गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल की कहानी

स्वागत है मेरे पोस्ट में, इस पोस्ट में हम जानेंगे महात्मा बुद्ध और खूँखार डाकू अंगुलिमाल की कहानी सरल हिंदी में। यह कहानी हमें सन्देश देती है कि सही मार्गदर्शन और अहिंसा का संदेश कैसे किसी भी व्यक्ति का हृदय परिवर्तन कर सकता है, उसके मार्ग को सद्मार्ग पर लाया जा सकता है। बुद्ध का संयम, ज्ञान और धैर्य का यह किस्सा न केवल प्रेरणा देता है, बल्कि जीवन में नई दिशा, सोचने समझने और मानवीय गुण को उभारने का सन्देश देता है। आइए इस प्रेरक कहानी में आगे बढ़ें और जाने कैसे बुद्ध ने अंगुलिमाल जैसे क्रूर डाकू को बदल डाला, उसके जीवन में जो भी बुराइयां थी वे सब दूर हुई। The Story of Gautam Buddha and Angulimala

गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल की कहानी The Story of Gautam Buddha and Angulimala

कहानी: अंगुलिमाल और महात्मा बुद्ध

बहुत समय पहले मगध के जंगलों में अंगुलिमाल नाम का एक खूँखार डाकू रहता था। उसके नाम से ही लोग काँप उठते थे। रात होते ही लोग घरों से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं कर पाते थे, क्योंकि अंगुलिमाल राहगीरों को लूटने के बाद उनकी उँगलियाँ काटकर अपने गले में माला के रूप में पहनता था। इस वजह से वह  "अंगुलिमाल" नाम से कुख्यात था।

एक दिन महात्मा बुद्ध उसी गाँव में आए जहाँ लोगों ने उनका स्वागत किया। बुद्ध ने देखा कि लोग भीतर से डरे हुए हैं, और उन्होंने इसका कारण पूछा। लोगों ने बताया कि यह भय अंगुलिमाल नामक डाकू के कारण है, जो राहगीरों की हत्या कर देता है। बुद्ध ने इस खूँखार डाकू से मिलने का निश्चय किया।

जब बुद्ध जंगल की ओर बढ़ने लगे, तो गाँव वालों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। लेकिन बुद्ध शांत चित्त से आगे बढ़ते गए। तभी जंगल में पीछे से एक कर्कश आवाज आई, "ठहर जा!" बुद्ध ऐसे ही चलते रहे जैसे उन्होंने कुछ सुना ही न हो। फिर आवाज और जोर से आई, "मैं कहता हूँ ठहर जा।" इस बार बुद्ध रुके और पीछे मुड़कर देखा तो एक खूँखार व्यक्ति खड़ा था। उसकी बड़ी-बड़ी लाल आँखें, काले रंग का विशाल शरीर, हाथ में तलवार और गले में उँगलियों की माला थी। बुद्ध ने शांत स्वर में कहा, "मैं तो रुक गया, पर क्या तू कब ठहरेगा?"

अंगुलिमाल हैरान रह गया। उसके सामने जो भी आता था, भय से काँपने लगता था, लेकिन बुद्ध के चेहरे पर कोई डर नहीं था। अंगुलिमाल ने कहा, "हे सन्यासी! तुझे मुझसे डर नहीं लगता? देख, मैंने कितनों की हत्या की है, उनकी उँगलियों की माला पहनी है।" बुद्ध ने उत्तर दिया, "डरना है तो उस शक्ति से डरो जो सच में ताकतवर है।"

अंगुलिमाल हँसते हुए बोला, "तुम मुझे कमजोर समझते हो? मैं एक बार में कई लोगों के सिर काट सकता हूँ।" बुद्ध ने कहा, "यदि तू सच में ताकतवर है, तो उस पेड़ के दस पत्ते तोड़कर ला।" अंगुलिमाल ने तुरंत पत्ते तोड़ लिए और बोला, "इसमें क्या है?" बुद्ध मुस्कुराए और बोले, "अब इन पत्तों को वापस पेड़ से जोड़ दे।" अंगुलिमाल क्रोधित हो गया और बोला, "यह संभव नहीं है।" तब बुद्ध ने कहा, "जिसे तू जोड़ नहीं सकता, उसे तोड़ने का अधिकार तुझे किसने दिया?"

यह सुनकर अंगुलिमाल स्तब्ध रह गया। पहली बार किसी ने उसे यह विचार दिया कि केवल ताकत का इस्तेमाल करना बहादुरी नहीं है, ये तो कायरता है। बुद्ध के वचनों ने उसे भीतर से झकझोर दिया, सोचने को मजबूर कर दिया। उसे अपनी गलतियों का अहसास हुआ, और उसकी आत्मा ग्लानि से भर गई, वह आज सही मायनों में दुखी हुआ। अंगुलिमाल ने बुद्ध के चरणों में गिरकर माफी माँगी और कहा, "मुझे क्षमा करें। मैं भटक गया था। मुझे शरण में लें।" महात्मा बुद्ध ने उसे शरण दी और अपना शिष्य बना लिया।

गौतम बुद्ध और अंगुलिमाल की कहानी The Story of Gautam Buddha and Angulimala

बुद्ध ने अपनी अहिंसा और ज्ञान की शक्ति से अंगुलिमाल जैसे क्रूर व्यक्ति को प्रेम और करुणा का महत्व समझाया। इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि अहिंसा और प्रेम का मार्ग किसी भी हिंसक इंसान को बदल सकता है। यदि आप इस प्रेरक कथा को पढ़ना चाहते हैं और जानना चाहते हैं कि कैसे महात्मा बुद्ध ने अंगुलिमाल को बदल दिया, तो इस पोस्ट को जरूर पढ़ें। यह कहानी हमें सिखाती है कि सही राह पर चलना ही सच्ची शक्ति है।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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