परमारथ पाको रतन कबहुँ न दीजै पीठ मीनिंग
परमारथ पाको रतन कबहुँ न दीजै पीठ हिंदी मीनिंग
परमारथ पाको रतन, कबहुँ न दीजै पीठ |
स्वारथ सेमल फूल है, कली अपूठी पीठ ||
स्वारथ सेमल फूल है, कली अपूठी पीठ ||
Parmarath Pako Ratan Kabahu Na Deeje Peeth,
Swarath Semal Phool Hai, Kali Aputhi Peeth.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
परमारथ और जगत कल्याण की भावना को कबीर साहेब ने सर्वोच्च माना है. कबीर साहेब कहते हैं की सबसे उत्तम रत्न/ मूल्यवान वस्तु यदि कोई है, कोई विचार है तो वह है दूसरों की भलाई करने की भावना को अपने हृदय/मन में रखना. दूसरों की भलाइ करने में हमें कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिये, इनकार नहीं करना चाहिए. स्वार्थ तो सेमल का फूल है जो किसी काम का नहीं होता है क्योंकि सेमल के फूल की कली कच्ची होती है और उलटी होती है, पीठ की तरफ उलटी होती है. आशय है की हमें अपने स्वार्थ को त्याग देना चाहिए और और अपने मन में, कार्यों में जगत कल्याण की भावना को स्थान देना चाहिए. जैसे सेमल का फूल अपनी तरफ ही खिलता है उसका कोई भी महत्त्व नहीं होता है इसी भाँती स्वार्थी व्यक्ति भी केवल अपने बारे में ही सोचता रहता है.
दोहे के शब्दार्थ
- परमारथ : परमार्थ/दूसरों की भलाई करने की भावना
- पाको : पक्का, श्रेष्ठ
- रतन : रत्न
- कबहुँ : कभी भी.
- न दीजै पीठ : पीठ नहीं देनी चाहिए, विमुख नहीं होना चाहिए.
- स्वारथ सेमल फूल है : स्वार्थ की भावना सेमल के फूल की भाँती से है.
- कली अपूठी पीठ : सेमल के फूल की कली निचे की तरफ होती है, उसका कोई महत्त्व नहीं होता है.
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |
