लोमड़ी और सारस की दावत की प्रेरणादायक कहानी

स्वागत है इस पोस्ट में, नमस्कार दोस्तों, आज हम एक रोचक और प्रेरणादायक कहानी "लोमड़ी और सारस की दावत" के बारे में जानेंगे। इस कहानी में दोस्ती, ईमानदारी और बुरी आदतों के परिणाम की एक अनमोल सीख छुपी है। इसे पढ़ने के बाद आप समझ पाएंगे कि किसी का अपमान करना या उसके साथ गलत व्यवहार करना अंत में खुद के लिए भी हानिकारक होता है। तो आइए, इस कहानी का आनंद लें और इससे कुछ मूल्यवान सीख प्राप्त करें।
 
The story of the feast of the fox and the stork
 

लोमड़ी और सारस की दावत की कहानी

बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में लोमड़ी और सारस नाम के दो अच्छे दोस्त रहते थे। सारस एक सीधा-सादा और दयालु पक्षी था, जबकि लोमड़ी चालाक और शरारती स्वभाव की थी। उनकी दोस्ती मजबूत थी, लेकिन लोमड़ी को दूसरों का मजाक उड़ाने और परेशान करने में मजा आता था।

एक दिन लोमड़ी ने सोचा, क्यों न अपने मित्र सारस का मजाक उड़ाया जाए? उसने सारस को अपने घर दावत पर बुलाया। जब सारस आया, तो लोमड़ी ने उसे खाने में सूप परोसा, लेकिन सूप को एक चौड़ी प्लेट में डाल दिया। लोमड़ी जानती थी कि सारस अपनी लंबी और पतली चोंच के कारण प्लेट से सूप नहीं पी सकता।

सारस ने कोशिश की, लेकिन वह सूप नहीं पी पाया। लोमड़ी ने झूठी सहानुभूति दिखाते हुए पूछा, "क्या बात है मित्र, सूप पसंद नहीं आया?" सारस समझ गया कि लोमड़ी ने जान-बूझकर ऐसा किया है, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। वह भूखा ही घर लौट गया और सोचने लगा कि कैसे लोमड़ी को उसकी गलती का एहसास कराया जाए।

अगले दिन सारस ने लोमड़ी को अपने घर दावत पर बुलाया। लोमड़ी बड़ी खुशी से सारस के घर पहुंची। सारस ने भी सूप बनाया, लेकिन इस बार सूप को एक लंबी सुराही में परोसा। सुराही का मुंह इतना संकरा था कि सिर्फ चोंच अंदर जा सकती थी।

सारस और उसके पक्षी मित्र बड़े मजे से सूप पी रहे थे, जबकि लोमड़ी केवल उन्हें देखती रह गई। भूख से तड़पते हुए उसने अपनी हार स्वीकार की। सारस ने भी वही सवाल पूछा, "क्या बात है मित्र, सूप अच्छा नहीं लगा?" लोमड़ी को अपनी गलती का एहसास हो गया। अब उसे अपनी गलती पर पछतावा था लेकिन अब पछताने के अलावा उसके पास कुछ शेष नहीं था। सारस के पूछने पर उसको सभी की हां में हां मिलनी ही पड़ी। इस तरह उसे बिना सूप पिए ही सूप को स्वादिष्ट बताना पड़ा।

कहानी से शिक्षा

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी का मजाक या अपमान नहीं करना चाहिए। जैसा व्यवहार हम दूसरों के साथ करते हैं, वैसा ही हमारे साथ होता है। दयालुता और ईमानदारी से जीना ही सच्ची मित्रता का आधार है। हमें किसी के साथ भी बेईमानी पूर्ण व्यवहार नहीं करना चाहिए। किसी का मजाक उड़ाने पर एक दिन हम स्वयं मजाक के पात्र बन जाते हैं।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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