(अंतरा 1)
माँ के पुण्य से जगत बना है,
ईश्वर को भी माँ ने जना है,
माँ ममता का एक कलश है,
जीवन ज्योत है, अमृत रस है,
क्या अंबर और क्या ये धरती,
माँ की तुलना हो नहीं सकती,
युग आते हैं, युग जाते हैं,
माँ की गाथा दोहराते हैं,
बड़े-बड़े ज्ञानी कहते हैं,
माँ का रुतबा सबसे ऊँचा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ से बढ़ के कोई न दूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर।।
(अंतरा 2)
मिट्टी हो गई माँ की काया,
भटक रहा है फिर भी साया,
कड़ी धूप में सोच रही है,
लाल पे अपने कर दूँ छाया,
शूल बनी है माँ की विवशता,
व्याकुल है, सूझे ना रस्ता,
सरल बहुत है कहना-सुनना,
कठिन बड़ा ही है माँ बनना,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ से बढ़ के कोई न दूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर।।
(अंतरा 3)
जनम-जनम की माँ दुखियारी,
करके हर कोशिश ये हारी,
भई बावरी उलझ गई है,
बच्चे का सुख ढूंढ़ रही है,
भूख से मुन्ना तड़प रहा है,
मन का धीरज टूट गया है,
आँचल में है दूध की नदिया,
और आँखों में नीर भरा है,
सबको सहारा देने वाली,
कौन बने अब तेरा सहारा?
कौन बने अब तेरा सहारा?
(पुनरावृत्ति – मुखड़ा)
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ से बढ़ के कोई न दूजा,
माँ ही मंदिर माँ ही पूजा,
माँ ही मंदिर।।
Maa Hi Mandir Maa Hi Pooja
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माँ की महिमा उस अनंत सागर की तरह है, जो सृष्टि के हर कण में समाई है। वह न केवल इस जगत की रचयिता है, बल्कि उस ममता का कलश है, जो जीवन को अमृत रस से सींचता है। माँ का रूप ही वह पवित्र मंदिर है, जहाँ भक्त का मन हर पल पूजा में लीन रहता है। न अम्बर, न धरती, न कोई और शक्ति माँ की तुलना में ठहर सकती, क्योंकि माँ का प्रेम और बलिदान युगों-युगों तक गाया जाता है। यह भक्ति का वह स्वरूप है, जो माँ को सर्वोच्च स्थान देता है, जहाँ हर ग्यानी और भक्त उनके रुतबे को नमन करता है। माँ की गाथा वह अमर कहानी है, जो सदा हृदय में गूंजती है, और भक्त को यह अहसास कराती है कि माँ ही इस संसार का आधार है।
माँ की ममता का वह साया, जो कठिन परिस्थितियों में भी अपने लाल की रक्षा के लिए व्याकुल रहता है, एक ऐसी शक्ति है, जो हर दुख को सहने की ताकत देती है। माँ बनना केवल एक शारीरिक काया का निर्माण नहीं, बल्कि वह आत्मिक बलिदान है, जो अपने बच्चे के सुख के लिए हर कष्ट सहती है। भूख से तड़पते मुन्ने के लिए माँ का आँचल दूध की नदिया बन जाता है, पर उसकी आँखों में नीर भरा रहता है। यह माँ की वह विवशता और प्रेम है, जो उसे हर भक्त के लिए एक सहारा बनाती है। फिर भी, वह स्वयं सहारे की तलाश में रहती है। यह भक्ति का वह भाव है, जो माँ को हर हृदय का मंदिर बनाता है, और भक्त को यह सिखाता है कि माँ का प्रेम ही इस संसार का सबसे बड़ा सत्य और पूजा है।
माँ की ममता का वह साया, जो कठिन परिस्थितियों में भी अपने लाल की रक्षा के लिए व्याकुल रहता है, एक ऐसी शक्ति है, जो हर दुख को सहने की ताकत देती है। माँ बनना केवल एक शारीरिक काया का निर्माण नहीं, बल्कि वह आत्मिक बलिदान है, जो अपने बच्चे के सुख के लिए हर कष्ट सहती है। भूख से तड़पते मुन्ने के लिए माँ का आँचल दूध की नदिया बन जाता है, पर उसकी आँखों में नीर भरा रहता है। यह माँ की वह विवशता और प्रेम है, जो उसे हर भक्त के लिए एक सहारा बनाती है। फिर भी, वह स्वयं सहारे की तलाश में रहती है। यह भक्ति का वह भाव है, जो माँ को हर हृदय का मंदिर बनाता है, और भक्त को यह सिखाता है कि माँ का प्रेम ही इस संसार का सबसे बड़ा सत्य और पूजा है।
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Author - Saroj Jangir
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