स्वागत है मेरे पोस्ट में, इस पोस्ट में हम जानेंगे "भेड़िया और बकरी के सात बच्चों" की एक प्रेरणादायक कहानी। यह कहानी एक ऐसी समझदार मां और उसके मासूम बच्चों की है, जिनके जीवन में एक धोखेबाज भेड़िया उन्हें हानि पहुंचाने की कोशिश करता है। कहानी में ना केवल मनोरंजन है, बल्कि इससे हमें सीख भी मिलती है कि समझदारी और सावधानी के साथ ही हम किसी भी संकट का सामना कर पाते हैं। तो चलिए, इस दिलचस्प और शिक्षाप्रद कहानी को पढ़ते हैं।
भेड़िया और बकरी के सात बच्चों की कहानी
बहुत समय पहले एक घने जंगल में एक बूढ़ी बकरी रहती थी। उसके सात छोटे-छोटे बच्चे थे। बकरी रोजाना जंगल में अपने बच्चों के लिए भोजन की तलाश में जाती थी। उसी जंगल में एक चालाक भेड़िया भी रहता था, जो बकरी के बच्चों को अपना शिकार बनाना चाहता था।
बकरी को भेड़िये की चालाकियों का पता था, इसलिए वह अपने बच्चों को जंगल के खतरों के बारे में सचेत करती रहती थी। उसने अपने बच्चों को सिखाया था कि भेड़िया भारी आवाज में बोलता है और उसके पैर काले होते हैं। यदि ऐसा कोई दरवाजे पर आए, तो दरवाजा मत खोलना।
एक दिन जब बकरी जंगल में भोजन लेने के लिए गई तो उसे आसपास कुछ भी नहीं मिला इसलिए उसे दूर जंगल में भोजन लेने जाना पड़ा। जंगल में जाने से पहले उसने बच्चों को बुलाकर समझाया कि जब तक वह लौटकर ना आए, किसी के लिए भी दरवाजा ना खोलें। बच्चों ने मां की बात मानने का वादा किया और बकरी भोजन लेने निकल गई।
भेड़िया बकरी के घर पर नजर जमाए बैठा था। जब उसने देखा की बकरी घास लेने जंगल में चली गई है, तो कुछ समय बाद भेड़िया बकरी के घर पहुंचा और दरवाजा खटखटाने लगा। अंदर से बच्चों ने पूछा, "कौन है?" भेड़िये ने अपनी आवाज में कहा, "बच्चों, मैं तुम्हारी मां हूं। दरवाजा खोलो।" बच्चों ने उसकी भारी आवाज सुनी और कहा, "हमारी मां की आवाज इतनी भारी नहीं होती। तुम भेड़िया हो और हमें खाने आए हो।"
भेड़िया सोचने लगा कि इन बच्चों को धोखा देने के लिए उसे कुछ और करना होगा। उसे याद आया कि मधु खाने से आवाज मीठी हो जाती है। वह तुरंत पास के मधुमक्खियों के छत्ते से शहद खाने चला गया। मधु खाने के बाद उसकी आवाज थोड़ी मीठी हो गई, लेकिन उसे कुछ मधुमक्खियों ने डंक मार दिए।
भेड़िया फिर से बकरी के घर गया और मीठी आवाज में बोला, "बच्चों, दरवाजा खोलो, मैं तुम्हारी मां हूं।" बच्चों ने सोचा कि शायद उनकी मां वापस आ गई है। लेकिन जैसे ही उन्होंने उसके काले पैर देखे, वे चिल्ला उठे, "तुम भेड़िया हो! हमारी मां के पैर काले नहीं, सफेद हैं।" फिर से भेड़िये की चाल नाकाम हो गई।
इस बार भेड़िया पास की आटा चक्की पर गया और अपने पैरों पर आटा लगा लिया, जिससे उसके पैर सफेद दिखने लगे। फिर वह तीसरी बार बकरी के घर पहुंचा और मीठी आवाज में दरवाजा खोलने के लिए कहा। बच्चों ने देखा कि आवाज मीठी है और पैर भी सफेद हैं, तो उन्होंने सोचा कि अब उनकी मां लौट आई है। लेकिन बकरी का सबसे छोटा बच्चा समझ गया कि यह उनकी मां नहीं है। उसने अपने भाई-बहनों को सावधान किया, लेकिन उन्होंने उसकी बात नहीं मानी और दरवाजा खोल दिया।
दरवाजा खोलते ही बच्चों ने देखा कि उनके सामने भेड़िया खड़ा है। सभी बच्चे डर के मारे इधर-उधर भागने लगे, पर भेड़िये ने एक-एक करके छह बच्चों को पकड़कर अपने थैले में भर लिया। सबसे छोटा बच्चा किसी तरह छुप गया। भेड़िया अपने थैले में बच्चों को भरकर खुशी-खुशी अपनी गुफा की ओर चल दिया।
कुछ समय बाद बकरी वापस लौटी तो घर की हालत देखकर घबरा गई। तभी उसका सबसे छोटा बच्चा बाहर आया और उसने मां को पूरी घटना सुनाई। यह सुनकर बकरी को गुस्सा आया और वह अपने बच्चों को छुड़ाने के लिए भेड़िये के पीछे गुफा की ओर चल पड़ी।
रास्ते में थकान के कारण भेड़िया एक पेड़ के नीचे आराम करने बैठ गया और उसे नींद आ गई। बकरी ने मौका पाकर धीरे-धीरे उसके थैले को खोला और अपने बच्चों को बाहर निकाल लिया। फिर उसने पत्थर थैले में भर दिए और थैले को बंद कर दिया। इसके बाद वह अपने बच्चों के साथ पास की झाड़ियों में छुप गई।
भेड़िया उठकर थैले को लेकर गुफा की ओर चला, उसे थैला भारी लगा, लेकिन उसने ध्यान नहीं दिया। रास्ते में एक नदी पड़ी जिसे पार करना था। जैसे ही उसने नदी पार करने की कोशिश की, थैले के पत्थरों का भार संभाल नहीं सका और नदी में गिरकर डूब गया। इस प्रकार उसे गलत कार्य का गलत परिणाम भुगतना पड़ा।
कहानी से शिक्षा
किसी को भी धोखा देने का परिणाम बुरा ही होता है। गलत काम करने वालों का अंत भी गलत ही होता है। हमें कभी भी किसी के साथ गलत व्यवहार नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे अंत में हमें भी नुकसान ही उठाना पड़ता है।