हेरत हेरत हे सखी रह्या कबीर हिराई हिंदी मानिग कबीर के दोहे

हेरत हेरत हे सखी रह्या कबीर हिराई हिंदी मानिग Herat Herat He Sakhi Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit

हेरत हेरत हे सखी, रह्या कबीर हिराई।
बूँद समानी समुंद मैं, सो कत हेरी जाइ॥ 
 
Herat Herat Hey Sakhi, Rahya Kabir Hirayi,
Bund Samani Samund Me, So Kant Heri Jai.
 
हेरत हेरत हे सखी रह्या कबीर हिराई हिंदी मानिग Herat Herat He Sakhi Meaning

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi

कबीर दास जी के इस दोहे में, वे साधना की चरमावस्था में आत्मा की अद्वैत अनुभूति का वर्णन करते हैं। इस दोहे में, कबीर दास जी कहते हैं कि साधना के मार्ग पर चलने वाले साधक को अंततः एक ऐसी स्थिति प्राप्त होती है जिसमें वह अपने अहंभाव से मुक्त हो जाता है। इस स्थिति में, वह आत्मा और परमात्मा के बीच का भेदभाव समाप्त हो जाता है। आत्मा, जो परमात्मा का अंश है, परमात्मा में लीन हो जाती है। दोहे में कबीर दास जी ने आत्मा की अद्वैत स्वरूप को व्यक्त किया है। इश्वर को ढूंढते ढूंढते, जीवात्मा स्वंय ही खो गई है। जीवात्मा रूपी बूँद इश्वर रूपी महासमुद्र में समां गई है, अब इसे पुनः कैसे ढूँढा जाय। यह साधना की चरम अवस्था है, जिसमे जीवात्मा का अहम् नष्ट हो जाता है। अब अद्वेत नहीं है, जीवात्मा और इश्वर में एकाकार हो जाता है। अब इश्वर और जीवात्मा को प्रथक कर पाना संभव नहीं है।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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