स्वागत है मेरे पोस्ट में, इस पोस्ट में हम होली की कथा जानेंगे, जो बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाती है। यह कहानी भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद, उनके पिता हिरण्यकश्यप और उनकी बुआ होलिका के बीच संघर्ष की है, जिसमें शक्ति, सत्य, और आस्था की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह कथा हमें सिखाती है कि चाहे कितनी भी कठिनाई हो, अंत में सत्य और अच्छाई की ही विजय होती है। चलिए, अब कहानी की ओर बढ़ते हैं।
होली की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, हिरण्यकश्यप नाम का एक अत्यंत घमंडी और क्रूर राक्षस था। उसने ब्रह्मा देव की कठिन तपस्या की, और उनसे अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने उसे अमरता का वरदान देने से इनकार कर दिया, तो हिरण्यकश्यप ने कई शर्तें रखते हुए ऐसा वरदान मांगा जिससे वह लगभग अमर हो जाए। उसने प्रार्थना की कि उसे न तो कोई मानव, न देवता, न पशु मार सके। साथ ही, न वह दिन में मरे और न रात में, न पृथ्वी पर और न आकाश में, न घर के भीतर और न बाहर, और न किसी अस्त्र से न किसी शस्त्र से। इन शर्तों के साथ, ब्रह्मा जी ने उसे वरदान दे दिया।
यह वरदान पाते ही हिरण्यकश्यप ने पूरे संसार में अत्याचार मचाना शुरू कर दिया। उसकी ताकत से सभी देवता, मनुष्य और अन्य जीव डर गए। वह चाहता था कि लोग उसकी पूजा करें और उसे भगवान मानें। जो लोग उसका पालन करते, उसे वह छोड़ देता, लेकिन जो मना करते, उन्हें वह कड़ी सजा देता। कभी-कभी वह उनको मौत के घाट भी उतार देता।
समय के साथ हिरण्यकश्यप का आतंक बढ़ता गया। उसी समय उसके घर में प्रहलाद का जन्म हुआ, जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को कई बार समझाया कि वह सिर्फ उसकी पूजा करे और भगवान विष्णु की भक्ति छोड़ दे। मगर प्रह्लाद ने हर बार यही कहा कि उसके केवल एक भगवान हैं और वह भगवान विष्णु हैं। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को बहुत समझाने की कोशिश की कि वह ही भगवान है लेकिन प्रहलाद ने हमेशा यही कहा कि उसके भगवान श्री विष्णु है और वह उनकी ही पूजा करेगा।
हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने की कई कोशिशें की, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उसे बचा लिया। उसने प्रहलाद को ऊंची पहाड़ी से फेंक दिया, विष दिया, हाथियों के पैरों तले कुचलवाने की कोशिश की, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने प्रहलाद की रक्षा की। यह देखकर हिरण्यकश्यप और भी क्रोधित हो गया।
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एक दिन उसकी बहन होलिका, जिसे आग में न जलने का वरदान प्राप्त था, ने हिरण्यकश्यप से कहा कि वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर आग में बैठ जाएगी। इससे प्रहलाद जल जाएगा और हिरण्यकश्यप की परेशानी खत्म हो जाएगी। हिरण्यकश्यप ने इस योजना को मान लिया। होलिका ने प्रहलाद को गोद में लिया और आग में बैठ गई।
भगवान विष्णु की कृपा से होलिका का वह कंबल, जो उसे आग से बचाता था, उड़कर प्रह्लाद के ऊपर आ गया और होलिका खुद जलकर भस्म हो गई। प्रहलाद एक बार फिर भगवान विष्णु की कृपा से सुरक्षित रहे। इस घटना को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत मानते हैं और आज तक होलिका दहन के रूप में मनाते हैं। अगले दिन लोग रंगों से होली खेलते हैं, जो आनंद और सच्चाई की विजय का प्रतीक है।
कहानी से शिक्षा
यह कहानी हमें सिखाती है कि चाहे बुराई कितनी भी ताकतवर हो, अंत में जीत सच्चाई और अच्छाई की ही होती है। इसीलिए हमें सदा सत्य और धर्म का मार्ग अपनाना चाहिए।
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