स्वारथ सुखा लाकड़ा छाँह बिहूना सूल मीनिंग Swarath Sukh Ladada Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth
स्वारथ सुखा लाकड़ा, छाँह बिहूना सूल |
पीपल परमारथ भजो, सुखसागर को मूल ||
Swarath Sukha Lakada, Chhanh Bihuna Sul,
Pipal Parmarth Bhajo, Sukhsagar Ko Mool.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
इस दोहे में कबीर साहेब ने स्वार्थ की भावना और परमार्थ की भावना के मध्य में अंतर को स्पष्ट किया है. वे कहते हैं की स्वार्थ की भावना सुखी लकड़ी के समान होती है. उसे सुखा हुआ पेड़ समझ सकते हैं जिसकी छाया किसी को नहीं मिलती है. वह सदा ही अन्य को कष्टदाई होती है. वहीँ पर परमार्थ की भावना पीपल के पेड़ की भाँती होती है जो सभी को सुख देती है. इस दोहे में कबीर साहेब ने स्वार्थ और परमार्थ के बीच अंतर को बहुत ही अच्छे से समझाया है। वे कहते हैं कि स्वार्थ में आसक्ति तो बिना छाया के सूखी लकड़ी है और सदैव संताप देने वाली है। दूसरी ओर, परमार्थ तो पीपल के पेड़ के समान है, जो छायादार, सुखदायी और कल्याण की मूल होती है। स्वार्थ एक ऐसी भावना है जो हमें दूसरों से अलग करती है। यह हमें केवल अपने बारे में सोचने और अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए प्रेरित करती है। स्वार्थ में आसक्ति हमें दुःख और संताप देती है, क्योंकि हम हमेशा दूसरों से तुलना करते रहते हैं और अपने पास जो कुछ भी है, उसमें संतुष्ट नहीं होते।
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
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