कबीर के दोहे हिंदी अर्थ मीनिंग कबीर के दोहे

 कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Ke Dohe Hindi Me

माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूंगी तोय ॥
 
कबीर के दोहे हिंदी अर्थ मीनिंग Kabir Ke Dohe Hindi Arth Meaning Sahit


दोहे का अर्थ : इस दोहे में कबीर साहेब जीवन की नश्वरता का / जीवन की अल्पता का सन्देश देते हैं वे कहते हैं की मिटटी व्यक्ति से बातें करती है और कहती है की तुम कुम्हार (मिटटी का बर्तन बनाने वाला) मुझे क्या रोंद रहे हो, एक रोज ऐसा आएगा जब मैं तुमको रौंदूंगी/स्वंय में समां लुंगी. इस दोहे का आशय है की एक रोज यह जीवन समाप्त हो जाना है इसलिए हमें हर पल इश्वर के नाम का सुमिरन करना चाहिए और इस जीवन पर दंभ नहीं भरना चाहिए
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में प्रलय होएगी, बहुरि करेगा कब ॥
 
दोहे का अर्थ : इस दोहे में कबीर दास जी हमें यह बता रहे हैं कि हमें अपने कामों को समय पर करना चाहिए। हमें कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि कल पता नहीं क्या होगा। कबीर दास जी कहते हैं कि जो काम कल करना है, उसे आज ही कर लें।जो काम आज करना है, उसे अभी ही कर लें। पल भर में प्रलय हो सकती है। फिर आप अपने कामों को कब करेंगे। कबीर दास जी के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने कामों को समय पर करना चाहिए। हमें कल पर नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि कल पता नहीं क्या होगा। कबीर दास जी का यह दोहा एक प्रेरणादायक दोहा है। यह हमें अपने जीवन में सफल होने के लिए प्रेरित करता है। इस दोहे का भावार्थ है की हमें इश्वर के नाम सुमिरन को आज और अब से ही शुरू करना चाहिए. ना जाने कब प्रलय हो जाए.
 
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
 
दोहे का अर्थ : हम अक्सर दूसरों की बुराइयां देखते हैं, लेकिन जब हम अपने अंदर झांकते हैं, तो हमें खुद में ही बहुत सी बुराइयां दिखाई देती हैं। हम स्वार्थी, ईर्ष्यालु, क्रूर, और अन्य बुरे गुणों से भरे होते हैं। यह एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि हम दूसरों की बुराइयों को देखते हैं। हम ऐसा इसलिए करते हैं ताकि अपनी बुराइयों से बच सकें। लेकिन यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि हम सभी में बुराई है। हमें अपनी बुराइयों को स्वीकार करना होगा और उन्हें दूर करने का प्रयास करना होगा।
 निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

दोहे का अर्थ : इस दोहे में संत कबीर दास जी हमें यह बता रहे हैं कि हमें अपने निंदकों को अपने पास ही रखना चाहिए। निंदक हमारे चरित्र की दुर्बलता को हमारे सामने लाता है जिससे हम अपनी कमियों को दूर कर सकते हैं। निंदा करने वाला व्यक्ति हमें अपने समीप रखना चाहिये जैसे की आंगन में कुटिया के समीप वृक्ष को जिससे छाया मिलती रहे. निंदक व्यक्ति बिना पानी और साबुन के हमारी कमियों रूपी मेल को धोकर साफ़ कर देता है.
 
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं फल लगे अति दूर।

दोहे का अर्थ : इस दोहे में संत कबीरदास जी ने बड़े होने के महत्व पर विचार किया है। वे कहते हैं कि केवल बड़ा होना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि बड़ा होने के साथ-साथ दूसरों के लिए भी उपयोगी होना चाहिए।

इस दोहे में खजूर के पेड़ का उदाहरण दिया गया है। खजूर का पेड़ बहुत ऊँचा होता है, लेकिन उसकी छाया बहुत छोटी होती है। इसके अलावा, उसके फल भी बहुत ऊँचे पर लगते हैं, जिन्हें तोड़ना बहुत कठिन होता है। इसलिए, खजूर का पेड़ दूसरों के लिए बहुत उपयोगी नहीं होता है।

इसी प्रकार, यदि कोई व्यक्ति केवल बड़ा है, लेकिन उसका दूसरों के लिए कोई उपयोग नहीं है, तो उसका बड़ा होना व्यर्थ है। ऐसा व्यक्ति समाज के लिए कोई योगदान नहीं देता है।
 
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप
अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।

दोहे का अर्थ :  इस दोहे में कबीर साहेब ने संतुलन पर बल दिया है. हमें प्रत्येक कार्य को एक संतुलन में करना चाहिये ना तो कम और नाहीं ज्यादा. ज्यादा बोलना अहितकारी होता है वैसे ही ज्यादा चुप रहना भी अच्छा नहीं होता है. ना तो ज्यादा बादलों का बरसना, बारिश ठीक है और नाहीं ज्यादा धुप ही ठीक है.
 
लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।
पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥

दोहे का अर्थ :कबीर साहेब इस दोहे में इश्वर के नाम सुमिरन के बारे में सन्देश देते हैं की एक रोज प्राण छूट जायेंगे इसलिए राम नाम की लूट है तो इसे जितना ले सको उतना ले लो. एक रोज जब जीवन चला जाएगा तो केवल हाथ ही मलते रह जाओगे.
गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥

दोहे का अर्थ : इस दोहे में कबीर साहेब ने गुरु की महिमा को इश्वर से भी बड़ा बताया है. कबीर साहेब कहते हैं की गुरु और गोविन्द/इश्वर दोनों ही समक्ष खड़े हैं, पहले किसको नमन करूँ ? इस पर वे सन्देश देते हैं की पहले तो गुरु को ही वंदन है क्योंकि उन्होंने ही भक्ति/इश्वर के बारे में परिचय करवाया है. 

सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥

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