क्या कहिए क्या रक्खें हैं हम तुझ से यार ख़्वाहिश मीर तक़ी मीर

क्या कहिए क्या रक्खें हैं हम तुझ से यार ख़्वाहिश मीर तक़ी मीर


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क्या कहिए क्या रक्खें हैं हम तुझ से यार ख़्वाहिश
यक जान ओ सद तमन्ना यक दिल हज़ार ख़्वाहिश

ले हाथ में क़फ़स टुक सय्याद चल चमन तक
मुद्दत से है हमें भी सैर-ए-बहार ख़्वाहिश

ने कुछ गुनह है दिल का ने जुर्म-ए-चश्म इस में
रखती है हम को इतना बे-इख़्तियार ख़्वाहिश

हालाँकि उम्र सारी मायूस गुज़री तिस पर
क्या क्या रखें हैं उस के उम्मीद-वार ख़्वाहिश

ग़ैरत से दोस्ती की किस किस से हो जे दुश्मन
रखता है यारी ही की सारा दयार ख़्वाहिश

हम मेहर ओ रज़ क्यूँ कर ख़ाली हों आरज़ू से
शेवा यही तमन्ना फ़न ओ शिआर ख़्वाहिश

उठती है मौज हर यक आग़ोश ही की सूरत
दरिया को है ये किस का बोस ओ कनार ख़्वाहिश

सद रंग जल्वा-गर है हर जादा ग़ैरत गुल
आशिक़ की एक पावे क्यूँ कर क़रार ख़्वाहिश

यक बार बर न आए उस से उम्मीद दिल की
इज़हार करते कब तक यूँ बार बार ख़्वाहिश

करते हैं सब तमन्ना पर 'मीर' जी न इतनी
रक्खेगी मार तुम को पायान-ए-कार ख़्वाहिश
 
मीर तकी मीर (1723-1810) 18वीं शताब्दी के मुगल भारत के एक उर्दू कवि थे। उन्हें उर्दू भाषा के सर्वश्रेष्ठ कवियों में से एक माना जाता है। वे उर्दू ग़ज़ल के दिल्ली स्कूल के प्रमुख कवियों में से एक थे।

मीर का जन्म आगरा में हुआ था। उनके पिता का नाम मीर मुत्तकी था। मीर की प्रारंभिक शिक्षा घर पर हुई। इसके बाद, उन्होंने फ़ारसी और अरबी का अध्ययन किया। मीर ने अपने करियर की शुरुआत एक सरकारी नौकरी से की। लेकिन, जल्द ही उन्होंने नौकरी छोड़ दी और कविता लिखने पर ध्यान केंद्रित किया। मीर की कविताओं को उनकी भावुकता, सौंदर्य और गहराई के लिए जाना जाता है। उनकी कविताएँ अक्सर प्रेम, विरह, और जीवन के दुखों का वर्णन करती हैं। इस ग़ज़ल में मीर तकी मीर मनुष्य की इच्छाओं और आकांक्षाओं का वर्णन करते हैं। वह कहते हैं कि मनुष्य में असंख्य इच्छाएं होती हैं। वह हमेशा कुछ न कुछ नया चाहता रहता है।

पहले दो शेर में मीर तकी मीर कहते हैं कि मनुष्य में बहुत सारी इच्छाएं होती हैं। वह इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहता है।

तीसरे शेर में मीर तकी मीर कहते हैं कि मनुष्य की इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती हैं। वह हमेशा कुछ न कुछ और चाहता रहता है।

चौथे शेर में मीर तकी मीर कहते हैं कि मनुष्य अपनी इच्छाओं के कारण बेचैन रहता है। वह इन इच्छाओं को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकता है।

पांचवे शेर में मीर तकी मीर कहते हैं कि मनुष्य हमेशा किसी न किसी से ईर्ष्या करता है। वह दूसरों की सफलता को देखकर खुश नहीं होता है।

छठे शेर में मीर तकी मीर कहते हैं कि मनुष्य हमेशा कुछ न कुछ नया सीखने और जानने की इच्छा रखता है। वह ज्ञान को प्राप्त करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहता है।

सातवें शेर में मीर तकी मीर कहते हैं कि मनुष्य हमेशा आनंद और सुख की तलाश में रहता है। वह किसी भी कीमत पर खुश रहना चाहता है।

आठवें शेर में मीर तकी मीर कहते हैं कि मनुष्य हमेशा किसी न किसी से प्यार करता है। वह किसी न किसी के साथ अपना जीवन बिताना चाहता है।

नौवें शेर में मीर तकी मीर कहते हैं कि मनुष्य हमेशा कुछ न कुछ नया हासिल करना चाहता है। वह हमेशा आगे बढ़ने और सफल होने की इच्छा रखता है।

दसवें शेर में मीर तकी मीर कहते हैं कि मनुष्य की इच्छाएं कभी पूरी नहीं होती हैं। वह हमेशा कुछ न कुछ और चाहता रहता है।

अंतिम शेर में मीर तकी मीर कहते हैं कि मनुष्य की इच्छाओं को पूरा करना बहुत मुश्किल है। लेकिन अगर मनुष्य दृढ़ संकल्प और लगन से काम करे, तो वह अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकता है।


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