जिनकी जटाओं में गंगा की धार भजन
जिनकी जटाओं में गंगा की धार भजन
जिनकी जटाओं में गंगा की धार,
जिनके गले में मुंडों की माल,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा।।
पास न कौड़ी रखते,
भोला भरते हैं सबके खजाने,
सब रहते हैं घरों में,
भोला खुद रहते हैं विरानों में,
पीते हैं भंग सदा,
भर-भर प्याले हैं,
मेरे भोले बाबा,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा।।
आओ मेरे भोले,
मैं तो बैठा हूँ आसन लगाए,
दो दरस त्रिपुरारी,
मैं तो राहों में पलकें बिछाए,
आ जाओ आप प्रभु,
तेरी महिमा गाए हैं,
मेरे भोले बाबा,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा।।
जिनकी जटाओं में गंगा की धार,
जिनके गले में मुंडों की माल,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा।।
जिनके गले में मुंडों की माल,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा।।
पास न कौड़ी रखते,
भोला भरते हैं सबके खजाने,
सब रहते हैं घरों में,
भोला खुद रहते हैं विरानों में,
पीते हैं भंग सदा,
भर-भर प्याले हैं,
मेरे भोले बाबा,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा।।
आओ मेरे भोले,
मैं तो बैठा हूँ आसन लगाए,
दो दरस त्रिपुरारी,
मैं तो राहों में पलकें बिछाए,
आ जाओ आप प्रभु,
तेरी महिमा गाए हैं,
मेरे भोले बाबा,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा।।
जिनकी जटाओं में गंगा की धार,
जिनके गले में मुंडों की माल,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा,
बड़े ही निराले हैं मेरे भोले बाबा।।
जिनकी जटाओं में गंगा की धार आचार्य आलोक शास्त्री इंदौर श्रीमद् भागवत कथा
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Author - Saroj Jangir
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