माया मन की मोहिनी कबीर दोहा हिंदी मीनिंग Maya Man Ki Mohini Meaning Hindi

माया मन की मोहिनी, सुर नर रहे लुभाय।
इन माया सब खाइया, माया कोय न खाय॥

Maya Man Ki Mohini, Sur Nar Rahe Lubhay,
In Maya Sab Khaiya, Maya Koy Na Khay.

माया मन की मोहिनी दोहा शब्दार्थ हिंदी Maya Man Ki Mohini Word Meaning

माया : सांसारिक मोह और प्रलोभन (यथा जमीन, रुपया, धन, मान सम्मान )
मन की : मन को।
मोहिनी : मोह लेने वाली अपने प्रभाव में ले लेने वाली। सुर : देवता।
नर : मानव
रहे लुभाय : लुभा लिया है।
इन माया : इस माया ने।
सब खाइया : सबको अपना शिकार बना लिया है।
माया : आसक्ति, लोभ।
कोय न : कोई नहीं।
खाय : खाया है, नष्ट किया है, अलगाव किया है। 

माया मन की मोहिनी कबीर दोहा हिंदी मीनिंग Maya Man Ki Mohini Meaning Hindi


माया मन की मोहिनी हिंदी अर्थ / भावार्थ Maya Man Ki Mohini Hindi Meaning

कबीर साहेब के इस दोहे का सन्देश है की माया मन को मोह लेती है। माया के प्रभाव से कोई बच (मुक्त) नहीं हो पाया है। सुर (देवता) नर (मानव) सभी इसके लोभ के शिकार बन जाते हैं। इस माया ने सभी को खा लिया है (सभी जीव जंतु, देव, मानव  आदि को अपने पाश (जाल में फंसा कर रख लिया है। माया सभी को अपना शिकार बना लेती है लेकिन माया को किसी ने नहीं खाया है /माया से मुक्त कोई नहीं हो पाया है। कबीर साहेब ने माया (मोहिनी) के चरित्र के द्वारा लोगों के मन को मोह लेने की विशेषता को बताया है।
 

Maya Man Ki Mohini Meaning in English (Kabir Couplet)

The message of this couplet by Kabir Saheb is that Maya (illusion or worldly desires) captivates the human mind. No one has been able to escape from the influence of Maya. Both gods (devas) and humans fall prey to its allure. Maya has ensnared and trapped all living beings, including animals, deities, and humans. Everyone has become a victim of its allure, but no one has been able to overcome it or become free from its clutches. Even though Maya ensnares everyone, no one has been able to defeat or escape from it.

In this couplet, Kabir Saheb has portrayed Maya as a seductress who captivates and entraps the minds of all living beings, leading them away from the path of spiritual realization. Despite its strong influence on everyone, no one has been able to conquer it and attain true liberation or freedom from worldly attachments.

 

"माया मन की मोहिनी, सुर नर रहे लुभाय।"
माया (मोहिनी) मन की मोहिनी है, जो स्वर्गीय देवताओं से लेकर मानवों और मुनियों तक को अपने मोह से आकर्षित करती है और अपने जाल में फंसा लेती है। वह सबको लुभा रही है और उनके मन को अपनी ओर आकर्षित करके इश्वर से विमुख कर देती है.

"इन माया सब खाइया, माया कोय न खाय।।"
सभी लोग माया (मोहिनी) के चरम लोभ में आकर उससे प्रभावित होते हैं और उसके भ्रम में आकर अपना उद्देश्य भूल जाते हैं। वे उसके जाल में फंस जाते हैं, लेकिन कोई भी माया पर विजय प्राप्त नहीं कर पाता है।

माया या अविद्या के बल पर मनुष्य और जीवत्व का असल लक्ष्य भूल जाता है और भगवान की भक्ति और साधना से दूर हो जाता है। विशेषकर, सांसारिक सुखों की भागदौड़ में मनुष्य अपने आत्मसात्‌ ज्ञान से वंचित रह जाता है। हमें माया के जाल से बचकर अपने असली स्वरूप में एकांतवासी भगवान की भक्ति करनी चाहिए, जिससे हमारी आत्मिक उन्नति हो सके और हम सच्चे सुख और शांति को प्राप्त कर सकें।
 

माया क्या है ?

कामरूपी इन्द्रियों का स्वाद ही माया है, इस माया के प्रभाव में आकर जीव चंचल हो जाता है और सांसारिक विषय भोग में लिप्त होकर अनंत काल भटकता ही रहता है, जब तक उसे कोई गुरु सत्य के प्रति सचेत नहीं करता है। वस्तुतः वह ठग लिया जाता है जैसे की कोई वेश्या प्रेम / प्यार के आवरण में व्यक्ति को ठग लेती है।
जाने कितने ही जतन उपरान्त मानव देह का चोला प्राप्त होता है और व्यक्ति नासमझी के कारण इसे व्यर्थ ही गवा देता है, इसलिए कबीर साहेब माया को महाठगिनी कहते हैं -

माया महा ठगनी हम जानी,
तिरगुन फाँस लिए कर डोले
बोले मधुरे बानी।

केसव के कमला वे बैठी,
शिव के भवन भवानी,
पंडा के मूरत वे बैठी,
तीरथ में भई पानी।।

योगी के योगन वे बैठी
राजा के घर रानी,
काहू के हीरा वे बैठी,
काहू के कौड़ी कानी।।

भगतन की भगतिन वे बैठी
बृह्मा के बृह्माणी,
कहे कबीर सुनो भई साधों,
यह सब अकथ कहानी।।
संत कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम से माया और धन के विषय में सन्देश दिया है की माया के प्रभाव से बच पाना सरल नहीं है। माया या धन के मोह का व्यक्ति के मन के ऊपर बहुत अधिक प्रभाव होता है, और यह प्रभाव उसे अपने असली स्वरूप से दूर ले जाता है और उसे भ्रम की अवस्था में रखता है।
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