आशा करै बैकुंठ की दुरमति तीनों काल हिंदी मीनिंग Aasha Kare Bekunth Ki Meaning

आशा करै बैकुंठ की दुरमति तीनों काल हिंदी मीनिंग Aasha Kare Bekunth Ki Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth

आशा करै बैकुंठ की, दुरमति तीनों काल |
शुक्र कही बलि ना करीं, ताते गयो पताल ||

आशा करै बैकुंठ की दुरमति तीनों काल हिंदी मीनिंग Aasha Kare Bekunth Ki Meaning

इस दोहे में कबीर साहेब की वाणी है की ऐसा साधक जो स्वर्ग की आशा करता है लेकिन तीनों कालो में कुबुद्धि से ग्रस्त रहता है ऐसे साधक के विषय में साहेब कहते हैं की वे कल्याण को प्राप्त नहीं होते हैं। उदाहरण स्वरुप बलि ने गुरु शुक्राचार्य जी की आज्ञा का अनुसरण नहीं किया इस पर वह राज्य से वंचित होकर पाताल भेजा गया |

यह मन ताको दीजिये, साँचा सेवक होय |
सिर ऊपर आरा सहै, तऊ न दूजा होय ||

साधक को अपना हृदय उनको ही देना चाहिए जो पूर्ण रूप से ईश्वर के प्रति समर्पित हो। ऐसा सेवक अपने सर ऊपर आरा सहकर भी माया के विषय में अपनत्व का भाव ना लाये। 

शीलवन्त सुरज्ञान मत,अति उदार चित होय |
लज्जावान अति निछलता, कोमल हिरदा सोय ||

कबीर साहेब ने भक्त के विषय में सन्देश दिया है की शीलवान ही ग्यानी है और सच्चा देवता है। ऐसे साधक का चित्त अत्यंत ही उदार होता है और अपना चित्त उदार रखता है। वह अपने गुरु के प्रति शर्म का भाव रखता है और कोमल हृदय वाला होता है। वह अत्यंत निष्कपट और कोमल ह्रदय के होते हैं |

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