गुरु कुम्हार शिष कुंभ है हिंदी मीनिंग
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट।
अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।or
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥
Guru Kumhaar Shish Kumbh Hai, Gadhi Gadhi Kaadhai Khot.
Antar Haath Sahaar Dai, Baahar Baahai Chot.
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है हिंदी शब्दार्थ
- गुरु : सद्गुरु, जो भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे।
- कुम्हार : व्यावसायिक रूप से मिटटी का बर्तन बनाने वाला, कुम्भकार ।
- शिष : शिष्य, साधक।
- कुंभ है : घड़ा है।
- गढि गढि : उसे गढ़ कर, बना कर।
- काढैं : निकालता है।
- खोट: कमियां, दोष।
- अंतर : अंदर से।
- हाथ सहार दै : हाथ का सहारा देता है।
- बाहर : बाहर की तरफ।
- बाहै : करता है, बाहना से आशय चोट मारने की क्रिया।
- चोट : घड़े को हाथ से थपकाकर आकर देना।
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है हिंदी अर्थ/भावार्थ
कबीर साहेब का कथन है की जैसे कुम्हार घड़े बनाने के समय में नाजुक मिटटी को अंदर से हाथ का सहारा देखर बाहर से चोट लगाकर उसे एक आकार देता है, ऐसे ही गुरु भी अपने शिष्य के अवगुणों को ज्ञान की चोट से दूर करता है। गुरु
ही शिष्य के चरित्र का निर्माण करता है, गुरु के अभाव में शिष्य एक माटी का
अनगढ़ टुकड़ा ही होता है जिसे गुरु एक घड़े का आकार देते हैं, उसके चरित्र का
निर्माण करते हैं। जैसे कुम्भकार घड़ा बनाते वक़्त बाहर से तो चोट मारता है
और अंदर से हलके हाथ से उसे सहारा भी देता हैं की कहीं कुम्भ टूट ना जाए,
इसी भाँती गुरु भी उसके अवगुण को तो दूर करते हैं, उसके अवगुणों पर चोट
करते हैं, लेकिन अंदर से उसे सहारा भी देते हैं, जिससे कहीं वह टूट ना
जाए।
आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
|
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
|