स्वारथ का सब कोई सगा सारा ही जग जान मीनिंग Swarath Ka Sab Koi Saga Meaning
स्वारथ का सब कोई सगा सारा ही जग जान मीनिंग Swarath Ka Sab Koi Saga Meaning : kabir Ke Dohe Hindi arth/Bhavarth
स्वारथ का सब कोई सगा, सारा ही जग जान |बिन स्वारथ आदर करे, सो नर चतुर सुजान ||
Swarath Ka Sab Koi Saga, Sara Hi Jag Jaan,
Bin Swarath Aadar Kare, So Nar Chatur Sujan.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि संसार में सभी लोग स्वार्थ से प्रेरित होते हैं, बिना स्वार्थ के वे किसी का आदर सत्कार भी नहीं करते हैं। वे केवल अपने स्वार्थ के लिए दूसरों से प्रेम और मेल-जोल रखते हैं। ऐसे लोगों से कोई लाभ नहीं होता। कबीरदास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति बिना स्वार्थ के दूसरों का आदर करता है, वही वास्तव में बुद्धिमान है। वह दूसरों की भलाई के लिए काम करता है और स्वार्थ से मुक्त होता है। ऐसे व्यक्ति को साहेब ने चतुर और सुजान कहा है. स्वार्थ के लिए सभी अपने बन जाते हैं (सगा से आशय सम्बन्धी से है ), सम्पूर्ण जगत की यही दशा है.
इस दोहे में "स्वार्थ" से तात्पर्य उन सभी चीजों से है जिनका उपयोग व्यक्ति अपने लाभ के लिए करता है। जैसे कि धन, शक्ति, प्रसिद्धि, आदि। "सगा" से तात्पर्य उन लोगों से है जो हमारे साथ केवल अपने स्वार्थ के लिए रहते हैं। जैसे कि मित्र, परिवार, आदि। तीसरी व्याख्या: इस दोहे में "आदर" से तात्पर्य उस सम्मान से है जो हम दूसरों को बिना किसी स्वार्थ के देते हैं।
अंततः, इस दोहे का संदेश यह है कि हमें दूसरों के साथ स्वार्थ से बचकर व्यवहार करना चाहिए। ऐसा करने से हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि संसार में सभी लोग स्वार्थ के कारण एक-दूसरे के सगे होते हैं। वे केवल अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए दूसरों से संबंध बनाते हैं। बिना स्वार्थ के कोई भी व्यक्ति किसी और का सगा नहीं होता है।
दोहे के पहले दो शब्द "स्वारथ का सब कोई सगा" का अर्थ है कि स्वार्थ के कारण सभी लोग सगे होते हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि संसार में सभी लोग स्वार्थी होते हैं। वे केवल अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए दूसरों से संबंध बनाते हैं। ऐसे में, वे केवल अपने स्वार्थ के लिए ही दूसरों का आदर करते हैं।
"सारा ही जग जान" का अर्थ है कि संसार की यही दशा है। कबीरदास जी कहते हैं कि संसार में सभी लोग स्वार्थी हैं। इसलिए, हमें यह समझ लेना चाहिए कि संसार में कोई भी व्यक्ति बिना स्वार्थ के हमारा सगा नहीं है।
"बिन स्वारथ आदर करे, सो नर चतुर सुजान" का अर्थ है कि बिना किसी स्वार्थ के जो आदर करता है, वही मनुष्य विचारवान - बुद्धिमान है। कबीरदास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति बिना स्वार्थ के दूसरों का आदर करता है, वह एक विचारवान और बुद्धिमान व्यक्ति है। वह दूसरों के स्वार्थ को समझता है और उनकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है।
आज के समय में भी यह दोहा बहुत प्रासंगिक है। आज भी हम देखते हैं कि कई लोग दूसरों से केवल अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए संबंध बनाते हैं। वे दूसरों का आदर केवल तब करते हैं जब वे कुछ पाने की उम्मीद करते हैं। ऐसे में, कबीरदास जी की यह सीख हमें बहुत महत्वपूर्ण है। हमें दूसरों का आदर बिना किसी स्वार्थ के करना चाहिए।
इस दोहे में "स्वार्थ" से तात्पर्य उन सभी चीजों से है जिनका उपयोग व्यक्ति अपने लाभ के लिए करता है। जैसे कि धन, शक्ति, प्रसिद्धि, आदि। "सगा" से तात्पर्य उन लोगों से है जो हमारे साथ केवल अपने स्वार्थ के लिए रहते हैं। जैसे कि मित्र, परिवार, आदि। तीसरी व्याख्या: इस दोहे में "आदर" से तात्पर्य उस सम्मान से है जो हम दूसरों को बिना किसी स्वार्थ के देते हैं।
अंततः, इस दोहे का संदेश यह है कि हमें दूसरों के साथ स्वार्थ से बचकर व्यवहार करना चाहिए। ऐसा करने से हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं। इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि संसार में सभी लोग स्वार्थ के कारण एक-दूसरे के सगे होते हैं। वे केवल अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए दूसरों से संबंध बनाते हैं। बिना स्वार्थ के कोई भी व्यक्ति किसी और का सगा नहीं होता है।
दोहे के पहले दो शब्द "स्वारथ का सब कोई सगा" का अर्थ है कि स्वार्थ के कारण सभी लोग सगे होते हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि संसार में सभी लोग स्वार्थी होते हैं। वे केवल अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए दूसरों से संबंध बनाते हैं। ऐसे में, वे केवल अपने स्वार्थ के लिए ही दूसरों का आदर करते हैं।
"सारा ही जग जान" का अर्थ है कि संसार की यही दशा है। कबीरदास जी कहते हैं कि संसार में सभी लोग स्वार्थी हैं। इसलिए, हमें यह समझ लेना चाहिए कि संसार में कोई भी व्यक्ति बिना स्वार्थ के हमारा सगा नहीं है।
"बिन स्वारथ आदर करे, सो नर चतुर सुजान" का अर्थ है कि बिना किसी स्वार्थ के जो आदर करता है, वही मनुष्य विचारवान - बुद्धिमान है। कबीरदास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति बिना स्वार्थ के दूसरों का आदर करता है, वह एक विचारवान और बुद्धिमान व्यक्ति है। वह दूसरों के स्वार्थ को समझता है और उनकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहता है।
आज के समय में भी यह दोहा बहुत प्रासंगिक है। आज भी हम देखते हैं कि कई लोग दूसरों से केवल अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए संबंध बनाते हैं। वे दूसरों का आदर केवल तब करते हैं जब वे कुछ पाने की उम्मीद करते हैं। ऐसे में, कबीरदास जी की यह सीख हमें बहुत महत्वपूर्ण है। हमें दूसरों का आदर बिना किसी स्वार्थ के करना चाहिए।
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