कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Dohe in Hindi दोहे दोहावली कबीर दास के दोहे हिन्दी

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सबै रसाइण मैं क्रिया, हरि सा और न कोई । तिल इक घर मैं संचरे, तौ सब तन कंचन होई ॥

सबै रसाइण मैं क्रिया, हरि सा और न कोई ।
तिल इक घर मैं संचरे, तौ सब तन कंचन होई ॥
हरि-रस पीया जाणिये, जे कबहुँ न जाइ खुमार ।
मैमता घूमत रहै, नाहि तन की सार ॥
कबीर हरि-रस यौं पिया, बाकी रही न थाकि ।
पाका कलस कुंभार का, बहुरि न चढ़ई चाकि ॥
कबीर भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आई ।
सिर सौंपे सोई पिवै, नहीं तौ पिया न जाई ॥
त्रिक्षणा सींची ना बुझै, दिन दिन बधती जाइ ।
जवासा के रुष ज्यूं, घण मेहां कुमिलाइ ॥
कबीर सो घन संचिये, जो आगे कू होइ ।
सीस चढ़ाये गाठ की जात न देख्या कोइ ॥
कबीर माया मोहिनी, जैसी मीठी खांड़ ।
सतगुरु की कृपा भई, नहीं तौ करती भांड़ ॥
कबीर माया पापरगी, फंध ले बैठी हाटि ।
सब जग तौ फंधै पड्या, गया कबीर काटि ॥
कबीर जग की जो कहै, भौ जलि बूड़ै दास ।
पारब्रह्म पति छांड़ि करि, करै मानि की आस ॥

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